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#मुंबई #सामना #भोजपुरिया(व्यंग्य)@#धन्यवाद #व्यंग्य
व्यंग्य - आपका ಹ[ನEC] Eತ್ವ EEu] बाड़े। उ कई दिन से चिंतित अगर एक दूसरा प निर्भरता इहाँ खतम हो जाई त दुनिया जोधर काका बहुत बाड़े। उ समझे में असमर्थ बाड़े कि लोग काहे नाराज हो अंत हो जाई। काका के बहुते परेशानी भइल बा। गजोधर काका अपना दोस्त के क्रोध से अवगत जाला। एह आजकल बहुत खिसियाइल बाड़े। লক্কিন के महीना में बादल काहें खिसियाइल  उनकर बचपन के दोस्त 67%| I7 ई समझे में असमर्थ बाड़े । एक समय रहे जब दुनु जाना dl५ए। भोजपुरिया व्यंग्य के बहुत नजदीकी रहे, लेकिन से इंसान के कवनो सीधा आज गजोधर काका के देखे के ना होखेला। बादल बड़ा ऊँचाई केहू ओकरा के मन नइख करत। अव इ प्रभुनाथ शुक्ल भदोही ؟ ٦ ٦ 6116 गजोधर काका के बहुते परेशान उखाड़ सकेला। ई बादल के केहू " ऊ ओह लोग के गु़स्सा के कारण समझे में आ धरती पर भी ऊँच लोग नुकसान ना पहुँचा कर रहल बा। में खेसारी काका खाली गजोधर आदमी से इनकर कवनो लेना-देना नईखे। बड़का असमर्थ बा। अब पूरा गोँव आम के लेके रोवत बाड़े। के आम जनता के कवनो परवाह नइखे। अब बादल के हाल 4|9>| गजोधर काका एह बात सेभी परेशान बाड़े कि कबो भी उहे बा॰ सावन में जेठ के गर्मी बा। बिजली नवविवाहित खिसियाइल कबो खुश होखल इंसान के स्वभाव ह। क्रोध दुलहिन निहन नखरा फेंक रहल बा। किसान आसमान जीवन के एगो हिस्सा ह। कबो-कबो पड़ोसी खिसिया जाला। ओर देख रहल बा। खेत में दरार लउकल बा। रोपल आफिस में बॉस के फसल खेत में सुखत बा। धान के बेहन रोपनी के उम्मीद कबो पत्नी त कबो भाई कबा लइका जवानी में बूढ़ हो गईल बाड़ी। लेकिन बादल खिसियाइल रहेला। कतनो बढ़िया काम करीं, बॉस के कसान ٦٦٩٦ निहोरा ना सुनेला। अब बादल के सजा देवे वाला केहु नईखे।  भौंह आ चेहरा टेढ़ रहेला। काहे कि हर आदमी एक दोसरा पर निर्भर होला, एही से एहिजा खिसियाइल फिर के जाने किसान के का होई। ई चिंता गजोधर rT फाका मिलन आ बिदाई होला। ई दूनिया स्वार्थ के बंधन ह के खा रहल बा। मनाव आपका ಹ[ನEC] Eತ್ವ EEu] बाड़े। उ कई दिन से चिंतित अगर एक दूसरा प निर्भरता इहाँ खतम हो जाई त दुनिया जोधर काका बहुत बाड़े। उ समझे में असमर्थ बाड़े कि लोग काहे नाराज हो अंत हो जाई। काका के बहुते परेशानी भइल बा। गजोधर काका अपना दोस्त के क्रोध से अवगत जाला। एह आजकल बहुत खिसियाइल बाड़े। লক্কিন के महीना में बादल काहें खिसियाइल  उनकर बचपन के दोस्त 67%| I7 ई समझे में असमर्थ बाड़े । एक समय रहे जब दुनु जाना dl५ए। भोजपुरिया व्यंग्य के बहुत नजदीकी रहे, लेकिन से इंसान के कवनो सीधा आज गजोधर काका के देखे के ना होखेला। बादल बड़ा ऊँचाई केहू ओकरा के मन नइख करत। अव इ प्रभुनाथ शुक्ल भदोही ؟ ٦ ٦ 6116 गजोधर काका के बहुते परेशान उखाड़ सकेला। ई बादल के केहू " ऊ ओह लोग के गु़स्सा के कारण समझे में आ धरती पर भी ऊँच लोग नुकसान ना पहुँचा कर रहल बा। में खेसारी काका खाली गजोधर आदमी से इनकर कवनो लेना-देना नईखे। बड़का असमर्थ बा। अब पूरा गोँव आम के लेके रोवत बाड़े। के आम जनता के कवनो परवाह नइखे। अब बादल के हाल 4|9>| गजोधर काका एह बात सेभी परेशान बाड़े कि कबो भी उहे बा॰ सावन में जेठ के गर्मी बा। बिजली नवविवाहित खिसियाइल कबो खुश होखल इंसान के स्वभाव ह। क्रोध दुलहिन निहन नखरा फेंक रहल बा। किसान आसमान जीवन के एगो हिस्सा ह। कबो-कबो पड़ोसी खिसिया जाला। ओर देख रहल बा। खेत में दरार लउकल बा। रोपल आफिस में बॉस के फसल खेत में सुखत बा। धान के बेहन रोपनी के उम्मीद कबो पत्नी त कबो भाई कबा लइका जवानी में बूढ़ हो गईल बाड़ी। लेकिन बादल खिसियाइल रहेला। कतनो बढ़िया काम करीं, बॉस के कसान ٦٦٩٦ निहोरा ना सुनेला। अब बादल के सजा देवे वाला केहु नईखे।  भौंह आ चेहरा टेढ़ रहेला। काहे कि हर आदमी एक दोसरा पर निर्भर होला, एही से एहिजा खिसियाइल फिर के जाने किसान के का होई। ई चिंता गजोधर rT फाका मिलन आ बिदाई होला। ई दूनिया स्वार्थ के बंधन ह के खा रहल बा। मनाव - ShareChat

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