#હેપ્પી તુલસી વિવાહ *।। तुलसीगीता ।।*
*यह श्रीहरि एवं तुलसी संवाद रूप का शुद्ध पाठ है हिन्दी अनुवाद, सहित यह मूलस्रोत- बृहद्धर्मपुराण, पद्मपुराण, और तुलसीमहात्म्य से संकलित यह गीता तुलसी आराधना का सार है।*
*श्रीभगवानुवाच-*
*प्राग्दत्वार्घं ततोऽभ्यर्च्य गन्धपुष्पाक्षतादिना।*
*स्तुत्वा भगवतीं तां च प्रणमेद्दण्डवद्भुवि।।१।।*
*पहले तुलसी देवी को अर्घ्य देकर, गंध, पुष्प, अक्षत आदि से पूजन करें, फिर भगवती तुलसी की स्तुति करके भूमि पर दण्डवत प्रणाम करें।*
*श्रियं श्रिये श्रियावासे नित्यं श्रीधवसत् रते।*
*भक्त्या दत्तं मया देवि अर्घं गृह्ण नमोऽस्तु ते।।२।।*
*हे देवी! आप लक्ष्मी की स्वरूपा, लक्ष्मी के निवास-स्थान और श्रीहरि की प्रिय हैं। मैं श्रद्धा से दिया हुआ यह अर्घ्य आपको समर्पित करता हूँ- आपको नमस्कार।*
*निर्मिता त्वं पुरा देवैरर्चिता त्वं सुरासुरैः।*
*तुलसि हर मे पापं पूजां गृह्ण नमोऽस्तु ते।।३।।*
*हे तुलसी! तुम देवताओं द्वारा निर्मित और देवासुर दोनों द्वारा पूजित हो। मेरे पापों का नाश करो, मेरी पूजा स्वीकार करो- तुम्हें नमस्कार।*
*महाप्रसादजननी आधिव्याधिविनाशि।*
*सर्वसौभाग्यदे देवि* *तुलसि त्वां नमोऽस्तु ते।।४।।*
*हे तुलसी देवी! आप महाप्रसाद की जननी हैं, समस्त रोग-दोषों का नाश करने वाली हैं,और सर्व सौभाग्य प्रदान करने वाली देवी हैं- आपको नमस्कार।*
*या दृष्टा निखिलाघसंघशमना... तस्यै तुलस्यै नमः।।५।।*
*हे तुलसी! जिनका दर्शन पापों को हर लेता है, जिनका स्पर्श शरीर को पवित्र करता है, जिनका पूजन रोगों का नाश करता है,जिनका जल मृत्यु के भय को मिटाता है, जो भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में रोपित होकर मुक्ति प्रदान करती हैं- ऐसी तुलसी देवी को बार-बार नमस्कार।*
*भगवत्यास्तुलस्यास्तु माहात्म्यामृतसागरे।*
*लोभात् कूर्द्दितुमिच्छामि क्षुद्रस्तत् क्षम्यतां त्वया।।६।।*
*हे तुलसी भगवती! आपके महात्म्य रूप अमृत-सागर में डूबने की इच्छा मुझे लोभवश हो रही है। मैं क्षुद्र मानव हूँ, कृपा कर इसे क्षमा करें।*
*श्रवणाद्वादशीयोगे शालग्रामशिलार्चने।*
*यद्फलं सङ्गमे प्रोक्तं तुलसीपूजनेन तत्।।७।।*
*श्रवण नक्षत्रयुक्त द्वादशी तिथि पर शालग्राम की पूजा से जो फल मिलता है, वही फल तुलसी पूजा से प्राप्त होता है।*
*धात्रीफलेन यत् पुण्यं जयन्त्यां समुपोषणे।*
*तद्फलं लभते मर्त्यास्तुलसीपूजनेन तत्।।८।।*
*जयन्ती तिथि पर उपवास करने या आंवले**(*धात्रीफल) के* *सेवन से जो पुण्य मिलता है*,
