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।। ॐ ।। प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः। अह‌ङ्कारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते॥ आरम्भ से पूर्तिपर्यन्त कर्म प्रकृति के गुणों द्वारा किये जाते हैं फिर भी अहंकार से विशेष मूढ़ पुरुष 'मैं कर्त्ता हूँ'- ऐसा मान लेता है। यह कैसे माना जाय कि आराधना प्रकृति के गुणों द्वारा होती है? ऐसा किसने देखा? इस पर कहते हैं- #यथार्थ गीता #🙏🏻आध्यात्मिकता😇 #🧘सदगुरु जी🙏 #🙏गीता ज्ञान🛕 #❤️जीवन की सीख
यथार्थ गीता - // 35 | 1 क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः |  प्रकृतेः अहङ्कारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते।।   पूर्तिपर्यन्त कर्म प्रकृति के आरम्भ से गुणों RT किये जाते हैं फिर भी अहंकार से विशेष मूढ़ पुरुष ' मैं कर्त्ता हूँ  ऐसा मान लेता है। यह Sa कैसे माना जाय कि आराधना के गुणों प्रकृति द्वारा होती है? ऐसा किसने देखा? इस पर कहते हैं- // 35 | 1 क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः |  प्रकृतेः अहङ्कारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते।।   पूर्तिपर्यन्त कर्म प्रकृति के आरम्भ से गुणों RT किये जाते हैं फिर भी अहंकार से विशेष मूढ़ पुरुष ' मैं कर्त्ता हूँ  ऐसा मान लेता है। यह Sa कैसे माना जाय कि आराधना के गुणों प्रकृति द्वारा होती है? ऐसा किसने देखा? इस पर कहते हैं- - ShareChat

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