नासदीय सूक्त — ऋग्वेद की वह चिंतनशील पंक्ति जो “नासदासीन्नो सदासीद...” कहकर सीधे पूछती है: “तब न अस्तित्व था, न अनस्तित्व; मृत्यु भी नहीं थी, न अविनाशी” 🌌📜 — अर्थ: तब कुछ भी स्पष्ट रूप से मौजूद नहीं था और फिर भी कुछ ऐसा 'श्वास' जैसा था; यह सिर्फ एक धार्मिक श्लोक नहीं बल्कि प्राचीन स्तर पर उठाई गई वैज्ञानिक-जिज्ञासा है जो ब्रह्मांड के आरम्भ के “कब, कैसे और किसके द्वारा” जैसे सवालों पर प्रश्नचिन्ह लगाती है; आधुनिक संदर्भ में इसे इस तरह देखें कि विज्ञान आज बिग बैंग सिद्धांत और Cosmic Microwave Background जैसी प्रेक्षण योग्य खोजों से ब्रह्मांड के आरम्भ का मॉडल देता है पर नासदीय सूक्त जैसा संदेह बताता है कि “क्यों” और “किसने” के अंतिम उत्तर फिलहाल दार्शनिक रहते हैं — अर्थात धर्म और विज्ञान अलग-алग तरीकों से सत्य की पड़ताल करते हैं: जहाँ कोई धार्मिक दावा तार्किक या ऐतिहासिक रूप से गलत हो उसे स्पष्ट करना चाहिए और जहाँ प्रमाण हैं उन्हें अपनाना चाहिए; यह सूक्त (ऋग्वेद 10.129) अपनी शंकात्मक शैली के कारण आधुनिक विद्वानों और कार्ल सैगन जैसे चिंतकों द्वारा उद्धृत भी हुआ है — सोचिए, क्या उत्पत्ति का अंतिम उत्तर केवल धर्म में है, केवल विज्ञान में है, या दोनों मिलकर ही सही राह दिखा सकते हैं? बताइए अपनी राय नीचे कमेंट में! 🔭✨🙏 #नासदीय #ऋग्वेद10_129 #Rigveda #ब्रह्मांड #AncientQuestions #ScienceAndDharma
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