डॉ. राम दयाल मुंडा जी (23 अगस्त 1939 – 30 सितंबर 2011) झारखंड के एक अत्यंत प्रतिष्ठित विद्वान, क्षेत्रीय संगीतकार, सांस्कृतिक कार्यकर्ता और आदिवासी अधिकारों के प्रबल समर्थक थे।
उनके जीवन और कार्यों की प्रमुख बातें इस प्रकार हैं:
जन्म और शिक्षा: उनका जन्म 23 अगस्त 1939 को राँची जिले के तमाड़ क्षेत्र के दिउड़ी गाँव में हुआ था। उन्होंने राँची विश्वविद्यालय से मानवशास्त्र (Anthropology) में स्नातकोत्तर और अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय से भाषाविज्ञान (Linguistics) में पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त की थी।
शैक्षणिक योगदान: वे राँची विश्वविद्यालय के कुलपति (Vice-Chancellor) रहे (1986-1988) और उन्होंने वहाँ जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो उस समय पूरे देश में अपनी तरह का पहला विभाग था।
सांस्कृतिक पुनर्जागरण: उन्होंने आदिवासी संस्कृति के संरक्षण और प्रचार के लिए काम किया। उनका प्रसिद्ध नारा था "नाचि से बाँची" (जो नाचेंगे, वही बचेंगे), जो जीवन और संस्कृति के प्रति उनके गहरे जुड़ाव को दर्शाता है। उन्होंने सरहुल जुलूस के माध्यम से सांस्कृतिक आंदोलन को बढ़ावा दिया।
झारखंड आंदोलन: वे झारखंड राज्य के निर्माण के आंदोलन के एक प्रमुख बौद्धिक और सामाजिक-राजनीतिक वास्तुकार थे। उन्होंने झारखंड विषयक समिति (भारत सरकार) के सदस्य के रूप में भी कार्य किया।
पुरस्कार और सम्मान:
संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (2007)
पद्म श्री (2010), कला के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए।
उन्हें 2010 में राज्यसभा के सदस्य (सांसद) के रूप में मनोनीत भी किया गया था।
प्रमुख रचनाएँ: उनकी प्रमुख रचनाओं में 'आदि धर्म' और मुंडारी व्याकरण से संबंधित कई प्रकाशन शामिल हैं।
डॉ. राम दयाल मुंडा ने देश और विदेश में आदिवासी संस्कृति और अधिकारों का प्रतिनिधित्व किया और झारखंड की जनजातीय पहचान को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में अतुलनीय योगदान दिया। #राम दयाल मुंडा जी #🗞️30 सितंबर के अपडेट 🔴 #aaj ki taaja khabar #🗞breaking news🗞 #🗞️🗞️Latest Hindi News🗞️🗞️