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✍️ साहित्य एवं शायरी - लहज़ा समझ आ जाता है मुझे हर किसी का, बस उन्हें शर्मिंदा करना मेरे मिजाज़ में नहीं है..! ७७० लहज़ा समझ आ जाता है मुझे हर किसी का, बस उन्हें शर्मिंदा करना मेरे मिजाज़ में नहीं है..! ७७० - ShareChat