ठहराव जरूरी है।
जरूरी है,
भीड़ से निकल एकांत की ओर चल पड़ना।
जरूरी है, खुद से मिल लेना वक्त-बे-वक्त।
जो ठहरता नहीं,
वो एक दिन भागते हुए गिर पड़ता है
और कभी नहीं उठता।
भीड़ एक दिन देह को निगल लेती है,
मन लुप्त हो जाता है।
खुद से मिलने में देर होने पर
खुद को खो बैठते हैं लोग और
जीवन भर दर्पण में एक पुतला तकते रहते हैं।
जरूरी है, जीवन का होना
जीवित होना नहीं।
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