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#अहोई अष्टमी#अहोई अष्टमी स्टेटस#अहोई अष्टमी स्टेटस वीडियो#अहोई अष्टमी पूजा विधि#अहोई अष्टमी व्रत कथा ""अहोई अष्टमी व्रत कथा➖ ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़ "" व्रत कथा: ➖प्राचीन समय में एक साहुकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थी। साहूकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो ननद भी उनके साथ हो ली। साहुकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी की चोट से स्याहू का एक बच्चा मर गया। स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली ""मैं तुम्हारी कोख बाधूंगी।"" स्याहू के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभीयों से एक-एक कर विनती करती है कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी। सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है। रास्ते थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं, अचानक साहुकार की छोटी बहू की नजर एक ओर जाती है, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को हंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खुन बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी । बहु ने उसके बच्चे को मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है।छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है। वहां स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहु होने का अशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहु का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा भरा हो जाता है। जय हो अहोई अष्टमी व्रत ➖ ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़
अहोई अष्टमी#अहोई अष्टमी स्टेटस#अहोई अष्टमी स्टेटस वीडियो#अहोई अष्टमी पूजा विधि#अहोई अष्टमी व्रत कथा - संध्याकाल संध्या वंदन अहोई व्रत कथा ब्रह्मदत्त ब्रह्मदत्ता ५ AGI अहोई अष्टमी व्रत कथा ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़ ' अहोई अष्टमी व्रत कथा – ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़ व्रत कथा : प्राचीन समय में एक साहुकार था , जिसके सात बेटे और सात बहुएं थी । साहूकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी । दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो ननद भी उनके साथ हो ली । साहुकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी उस स्थान पर स्याहु ( साही ) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी । मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी की चोट से स्याहू का एक बच्चा मर गया । स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बाधूंगी । स्याहू के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभीयों से एक - एक कर विनती करती है कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें । सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है । इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं । सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा । पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी । सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है । रास्ते थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं , अचानक साहुकार की छोटी बहू की नजर एक ओर जाती है , वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को हंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है । इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खुन बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी । बहु ने उसके बच्चे को मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है । छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है । गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है । वहां स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहु होने का अशीर्वाद देती है । स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहु का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा भरा हो जाता है । जय हो अहोई अष्टमी व्रत ब्रह्मदत्त त्यागी हापुड़ - ShareChat

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