हम दिल से बोलें या दिमाग से... क्या फ़र्क पड़ता है?
सुनने वाला तो अपने हिसाब से ही समझेगा।
लेकिन दौर 'दिमागी' है... दिमाग से ही बोला जाए तो ठीक होगा।
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