भविष्य को वास्तव में क्या आकार देता है—नीतियाँ या वे विचार जो पारंपरिक ढांचे में फिट नहीं बैठते?
बेंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में आयोजित नोबेल प्राइज़ डायलॉग इंडिया 2025, टाटा ट्रस्ट्स के साथ विशेष साझेदारी में, अर्थशास्त्री एवं भारत सरकार के पूर्व योजना आयोग के उपाध्यक्ष श्री मोंटेक सिंह अहलूवालिया और मार्केटर, लेखक व कॉर्पोरेट सलाहकार श्री हरीश भट्ट ने इस बात को दोहराया कि जब व्यावहारिक सुधार नए और ताज़ा विचारों की ताकत से मिलते हैं, तभी सार्थक बदलाव संभव होता है।
उनके शब्द हमें याद दिलाते हैं कि प्रगति की शुरुआत अक्सर तब होती है, जब हम ‘अपेक्षित’ सोच से आगे बढ़कर सोचने का साहस करते हैं। इस संवाद का हिस्सा बनिए और साझा कीजिए कि आपके अनुसार बदलाव को आगे बढ़ाने वाले कारक क्या हैं।
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