*सरकारी अस्पताल भी दिनदहाड़े लूट का अड्डा बन गया है*
*(मरीज के साथ बंधक जैसा व्यवहार)*
हमारे साथी सुभाष मौर्य की पत्नी सुनीता देवी हैदराबाद में निम्स (Nizam Institute Of Medical Science) अस्पताल में भर्ती हैं। उनको एक बीमारी हो गयी है जिसमें उनका हाथ पैर एकदम शिथिल हो गया है। बेहोशी जैसी हालत बनी हुई थी। अब मामूली सुधार है।
हालांकि हैदराबाद का निम्स अस्पताल को सरकार ने नहीं निज़ाम ने बनवाया था। मगर यह हास्पिटल सरकारी है। इसमें ज्यादातर नर्सें संविदा पर हैं, कुछ डाक्टर भी संविदा पर हो सकते हैं, ज्यादातर डाक्टर सरकारी हैं, बिल्डिंग सरकारी है। अस्पताल के भीतर मेडिकल स्टोर प्राइवेट हैं, ज्यादातर जांच मशीनरी प्राइवेट हैं, सुरक्षा गार्ड प्राइवेट हैं। जहां जहां से मोटा मुनाफा मिल सकता है, वह सब प्राइवेट है। जहां मुनाफे की गुंजाइश कम या नहीं है, जैसे बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर सड़क, विल्डिंग्स वगैरह सब सरकारी है।
लोग सरकारी अस्पताल समझ कर यहां इलाज कराने आते हैं, मगर अब यह सरकारी अस्पताल खुलेआम लूट का अड्डा बन गया है। यहां मरीजों को खुलेआम लूटा जाता है। अस्पताल के अंदर जो मेडिकल स्टोर है उसमें अंधाधुंध मुनाफा लूटा जा रहा है।
यहां अस्पताल के अन्दर जो दवा पन्द्रह हजार रूपए की थी, वही दवा बाजार में नौ सौ अस्सी रूपए।
जो दवा अस्पताल के अन्दर सड़सठ सौ की मिली, वही दवा बाहर बाजार में दो सौ बीस रूपए में मिल गयी।
अस्पताल के अन्दर जो दवा चालीस हजार की मिली थी, वही दवा बाजार में सात हजार में मिल गयी।
जो दवा अस्पताल में बारह सौ में मिली वही दवा बाजार में सौ रुपए में मिल गयी।
अस्पताल में चारों तरफ खटमल है, तीमारदार को बैठने तक के लिए कोई सुरक्षित जगह नहीं है।
आईसीयू का एक वार्ड है, इसके दो पार्ट हैं दोनों में मिलाकर 20 बेड हैं। उपरोक्त मरीज सुनीता का 4 जून से 7 जुलाई तक का केवल बेडचार्ज 102000 (एक लाख दो हजार) रूपये लिया जा रहा है। इस दर से देखा जाए तो एक मामूली आईसीयू वार्ड से 20 मरीजों से करीब 20 लाख रुपए हर महीने वसूला जा रहा है। सुनीता पर इन्वेस्टीगेशन चार्ज 182388 (एक लाख बयासी हजार तीन सौ अठ्ठासी) रुपए, ड्रग्स और डिस्पोजेबुल्स चार्ज 21138(इक्कीस हजार एक सौ अड़तीस) रुपए, मिसलेनियस चार्ज 185583(एक लाख पचासी हजार पांच सौ तिरासी) रूपये हुए। इस तरह कुल 491109 (चार लाख इक्यानवे हजार एक सौ नौ) रुपए मरीज के परिजनों से मांगा जा रहा है। इसमें लगभग एक लाख रूपये जमा कराने के बाद इलाज शुरू किया गया था। करीब 4 लाख रूपये बाकी हैं। 5 लाख रुपए की दवा बाहर से लाना पड़ा था। लगभग इसी तरह पूरे आईसीयू वार्ड के पन्द्रह मरीजों से करीब 70-80 लाख रूपए से ज्यादा हर महीने वसूली होती होगी।
23 जून को सुनीता के परिजनों ने डाक्टरों को बता दिया कि इलाज कराते-कराते उनकी आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गयी है कि अब वे इलाज कराने की हैसियत में नहीं हैं। परिजनों का कहना है कि तब से मरीज को केवल बेड पर लिटाया गया है। पैसे के अभाव में उसे कोई उचित इलाज या सुविधा नहीं दी जा रही है। बकाया पैसा वसूलने के लिए अस्पताल प्रशासन द्वारा मरीज को बंधक जैसी अवस्था में रखा गया है।
*इसे लूट नहीं कहा जाए तो क्या कहा जाए?*
*रजनीश भारती*
*जनवादी किसान सभा*
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