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#kalyug ka kalki #kalki #🌺भगवान कल्कि जयंती🌺 #भगबान कल्कि अवतार ❤🙏🏻 #KALKI RAJ
kalyug ka kalki - fava' सत्यमेव जयते जय अहिंसा शांति नवीन विश्व धर्म कल्कि ज्ञान सागर सतयुगी विश्व अहिंसा परमोधर्म का संदेश  मानव के कर्तव्य को कहते है मानव धर्म मानव -मात्र का कर्तव्य है सत्कर्म और सेवा मानव के हृदय से बड़ा कोई धार्मिक स्थल नहीं কললিক মীতল अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ईश्वरीय ज्ञानानुसार सत्कर्म और सेवा से बड़ा कोई मानव धर्म नहीं है।ज्ञात रहे हमारे पूर्वजों ने अज्ञानतावश मानव के कर्तव्य को धर्म नाम देकर मानव धर्म की परिभाषा अवतारी महापुरूषों को ही बदल डाला।जिसके कारण मानव जगत केलोग के नाम पर अलग ्अलग जाति सम्प्रदाय बनाकर , धर्म के नाम पर अनेक महापुरूषों के  प्रकार के धार्मिक स्थल बनाकर , ईश्वर को जगह अवतारी नश्वर तन को भगवान मानकर उनकी सेवा पूजा करने लगे।जिसके कारण मानव सेवा और सत्कर्म रूपी अपने कर्तव्य को भूलकर धर्म के नाम पर में लड़ने लगे है जिसके कारण पर धर्म के प्रति ग्लानि बढ़ने धरती  आपस लगी है।ज्ञात रहे कर्मभूमि पर मानव-्मात्र के लिए सत्कर्म और सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है।जो इंसान कर्मभूमि पर सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म  का पालन करता है, उसे किसी तरह के धर्मग्रंथ पढ़ने की जरूरत नहीं है और नहीं ईश्वर की सेवा , पूजा , पाठ करने की जरूरत है।जिस सत्कर्मी इंसान के हृदय में सृष्टि के जीव-्मात्र के प्रति दया, प्रेम व सेवा के भाव जागृत हो गए, तो समझों वो परमात्मा स्वरूप बन गया, उस इंसान के हृदय में ईश्वर का ही हो जाता है। ऐसे इंसान को परमात्मा स्वरूप कहा गया है प्राकट्य स्वतः मानव के सत्कर्म ही ईश्वर की सच्ची पूजा है। सत्कर्मी निष्काम कर्मयोगी  बनों अपना मानवजीवन सार्थकबनाओं अधिक जानकारी के Kalki Gyan Sagar एप डाउनलॉड करें लिए fava' सत्यमेव जयते जय अहिंसा शांति नवीन विश्व धर्म कल्कि ज्ञान सागर सतयुगी विश्व अहिंसा परमोधर्म का संदेश  मानव के कर्तव्य को कहते है मानव धर्म मानव -मात्र का कर्तव्य है सत्कर्म और सेवा मानव के हृदय से बड़ा कोई धार्मिक स्थल नहीं কললিক মীতল अद्भुत रहस्यमय सृष्टि सृजन के रहस्यमय ईश्वरीय ज्ञानानुसार सत्कर्म और सेवा से बड़ा कोई मानव धर्म नहीं है।ज्ञात रहे हमारे पूर्वजों ने अज्ञानतावश मानव के कर्तव्य को धर्म नाम देकर मानव धर्म की परिभाषा अवतारी महापुरूषों को ही बदल डाला।जिसके कारण मानव जगत केलोग के नाम पर अलग ्अलग जाति सम्प्रदाय बनाकर , धर्म के नाम पर अनेक महापुरूषों के  प्रकार के धार्मिक स्थल बनाकर , ईश्वर को जगह अवतारी नश्वर तन को भगवान मानकर उनकी सेवा पूजा करने लगे।जिसके कारण मानव सेवा और सत्कर्म रूपी अपने कर्तव्य को भूलकर धर्म के नाम पर में लड़ने लगे है जिसके कारण पर धर्म के प्रति ग्लानि बढ़ने धरती  आपस लगी है।ज्ञात रहे कर्मभूमि पर मानव-्मात्र के लिए सत्कर्म और सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं है।जो इंसान कर्मभूमि पर सत्कर्म और सेवा रूपी मानव धर्म  का पालन करता है, उसे किसी तरह के धर्मग्रंथ पढ़ने की जरूरत नहीं है और नहीं ईश्वर की सेवा , पूजा , पाठ करने की जरूरत है।जिस सत्कर्मी इंसान के हृदय में सृष्टि के जीव-्मात्र के प्रति दया, प्रेम व सेवा के भाव जागृत हो गए, तो समझों वो परमात्मा स्वरूप बन गया, उस इंसान के हृदय में ईश्वर का ही हो जाता है। ऐसे इंसान को परमात्मा स्वरूप कहा गया है प्राकट्य स्वतः मानव के सत्कर्म ही ईश्वर की सच्ची पूजा है। सत्कर्मी निष्काम कर्मयोगी  बनों अपना मानवजीवन सार्थकबनाओं अधिक जानकारी के Kalki Gyan Sagar एप डाउनलॉड करें लिए - ShareChat