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भगवद्गीता — युद्धभूमि की वो यूनिवर्सल किताब जो धर्म, कर्तव्य और आत्म-ज्ञान को 18 अध्यायों और करीब 700 श्लोकों में समेटती है, और आज भी पाठक-मंच, कला और पब्लिक बहस का केंद्र बनी हुई है। हाल ही में इसकी चर्चा नालंदा यूनिवर्सिटी के पैनल और किताबों के मेलों में अंग्रेज़ी संस्करणों की बढ़ती मांग की वजह से देखने को मिली है, जो बताता है कि गीता अब भी नई पीढ़ियों तक पहुँच रही है। विकिमीडिया कॉमन्स पर कृष्ण-अर्जुन की क्लासिक पेंटिंग्स और प्राचीन पाण्डुलिपियाँ व्यापक रूप से उपलब्ध और शेयर हो रही हैं, जिससे विजुअल कल्चरल इंटरेस्ट भी बढ़ा है। साथ ही कुछ मॉडर्न व्याख्याओं पर विवाद और कानूनी बहसें भी उठती रही हैं (उदा. “Bhagavad Gita As It Is” से जुड़ा प्रकरण), जो दिखाता है कि गीता सिर्फ आध्यात्मिक ग्रंथ नहीं बल्कि सामाजिक-राजनीतिक विमर्श का भी हिस्सा बन सकती है। 🔥 हुक: “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” — काम पर ध्यान दो, फल की चिंता छोड़ो। 🤯 तर्क/साइंस का नजरिया: मनोविज्ञान और न्यूरोबायोलॉजी के आधार पर गीता का ‘कर्मयोग’ प्रक्रिया-केंद्रित फोकस और भावनात्मक नियंत्रण सिखाता है — यह स्ट्रेस को कम कर निर्णय क्षमता सुधारने जैसा व्यावहारिक लाभ दे सकता है, इसलिए गीता को आध्यात्मिक + प्रैक्टिकल दोनों तरह से पढ़ना उपयोगी है। 📚🙏 🔱 #भगवद्गीता #Gita #कर्मयोग #ज्ञान #Krishna #Arjuna 📖 — आप अगली post किस पर बनी देखना चाहते हैं comment करें. #भगवद्गीता #श्रीमद भगवद्गीता #भगवद्गीता गीतासार #श्री भगवद्गीता #भगवद्गीता अध्याय पहिला
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