अटूट रहस्य: देवी उपासना की कुंजी केवल गुरु के पास ही क्यों है।।
क्या आप माँ की कृपा चाहते हैं? तो पहले यह जान लें: गुरु नहीं, कृपा नहीं।
तांत्रिक ऐसे सत्य फुसफुसाते हैं जो आपको किताबों में नहीं मिलेंगे।।
1. गुरु जीवंत यंत्र हैं
कोई मनुष्य नहीं। स्त्री नहीं। ब्रह्मांडीय धाराओं का एक माध्यम। जब सच्चे गुरु साँस लेते हैं, तो देवी के मंत्र मूर्त रूप लेते हैं। इस जीवंत पात्र के बिना, आपकी पूजा एक मृत कर्मकांड है, बहरे आकाश में फेंके गए शब्दों के खोखले खोल।
2. शक्तिपात: निषिद्ध संचरण
आपको लगता है कि आप तंत्र "सीख" सकते हैं? असली मंत्र शिराओं से जलते हैं, पन्नों से नहीं। केवल गुरु का स्पर्श, कभी-कभी एक झलक ही उस आंतरिक अग्नि को प्रज्वलित कर सकती है जो सीसे जैसी चेतना को सोने में बदल देती है।
3. जिसे आप "रहस्य" कहते हैं, वो जाल हैं
वो बीज मंत्र जो आपको किसी धूल भरी पांडुलिपि में मिला होता है?
गुरु सिखाते नहीं, तोड़ते हैं। उनका हर शब्द आपकी आत्मा को नया रूप देता है। उनके बिना, आप वज्रों से करतब दिखाने वाले अंधे व्यक्ति की तरह हैं।
4. बिजली की रक्तरेखा।।
यह "आध्यात्मिकता" नहीं है। यह जागृत शवों (जिन्हें संत कहते हैं) के माध्यम से पीछे की ओर फैली शक्ति का एक जीवंत तार है। ज़ंजीर तोड़ दें, और तो मृत शब्दों को बुदबुदाते रह जाएंगे जबकि असली धारा आपके पास से गुज़र जाएगी।
5. अंतिम भ्रम।
क्या आप देवी से "मिलना" चाहते हैं? वह आपको ज़िंदा खा रही है। गुरु का एकमात्र काम आपके दाँतों का एहसास कराना है।
अंतिम चेतावनी:
गुरु नहीं है तो कोई भी साधक नहीं है।
केवल शिकार हैं।
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