*वही तुलसी पूजा से प्राप्त होता है।*
*यद्फलं प्रयागस्नाने काश्यां प्राणविमोक्षणे।*
*तद्फलं विहितं देवैस्तुलसीपूजनेन तत्।।९।।*
*प्रयाग में स्नान करने या काशी में शरीर त्यागने से जो फल मिलता है, वही फल तुलसी पूजन से भी मिलता है।*
*चतुर्णामपि वर्णानामाश्रमाणां विशेषतः।*
*स्त्रीणां च पुरुषाणां च पूजितेष्टं ददाति च।।१०।।*
*तुलसी देवी चारों वर्णों और चारों आश्रमों के लोगों- स्त्री, पुरुष सभी को उनकी इच्छा अनुसार वर देती हैं।*
*तुलसी रोपिता सिक्ता दृष्टा स्पृष्टा च पावयेत्।आराधिता प्रयत्नेन सर्वकामफलप्रदा।।११।।*
*जो तुलसी को रोपता है, सींचता है, देखता या छूता है- वह पवित्र हो जाता है। जो तुलसी की भक्तिपूर्वक आराधना करता है, उसे सभी कामनाओं के फल मिलते हैं।*
*प्रदक्षिणं भ्रमित्वा ये नमस्कुर्वन्ति नित्यशः।*
*न तेषां दुरितं किञ्चिदक्षीणमवशिष्यते।।१२।।*
*जो प्रतिदिन तुलसी की परिक्रमा और प्रणाम करते हैं, उनके सभी पाप क्षीण हो जाते हैं।*
*पूज्यमाना च तुलसी यस्य वेश्मनि तिष्ठति।*
*तस्य सर्वाणि श्रेयांसि वर्धन्तेऽहरहः सदा।।१३।।*
*जिसके घर में तुलसी पूजित रूप में विद्यमान रहती हैं, उसके घर में दिन-प्रतिदिन शुभता और समृद्धि बढ़ती रहती है।*
*पक्षे पक्षे च द्वादश्यां... तुलसीवनपूजनम्।।१४।।*
*हर पक्ष की द्वादशी तिथि को स्वयं ब्रह्मा आदि देवता भी तुलसीवन की पूजा करते हैं।*
*अनन्यमनसा नित्यं तुलसीं स्तौति यो जनःपितृदेवमनुष्याणां प्रियो भवति सर्वदा।।१५।।*
*जो व्यक्ति नित्य तुलसी की भक्ति से स्तुति करता है, वह देवताओं, पितरों और मनुष्यों- सभी का प्रिय बन जाता है।*
*रतिं करोमि नान्यत्र तुलसीकाननं विना... कलौ तिष्ठामि भामिनि।।१६-१७।।*
*भगवान श्रीहरि कहते हैं- हे प्रिये तुलसी! मुझे अन्य किसी स्थान में उतनी रति नहीं जितनी तुलसीवन में है। सत्य कहता हूँ- कलियुग में मैं तीर्थों और पर्वतों को छोड़कर सदैव तुलसीवन में निवास करता हूँ।*
*न धात्रा सफला यत्र न विष्णुस्तुलसीवनम्।*तत् स्मशानसमं स्थानं सन्ति यत्र न वैष्णवाः।।१८।।*
*जहाँ विष्णु या तुलसीवन नहीं है, वह स्थान मृत-भूमि के समान है;जहाँ वैष्णव नहीं रहते, वह स्थान भी स्मशान तुल्य है।*
*तुलसीगन्धमादाय यत्र गच्छति मारुतः।*
*दिशो दश च पूताः स्युर्भूतग्रामाश्चतुर्दशः।।१९।।*
*जहाँ तुलसी की सुगंध लेकर वायु प्रवाहित होती है, वहाँ की दसों दिशाएँ और चौदहों लोक शुद्ध हो जाते हैं।*
*तुलसीवनसंभूता छाया पतति यत्र वै।*
