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#श्रीमद भगवदगीता श्लोक #श्रीमद् भागवत् गीता तृतीय अध्याय
श्रीमद भगवदगीता श्लोक - यस्त्विन्द्रियाणि मनसा नियम्यारभतेर्जुन। कर्मेन्द्रियैः कर्मयोगमसक्तः स विशिष्यते ।। हे अर्जुन! जो पुरुष मनसे इन्द्रियोँको किन्तु वशमें करके अनासक्त हुआ समस्त इन्द्रियोँद्वारा कर्मयोगका आचरण करता है, वही श्रेष्ठ है II७ ।l नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः | शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः I। तू शास्त्रविहित कर्तव्यकर्म कर; क्योँकि कर्म न करनेकी अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करनेसे तेरा शरीर- निर्वाह भी नहीं सिद्ध होगा II ८ II श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 3 यस्त्विन्द्रियाणि मनसा नियम्यारभतेर्जुन। कर्मेन्द्रियैः कर्मयोगमसक्तः स विशिष्यते ।। हे अर्जुन! जो पुरुष मनसे इन्द्रियोँको किन्तु वशमें करके अनासक्त हुआ समस्त इन्द्रियोँद्वारा कर्मयोगका आचरण करता है, वही श्रेष्ठ है II७ ।l नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः | शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः I। तू शास्त्रविहित कर्तव्यकर्म कर; क्योँकि कर्म न करनेकी अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करनेसे तेरा शरीर- निर्वाह भी नहीं सिद्ध होगा II ८ II श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 3 - ShareChat