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#गीताजी_का_ज्ञान_किसने_बोला अध्याय 11 श्लोक 47 में पवित्र गीता जी को बोलने वाले प्रभु काल ने कहा है कि ‘हे अर्जुन! यह मेरा वास्तविक काल रूप है, जिसे तेरे अतिरिक्त पहले किसी ने नहीं देखा था।‘ ##santrampaljimaharaj #🙏🏻आध्यात्मिकता😇
#santrampaljimaharaj - गीता बोला? 0 का ज्ञान किसने गीता अध्याय १८ श्लोक ४३ में गीता ज्ञान दाता ने क्षत्री अध्याय १८ का श्लोक ४३ शौर्यम् तेजः धृतिः दाक्ष्यम युद्धे च अपि, अपलायनम  के स्वभाविक कर्मों का उल्लेख करते हुए कहा है कि दानम् ईश्वरभावः च क्षात्राम् कर्म स्वभावजम्।।४३१| "युद्ध से न भागना' आदि 2 क्षत्री के स्वभाविक कर्म हैं| अनुवादः ( शौर्यम् ) शूर॰वीरता (तेजः ) तेज (धृतिः ) धैर्य (दाक्ष्यम्) चतुरता (च) और (युद्धे) युद्धमें (अपि) भी इससे सिद्ध हुआ कि गीता जी का ज्ञान श्री कृष्ण जी (अपलायनम् ) न भागना ( दानम् ) दान देना (च) और (ईश्वरभावः ) पूर्ण परमात्मामं `े रूचि स्वामिभाव ये सब के ने नहीं बोला। क्योंकि श्री कृष्ण जी स्वयं क्षत्री होते हुए ही (क्षात्राम ) क्षत्रियके ( स्वभावजम) स्वाभाविक ( कर्म) सव कर्म हैं। (४३) कालयवन के सामने से युद्ध से भाग गए थे। व्यक्ति स्वयं धर्य चतुरता " हिन्दीः शूर॰वीरता तेज और युद्धमें भी न किए कर्म के विपरीत अन्य को राय नहीं देता| न उसकी और पूर्ण परमात्मामं ` रूचि स्वामिभाव ये भागना दान देना सब के सब ही क्षत्रियके स्वाभाविक कर्म हैं।  राय श्रोता को ठीक जचेगी| वह उपहास का पात्र बनेगा | प्रेतवत् श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके बोला था। यह गीता ज्ञान ब्रह्म(काल ) ने भगवान श्री कृष्ण रूप में स्वयं श्री विष्णु जी ही अवतार धार कर आए थे। जगतगुरू तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज संत रामपाल जी महाराज जी से Sant Rampal Ji Maharaj App Download d1f514 व निःशुल्क f:ajc' नामदीक्षा লিব মপক মুন্ : GEI O +91 7496801823 पुस्तक प्राप्त करने के Play Google गीता बोला? 0 का ज्ञान किसने गीता अध्याय १८ श्लोक ४३ में गीता ज्ञान दाता ने क्षत्री अध्याय १८ का श्लोक ४३ शौर्यम् तेजः धृतिः दाक्ष्यम युद्धे च अपि, अपलायनम  के स्वभाविक कर्मों का उल्लेख करते हुए कहा है कि दानम् ईश्वरभावः च क्षात्राम् कर्म स्वभावजम्।।४३१| "युद्ध से न भागना' आदि 2 क्षत्री के स्वभाविक कर्म हैं| अनुवादः ( शौर्यम् ) शूर॰वीरता (तेजः ) तेज (धृतिः ) धैर्य (दाक्ष्यम्) चतुरता (च) और (युद्धे) युद्धमें (अपि) भी इससे सिद्ध हुआ कि गीता जी का ज्ञान श्री कृष्ण जी (अपलायनम् ) न भागना ( दानम् ) दान देना (च) और (ईश्वरभावः ) पूर्ण परमात्मामं `े रूचि स्वामिभाव ये सब के ने नहीं बोला। क्योंकि श्री कृष्ण जी स्वयं क्षत्री होते हुए ही (क्षात्राम ) क्षत्रियके ( स्वभावजम) स्वाभाविक ( कर्म) सव कर्म हैं। (४३) कालयवन के सामने से युद्ध से भाग गए थे। व्यक्ति स्वयं धर्य चतुरता " हिन्दीः शूर॰वीरता तेज और युद्धमें भी न किए कर्म के विपरीत अन्य को राय नहीं देता| न उसकी और पूर्ण परमात्मामं ` रूचि स्वामिभाव ये भागना दान देना सब के सब ही क्षत्रियके स्वाभाविक कर्म हैं।  राय श्रोता को ठीक जचेगी| वह उपहास का पात्र बनेगा | प्रेतवत् श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके बोला था। यह गीता ज्ञान ब्रह्म(काल ) ने भगवान श्री कृष्ण रूप में स्वयं श्री विष्णु जी ही अवतार धार कर आए थे। जगतगुरू तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज संत रामपाल जी महाराज जी से Sant Rampal Ji Maharaj App Download d1f514 व निःशुल्क f:ajc' नामदीक्षा লিব মপক মুন্ : GEI O +91 7496801823 पुस्तक प्राप्त करने के Play Google - ShareChat