हर काम खुले में ही तो होता है, बंद में कहाँ होता है, इसलिए बेवजह का विवाद पैदा ना करके खुले में इजाज़त देना चाहिए.
गणेश जी खुले में बैठते हैं, दुर्गा माता खुले में बैठती हैं, झाँकियां खुले में लगती हैं, भण्डारे खुले में होते हैं, शोभायात्रा, चल समारोह, चुनरी यात्रा, कांवण यात्रा भी खुले में होती है, तो फिर कुर्बानी खुले में क्यों नहीं?
हालांकि यह तो ठीक ही है कि किसी भी जानवर की क़ुरबानी खुले में नहीं होना चाहिए, जहाँ तक मुमकिन हो इसे गैरों की नज़रों से बचा कर ही करना चाहिए.
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