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भुला देना मेरे महबूब अब दिल से भुला देना हंसी वादी जहां पर प्यार के नग्मे सुनाए थे कभी हमने। समझ लेना कि हम थे गैर, था रिश्ता बेगानों का, भुला देना कि कुछ सपने सजाए थे कभी हमने । ये दुनिया है रिवाजों की यहां क्या काम उल्फ़त का। यहाँ हर सांस पर पेहरा हुआ करता है रस्मों का , यहाँ चाँदी के सिक्कों पर खुशी नीलाम होती है, ऐवानों में हुआ करता है सौदा दिल के ज़ख्मों का। भुला देना हंसी मंज़र कि जब गुलशन में हम दोनों, जहां को भूलकर नग्में मोहब्बत के सुनाते थे कभी शिकवे किया करते थे इक-दूजे से हम दोनो, खफा हो के फिर एक-दूजे को हम पहरों मनाते थे। सजाते थे वहीं बैठे न जाने ख्वाब हम कितने, गुमां होता था जैसे रक्स करती ज़िन्दगी अपनी, ग़मों से बेहखबर दुनिया की हर तल्खी से नावाकिफ लगा करता था जैसे अब जहाँ की हर खुशी अपनी। भुला देना सभी बातें, मिटा देना सभी यादें, समझ लेना मोहब्बत का यही अंजाम होता है, खुशी को ही मुकद्दर मान लेना थी खता अपनी, ग़मों से भी तो मन्सूब हर इन्सान होता है। "चाँद" #मेरी कलम से