*तत्र श्राद्धं प्रदातव्यं पितॄणां तृप्तिहेतवे।।२०।।*
*जहाँ तुलसीवन की छाया पड़ती है, वहाँ श्राद्ध करने से पितर अत्यंत तृप्त होते हैं।*
*तुलसी पूजिता नित्यं सेविता रोपिता शुभा।*स्नापिता तुलसी यैस्तु ते वसन्ति ममालये।।२१।।*
*जो लोग तुलसी की नित्य पूजा, सेवा, रोपण और स्नान करते हैं, वे मेरे धाम में निवास करते हैं।*
*सर्वपापहरं सर्वकामदं तुलसीवनम्।न पश्यति समं सत्ये तुलसीवनरोपणात्।।२२।।*
*तुलसीवन पापों का नाशक और सभी कामनाओं का पूरक है। सत्य युग में भी तुलसीवनारोपण के समान कोई पुण्य नहीं।*
*तुलस्यलङ्कृता ये वै तुलसीवनपूजकाः।*
*तुलसीस्थापका ये च ते त्याज्या यमकिङ्करैः।।२३।।*
*जो तुलसीवन की स्थापना, पूजन और तुलसीमाला धारण करते हैं, यमदूत उन्हें कभी नहीं छूते।*
*दर्शनं नर्मदायास्तु गङ्गास्नानं कलौ युगे।*
*तुलसीदलसंस्पर्शः सममेतत्त्रयं स्मृतम्।।२४।।*
*कलियुग में नर्मदा-दर्शन, गंगा-स्नान और तुलसीदल-स्पर्श- तीनों समान पुण्यदायक माने गए हैं।*
*दारिद्र्यदुःखरोगार्तिपापानि सुबहून्यपि।*
*हरते तुलसीक्षेत्रं रोगानिव हरीतकी।।२५।।*
*जैसे हरड़ रोगों को हर लेती है, वैसे ही* *तुलसीवन दारिद्र्य, दुःख, रोग और पाप-* *सबको दूर कर देता है।*
*तुलसीकानने यस्तु मुहूर्तमपि विश्रमेत्।*
*जन्मकोटिकृतात् पापात् मुच्यते नात्र संशयः।।२६।।*
*जो व्यक्ति तुलसीवन में केवल एक मुहूर्त भी विश्राम करता है, वह करोड़ों जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है।*
*नित्यं तुलसिकारण्ये तिष्ठामि स्पृहया युतः।अपि मे क्षतपत्रैकं कश्चिद्धन्योऽर्पयेदिति।।२७।।*
*भगवान श्रीहरि कहते हैं- मैं तुलसीवन में सदा रहता हूँ, इस आशा से कि कोई धन्य भक्त मुझे एक भी तुलसीपत्र अर्पित करे।*
*तुलसीनाम यो ब्रुयात् त्रिकालं वदने नरः।*
*विवर्णवदनो भूत्वा तल्लिपिं मार्जयेद्यमः।।२८।।*
*जो मनुष्य दिन में तीन बार “तुलसी” नाम लेता है, उसके मुख की लिपि (कर्मफल) यमराज स्वयं मिटा देते हैं।*
*शुक्लपक्षे यदा देवि तृतीया बुधसंयुता।*
*श्रवणया च संयुक्ता तुलसी पुण्यदा तदा।।२९।।*
*जब शुक्लपक्ष की तृतीया बुधवार के साथ और श्रवण नक्षत्रयुक्त हो, उस दिन तुलसी पूजा विशेष पुण्य प्रदान करती है।*
*।। इति श्री तुलसीगीता सम्पूर्ण: ।।🍃🙏*
*तुलसी देवी श्रीहरि की अर्धांगिनी स्वरूपा हैं। जो मनुष्य श्रद्धा से *तुलसी की सेवा, पूजन, रोपण या नामस्मरण करता है,वह विष्णुलोक का अधिकारी होता है।* *तुलसीवन ही कलियुग का जीवंत तीर्थ है।*
*🙏🌹।। जय जय तुलसी मैया की ।।🍃🙏*


