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#श्रीमद्वाल्मिकी_रामायण_पोस्ट_क्रमांक-2️⃣8️⃣ श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण बालकाण्ड तेईसवाँ सर्ग विश्वामित्रसहित श्रीराम और लक्ष्मणका सरयू-गंगासंगमके समीप पुण्य आश्रममें रातको ठहरना जब रात बीती और प्रभात हुआ, तब महामुनि विश्वामित्रने तिनकों और पत्तोंके बिछौनेपर सोये हुए उन दोनों ककुत्स्थवंशी राजकुमारोंसे कहा—॥१॥ 'नरश्रेष्ठ राम! तुम्हारे-जैसे पुत्रको पाकर महारानी कौसल्या सुपुत्रजननी कही जाती हैं। यह देखो, प्रातः कालकी संध्याका समय हो रहा है; उठो और प्रतिदिन किये जानेवाले देवसम्बन्धी कार्योंको पूर्ण करो'॥२॥ महर्षिका यह परम उदार वचन सुनकर उन दोनों नरश्रेष्ठ वीरोंने स्नान करके देवताओंका तर्पण किया और फिर वे परम उत्तम जपनीय मन्त्र गायत्रीका जप करने लगे॥३॥ नित्यकर्म समाप्त करके महापराक्रमी श्रीराम और लक्ष्मण अत्यन्त प्रसन्न हो तपोधन विश्वामित्रको प्रणाम करके वहाँसे आगे जानेको उद्यत हो गये॥४॥ जाते-जाते उन महाबली राजकुमारोंने गंगा और सरयूके शुभ संगमपर पहुँचकर वहाँ दिव्य त्रिपथगा नदी गंगाजीका दर्शन किया॥५॥ संगमके पास ही शुद्ध अन्तःकरणवाले महर्षियोंका एक पवित्र आश्रम था, जहाँ वे कई हजार वर्षोंसे तीव्र तपस्या करते थे॥६॥ उस पवित्र आश्रमको देखकर रघुकुलरत्न श्रीराम और लक्ष्मण बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने महात्मा विश्वामित्रसे यह बात कही—॥७॥ 'भगवन्! यह किसका पवित्र आश्रम है? और इसमें कौन पुरुष निवास करता है? यह हम दोनों सुनना चाहते हैं। इसके लिये हमारे मनमें बड़ी उत्कण्ठा है'॥८॥ उन दोनोंका यह वचन सुनकर मुनिश्रेष्ठ विश्वामित्र हँसते हुए बोले—'राम! यह आश्रम पहले जिसके अधिकारमें रहा है, उसका परिचय देता हूँ, सुनो॥९॥ 'विद्वान् पुरुष जिसे काम कहते हैं, वह कन्दर्प पूर्वकालमें मूर्तिमान् था—शरीर धारण करके विचरता था। उन दिनों भगवान् स्थाणु (शिव) इसी आश्रममें चित्तको एकाग्र करके नियमपूर्वक तपस्या करते थे॥१०॥ 'एक दिन समाधिसे उठकर देवेश्वर शिव मरुद्गणोंके साथ कहीं जा रहे थे। उसी समय दुर्बुद्धि कामने उनपर आक्रमण किया। यह देख महात्मा शिवने हुङ्कार करके उसे रोका॥११॥ 'रघुनन्दन! भगवान् रुद्रने रोषभरी दृष्टिसे अवहेलनापूर्वक उसकी ओर देखा; फिर तो उस दुर्बुद्धिके सारे अंग उसके शरीरसे जीर्ण-शीर्ण होकर गिर गये॥१२॥ 'वहाँ दग्ध हुए महामना कन्दर्पका शरीर नष्ट हो गया। देवेश्वर रुद्रने अपने क्रोधसे कामको अंगहीन कर दिया॥१३॥ 'राम! तभीसे वह 'अनंग' नामसे विख्यात हुआ। शोभाशाली कन्दर्पने जहाँ अपना अंग छोड़ा था, वह प्रदेश अंगदेशके नामसे विख्यात हुआ॥१४॥ 'यह उन्हीं महादेवजीका पुण्य आश्रम है। वीर! ये मुनिलोग पूर्वकालमें उन्हीं स्थाणुके धर्मपरायण शिष्य थे। इनका सारा पाप नष्ट हो गया है॥१५॥ 'शुभदर्शन राम! आजकी रातमें हमलोग यहीं इन पुण्यसलिला सरिताओंके बीचमें निवास करें। कल सबेरे इन्हें पार करेंगे॥१६॥ 'हम सब लोग पवित्र होकर इस पुण्य आश्रममें चलें। यहाँ रहना हमारे लिये बहुत उत्तम होगा। नरश्रेष्ठ! यहाँ स्नान करके जप और हवन करनेके बाद हम रातमें बड़े सुखसे रहेंगे॥१७½॥ वे लोग वहाँ इस प्रकार आपसमें बातचीत कर ही रहे थे कि उस आश्रममें निवास करनेवाले मुनि तपस्याद्वारा प्राप्त हुई दूर दृष्टिसे उनका आगमन जानकर मन-ही-मन बड़े प्रसन्न हुए। उनके हृदयमें हर्षजनित उल्लास छा गया॥१८॥ उन्होंने विश्वामित्रजीको अर्घ्य, पाद्य और अतिथि- सत्कारकी सामग्री अर्पित करनेके बाद श्रीराम और लक्ष्मणका भी आतिथ्य किया॥१९½॥ यथोचित सत्कार करके उन मुनियोंने इन अतिथियोंका भाँति-भाँतिकी कथा-वार्ताओंद्वारा मनोरञ्जन किया। फिर उन महर्षियोंने एकाग्रचित्त होकर यथावत् संध्यावन्दन एवं जप किया॥२०½॥ तदनन्तर वहाँ रहनेवाले मुनियोंने अन्य उत्तम व्रतधारी मुनियोंके साथ विश्वामित्र आदिको शयनके लिये उपयुक्त स्थानमें पहुँचा दिया। सम्पूर्ण कामनाओंकी पूर्ति करनेवाले उस पुण्य आश्रममें उन विश्वामित्र आदिने बड़े सुखसे निवास किया॥२१½॥ धर्मात्मा मुनिश्रेष्ठ विश्वामित्रने उन मनोहर राजकुमारोंका सुन्दर कथाओंद्वारा मनोरञ्जन किया॥२२॥ *इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके बालकाण्डमें तेईसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥२३॥* ###श्रीमद्वाल्मिकी_रामायण२०२५
##श्रीमद्वाल्मिकी_रामायण२०२५ - !! ओम नमो नारायणाय !! महामंत्र जोइ जपत महेसू எி हेतु उपदेसू मुकुति नाम वह महामंत्र है जिसे महेश्वर शिव जपते हैं और IH उनके द्वारा जिसका उपदेश काशी में मुक्ति का 8 कारण भगवान शिव काशी में मरने वालों अर्थात राम नाम सुना कर प्रदान कर देते हैं उनका कल्याण कर देते हैं को !! ओम नमो नारायणाय !! महामंत्र जोइ जपत महेसू எி हेतु उपदेसू मुकुति नाम वह महामंत्र है जिसे महेश्वर शिव जपते हैं और IH उनके द्वारा जिसका उपदेश काशी में मुक्ति का 8 कारण भगवान शिव काशी में मरने वालों अर्थात राम नाम सुना कर प्रदान कर देते हैं उनका कल्याण कर देते हैं को - ShareChat

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