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#राधे राधे *मन चंगा तो कठौती में गंगा"* (सेवा का आकार नहीं, भाव का आधार मायने रखता है) मंदिर में भंडारा चल रहा था। भजन की स्वर-लहरियाँ, देसी घी की खुशबू, और श्रद्धालुओं की कतारें... एक कोने में तीन युवा मित्र भोजन कर रहे थे। बातों-बातों में मन की एक कसक सामने आ गई... पहला बोला — "काश यार, हम भी ऐसे भंडारे कर पाते… सौ-दो सौ लोगों को खिलाते, पुण्य कमाते…" दूसरा बोला — "लेकिन सैलरी तो जैसे खर्चों से पहले ही विदा ले लेती है…" तीसरा बोला — "घर, बच्चे, खर्चे... कहाँ से करें भंडारा? हमारी तो हालत ही अलग है!" पास ही बैठे महात्मा जी यह सब सुन रहे थे। वे मुस्कराए, थाली एक ओर रखी और बोले: "बेटा, भंडारे के लिए ज़रूरी नहीं कि हजारों रुपए हों, भंडारे के लिए चाहिए बड़ा मन, न कि बड़ी थाली।" तीनों मित्र चौंक गए। महात्मा जी बोले: "एक बिस्किट का पैकेट लो, उसका चूर्ण बनाकर चींटियों के रास्ते में डाल दो... वे बिना कहे आएँगी… यही तो है सच्चा भंडारा।" "छत पर चावल के कुछ दाने डाल दो, कबूतर-चिड़ियाँ आ जाएँगी... और देखना, कोई जवाब न देगा, पर मन भर जाएगा।" "एक रोटी किसी गाय को, एक बूँद जल किसी प्यासे जीव को… ईश्वर हर प्राणी के लिए भोजन तय करता है, तुम बस उसके माध्यम बन जाओ।" महात्मा बोले — > "जो सेवा बिना शोर के हो, वही सच्चा पुण्य है। बिना निमंत्रण, बिना प्रचार, बिना प्रतीक्षा — जब कोई जीव आकर खा जाए, वही है वो भंडारा, जो मन से निकलता है और स्वर्ग तक पहुँचता है।" तीनों युवकों की आँखें नम थीं, पर दिल पूर्ण… आज उन्होंने जाना कि सेवा का मूल्य थाली से नहीं, भावना से आँका जाता है। *भावार्थ:* जब मन में श्रद्धा हो और हाथों में सेवा, हो तो भगवान खुद आ जाते हैं..!! *🙏🏻जय श्री कृष्ण*🙏
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