मीरा बाई जयंती को मीरा बाई के जन्मोत्सव के रूप में हिंदू चंद्र माह अश्विन की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। मीरा बाई के जीवन से जुड़ी कई बातें आज भी रहस्य मानी जाती हैं। मीरा बाई 16वीं शताब्दी की हिंदू रहस्यवादी कवि और भगवान कृष्ण की अनन्य भक्त थीं। उनकी मृत्यु भी भगवान की मूर्ति में हुई। मीरा बाई ने जीवन भर भगवान कृष्ण की पूजा की थी। मीराबाई राजस्थान के जोधपुर के मेड़वा राजकुल की राजकुमारी थीं। मीराबाई मेड़ता महाराज के छोटे भाई रतन सिंह की इकलौती संतान थीं। जब मीरा केवल दो वर्ष की थीं, तब उनकी माता का देहांत हो गया। इसलिए उनके दादा राव दूदा उन्हें मेड़ता ले आए और अपनी देखरेख में उनका पालन-पोषण किया। मीराबाई का जन्म 1498 में शरद पूर्णिमा के दिन राजस्थान के कुडकी में हुआ था।
#मीरा_बाई_जयंती_2025_तिथि:
शरद पूर्णिमा को मीराबाई की जयंती के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2025 में मीरा बाई जयंती मंगलवार, 7 अक्टूबर को पड़ेगी ।
#पूर्णिमा_तिथि_प्रारम्भ: - 06 अक्टूबर 2025 को दोपहर 12:23 बजे
#पूर्णिमा_तिथि_समाप्त: - 07 अक्टूबर 2025 को सुबह 09:16 बजे
#मीरा_बाई_जयंती_पूजा_विधि:
₹स्थान शुद्ध करें: पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।
#आसन बिछाएँ: पूजा स्थल पर लाल या पीले कपड़े का आसन बिछाएँ।
#मूर्तियाँ स्थापित करें: भगवान कृष्ण और मीराबाई की मूर्तियों या तस्वीरों को आसन पर स्थापित करें।
#दीप प्रज्वलित करें: एक दीपक जलाएँ।
#फूल और धूप अर्पित करें: कृष्ण और मीराबाई को ताज़े फूल और धूप अर्पित करें।
#भजन-कीर्तन करें: मीराबाई के गीत और भजनों का पाठ करें, विशेष रूप से 'पायो जी मैंने राम रतन धन पायो'।
#प्रसाद अर्पित करें: भगवान को प्रसाद चढ़ाएँ।
#आरती करें: भगवान कृष्ण की आरती करें।
#प्रार्थना करें: सच्चे प्रेम और भक्ति के साथ मीराबाई के जीवन से प्रेरणा लेकर अपनी प्रार्थनाएँ अर्पित करें।
#मीराबाई_जयंती_का_महत्व:
भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं में मीराबाई जयंती को एक महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। मीराबाई जयंती का संबंध धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी है। मीराबाई जयंती पर श्रीकृष्ण मंदिर की खास तरह से सजावट की जाती है। साथ ही इनके जन्मदिन के अवसर पर सुंदर संगीत और नृत्य के साथ कृष्ण भक्ति की जाती है। मीराबाई के जीवन से धार्मिक सहिष्णुता और एकता का संदेश मिलता है।मीरा बाई जयंती 2025 तिथि
#मीरा_बाई_की_कहानी:
मीराबाई के जीवन से जुड़े कोई ऐतिहासिक दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं हैं। केवल कुछ ऐसी कहानियाँ सुनने और देखने को मिलती हैं जिनमें विद्वानों ने साहित्य और अन्य स्रोतों से मीराबाई के जीवन पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है। इन दस्तावेज़ों के अनुसार, मीरा का जन्म वर्ष 1498 में राजस्थान के मेड़ता में एक राजघराने में हुआ था।
#मीरा_बाई_का_प्रारंभिक_जीवन:
उनके पिता रतन सिंह राठौड़ एक छोटी सी राजपूत रियासत के शासक थे। वे अपने माता-पिता की इकलौती संतान थीं और बचपन में ही उनकी माँ का देहांत हो गया था। उन्हें संगीत, धर्म, राजनीति और प्रशासन जैसे विषयों की शिक्षा दी गई। मीरा का पालन-पोषण उनके दादा के संरक्षण में हुआ, जो भगवान विष्णु के घोर उपासक और योद्धा होने के साथ-साथ भक्त हृदय भी थे। उनके यहाँ साधु-संतों का आना-जाना लगा रहता था। इस प्रकार मीरा बचपन से ही साधु-संतों और धार्मिक लोगों के संपर्क में आती रहीं।
#मीरा_बाई_का_विवाह:
मीरा का विवाह 1516 में राणा सांगा के पुत्र और मेवाड़ के राजकुमार भोज राज से हुआ था। उनके पति भोज राज 1518 में दिल्ली सल्तनत के शासकों के साथ हुए संघर्ष में घायल हो गए थे, जिसके कारण 1521 में उनकी मृत्यु हो गई। उनके पति की मृत्यु के कुछ ही वर्षों के भीतर, उनके पिता और ससुर भी मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के साथ हुए युद्ध में मारे गए।
कहा जाता है कि उस समय की प्रचलित प्रथा के अनुसार पति की मृत्यु के बाद मीरा को पति के साथ सती करने का प्रयास किया गया, लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं हुईं और धीरे-धीरे संसार से विरक्त होकर साध्वी बन गईं। वह अपना समय साधु-संतों की संगत में कीर्तन करते हुए बिताने लगीं। #❤️शुभकामना सन्देश #🌞 Good Morning🌞 #🌸वाल्मिकी जयंती📿 #📢7 अक्टूबर के अपडेट 📰 #🌸मीराबाई जयंती📿