बिहार,
लालू यादव के जंगलराज में कैसे बर्बाद हुआ ,
उसे इस वाकये से समझिए :-
1980- 90 के दशक में बिहार राज्य के छपरा के पास सारण जिले में मढ़ौरा में बिड़ला ग्रुप की Morton लेमनचूस, टॉफी की बड़ी प्रसिद्ध फैक्टरी हुआ करती थी। इस फैक्ट्री में बनने वाली मॉर्टन चॉकलेट अपनी क्वालिटी के दम पर सिर्फ बिहार में ही नही बल्कि दूसरे प्रदेशों के साथ-साथ विदेशों तक अपनी पहुंच बनाने में कामयाब हुई थी।दूध, चीनी, नारियल के महीन बुरादे वाली मुलायम क्रीम टॉफी और आहिस्ता - आहिस्ता मुंह में घुलने वाली कड़क लैक्टोबॉनबॉन टॉफी , मॉर्टन के दो सबसे लोकप्रिय उत्पाद थे।
सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों के लगभग सभी दुकानों में मॉर्टन चॉकलेट की वेराइटी मिल जाती थी । हमारे राजस्थान सहित पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा गुजरात समेत उत्तर भारत के कई प्रमुख राज्यो में इसकी काफी डिमांड थी । नेपाल से लेकर भूटान तक चॉकलेट का स्वाद हर जुबान पर था ।
इस फैक्ट्री के बगल में बिड़ला ग्रुप की ही चीनी मिल भी थी इसलिए टॉफी की फैक्ट्री के लिए बगल से ही चीनी उपलब्ध थी ।टीवी एड और सभी पत्रिकाओं में एड आते थे। खूब बिकती थी। भारत के हर दुकानदार की मजबूरी थी वह मॉर्टन रखे ।
उस समय टॉफी/चॉकलेट इंडस्ट्री में मॉर्टन से बड़ा दूसरा कोई ब्रांड नही था । सिर्फ चॉकलेट फैक्ट्री का सलाना कारोबार 30 करोड़ के आसपास था । बताते हैं कि जब भी कोई अपने रिश्तेदारों से मिलने जाता था या किसी अफसर से कोई पैरवी लगानी होती तो मॉर्टन चॉकलेट का डिब्बा साथ जरूर ले जाता । सबसे फेमस चॉकलेट मॉर्टन कुकीज 50 पैसे में मिलती थी । जिसका स्वाद आज भी पुराने लोगों को याद है ।
फिर आया 1997 । जुलाई का महीना । बिहार में लालू यादव ने अपनी राबड़ी देवी को अपनी जगह मुख्यमंत्री बना दिया । पूरा बिहार अब अराजकता का राज्य बन चुका था । किसी पर कोई लगाम नहीं थी । बड़े बिजनेस ग्रुप बिहार से भाग रहे थे । ऐसे में बिहार के एक तथाकथित बड़े नेता के एक रिश्तेदार की बुरी नजर इस मार्टन फैक्ट्री पर पड़ गई ।
फिर वो उस फैक्टरी से प्रत्येक महीने एक से डेढ़ लाख रुपये रंगदारी वसूलने लगा । उस समय की यह रकम आज के करोड़ों रुपए के बराबर है ।
आगे बढ़ने से पहले यह जान लेवें कि इस फैक्ट्री में तैयार टॉफी के अन्दर खोया/दूध का मावा भी डाला जाता था। इसके लिए फैक्टरी ने गायें भी पाल रखी थीं, जिनके दूध से खोया/मावा तैयार होता था, मतलब एकदम गाय के दूध से बना खोया।
तो साहब उस नेताजी के रिश्तेदार को नियमित रूप से रंगदारी मिल भी रही थी, लेकिन बाद में रंगदारी और बढ़ा दी गई। बिड़ला ग्रुप रोज रोज की बदमाशी से बुरी तरह परेशान हो गया । बिड़ला ग्रुप ने रंगदारी देने से मना कर दिया । कहते हैं इससे नाराज उस बड़े नेता के रिश्तेदार ने रंगदारी नहीं देने पर, धमकी के तौर पर गायों को खोलकर भगा दिया । हाहाकार मच गया । बिड़ला घराने ने इसकी शिकायत मुख्यमंत्री कार्यालय में भी की लेकिन लालू यादव और राबड़ी देवी ने उनसे मिलने तक से इनकार कर दिया । इसके बाद फैक्ट्री में यूनियनबाजी शुरू हो गई । मजदूरों को भड़काया जाने लगा । मैनेजर्स से भी पैसे की डिमांड होने लगी । उन्हें पीटा जाने लगा ।
इन सब घटनाओं का मतलब साफ था रंगदारी तो देनी ही पड़ेगी । ऐसी अराजक स्थिति देख मालिकों ने फैक्ट्री बंद करने का निर्णय लिया । 1998 में फैक्ट्री बंद हो गई । तब से आज तक बंद ही है । स्थानीय चोर फैक्ट्री से कल पुर्जे , पाइप, टौंटी तक चुरा ले गए ।वर्तमान समय में मॉर्टन की बात की जाए, तो इस फैक्ट्री के अवशेष एक खंडहर के रूप में दिखाई देते हैं. आज यहां एक 20x20 फीट का ऑफिस ब्लॉक, कुछ टॉफी के रैपर के अलावा टूटी दीवारें देखी जा सकती हैं । इस मॉर्टन फैक्ट्री के गार्ड रहे कामाख्या सिंह ने एक पत्रकार को बताया था कि सरकार ने कभी इस कारखाने को पुनर्जीवत करने का प्रयास नहीं किया, जिससे यहां के लोगों को रोजगार मिले और हजारों लोगों को जीवन यापन करने में मदद मिल सके । उन्होंने यह भी कहा कि जो आज पूछ रहे हैं, बिहार में का बा, उनके समय में फैक्ट्री बंद हुई । बिहार को खोखला उन्हीं के राज में कर दिया गया ।
मजबूरन, पिछले 23 साल से यह फैक्टरी बन्द है। और बगल की शुगर फैक्ट्री भी बंद है
बिहार के कोई नेता, कोई पत्रकार इस पर प्रकाश डालेंगे? कोई सामाजिक न्याय के पैरोकार यह बताएँगे के बिहार के चीनी मिल क्यों बन्द हो गए? बेरोजगारी की बात करने वाले तेजस्वी यादव से यह सवाल पूछे जाने चाहिए
साभार #बिहार #प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी