#bharmakumaris om shanti ...*व्यर्थ संकल्पों का कारण अज्ञानता है। अज्ञानता से देहाभिमान और देहाभिमान के कारण राग-द्वेष, भय-चिन्ता, दुख-अशान्ति, ईर्ष्या घृणा, अहंकार-हीनता का जन्म होता है, जो व्यर्थ संकल्पों का मूल कारण हैं। यथार्थ ज्ञान की धारणा से देही- अभिमानी स्थिति बनती है, जो समर्थ स्थिति है और चढ़ती कला का आधार है*।
🎯🎯...*इसके लिए बाबा तीन बिन्दुओं के स्मृति स्वरूप बनने के लिए कहा है। आत्मिक स्वरूप स्वतः में सर्वशक्तियों से सम्पन्न समर्थ है। परमात्मा बिन्दु अर्थात् परमात्मा सर्वशक्तिवान है, उनकी समृति मात्र से आत्मा समर्थ बन जाती है और ड्रामा बिन्दु अर्थात् ड्रामा के ज्ञान की यथार्थ धारणा होगी तो किसी तरह का व्यर्थ संकल्प आ ही नहीं सकता*।
🎯🎯...*आज बर्थ-डे पर बापदादा का यही संकल्प है कि यह व्यर्थ संकल्प रूपी अक का फूल अर्पण करो। व्यर्थ संकल्प न करना है, न सुनना है और न संग में आकर व्यर्थ संकल्पों के संग का रंग लगाना है। क्योंकि जहाँ व्यर्थ संकल्प होगा, वहाँ याद का संकल्प, ज्ञान के मधुर बोल, जिसको मुरली कहते हैं, वे शुद्ध संकल्प स्मृति में नहीं रहेंगे।... यह व्यर्थ संकल्प बाप को दृढ़ संकल्प से दे देना है।... बाप को एक बार अपनी रुचि से, दृढ़ता से दे दो और बार-बार चेक करो कि दी हुई चीज़ हमारे पास वापस तो नहीं आई*।...
