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#दिल के अल्फाज़
दिल के अल्फाज़ - दिल आमिर था, मगर मुकद्दर ग़रीब था हम भी अच्छे थे, पर नसीब अजीब था लाख कोशिश की कि कुछ बदल जाए वक़्त का, घर भी जलता रहा और समुंदर करीब था वो भी अपने थे, पर नज़रों में पर्दा था, हर गिला बेवजह, हर सबब अजीब था रात ढलती रही ख़्वाब जलते रहे दिल में, चाँद दूर आसमां पे, मगर अंधेर क़रीब था अब जो तन्हा हैं, तो शिकवा भी किससे करें, वक़्त हमदर्द था - पर सलीक़ा ग़रीब था दिल आमिर था, मगर मुकद्दर ग़रीब था हम भी अच्छे थे, पर नसीब अजीब था लाख कोशिश की कि कुछ बदल जाए वक़्त का, घर भी जलता रहा और समुंदर करीब था वो भी अपने थे, पर नज़रों में पर्दा था, हर गिला बेवजह, हर सबब अजीब था रात ढलती रही ख़्वाब जलते रहे दिल में, चाँद दूर आसमां पे, मगर अंधेर क़रीब था अब जो तन्हा हैं, तो शिकवा भी किससे करें, वक़्त हमदर्द था - पर सलीक़ा ग़रीब था - ShareChat