P S Yadav Ajanabi
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#📚कविता-कहानी संग्रह #📓 हिंदी साहित्य #शब्द संवाद #✍️ साहित्य एवं शायरी
📚कविता-कहानी संग्रह - ऋतुओं का रंग घनेरा  निशा के अंधियारों से॰ भोर प्रभात का हुआ सवेरा। जाग ন ভ্ালা चमके मोती सी  शबनम भानु की किरणों ತಾTI स्वप्नों की नींदों से जाग॰ओ उत्कल मन्द पवन झोंका यौवन में प्रफुल्लित प्रकृति भू पर ऋतुओं का रंग घनेरा।  उठ चली सभा शशि तारों की॰शयन कक्ष की अब बारी। उदित हुआ दिवाकर अब तारों की नींद भी जैसे बेचारी। यह वक्त की है बेबाकी कोई सोता तो कोई उदित होता, सीखो प्रकृति से यह जीवन जैसे सुख दुःख का है घेरा। चहुं ओर पक्षियों का गुंजन  पशुओं के भी बाजे मृदंगम।  विहंगम भौंरों और पुष्पों का संगम।  चहुं ओर नभ थल हर जीव वनस्पति चेतन पर्वत नदियां समुद्र भी जागृत धरती पर जीव जगत को॰ भोर बन जाता कार्य का फेरा। पी एस " यादव ' अजनबी प्रभात किरण के उगते ही॰मृत होता है निशि अंथियारा। सुबह के जागते ही॰ जीवन पाता   यह जगत सारा। एक जल में थल में जीवों को उगती भोर जागृति मंगलमय प्रकृति की नव  संरचना से॰प्रफुल्लित होता है मन मेरा। चांद की उदित किरण का॰धरा पर होता जब आगमन। तब धरती पर जीवों के हृदय में होता एक नव सृजन।  सागर की लहरों में उमंग , युगल प्रेम में जागे है अंगड़ाई 434 प्रभात के जगते ही उदित किरणों जाता अंधेरा मंद मंद पवन हिल़ोरें जैसे॰ हृदय में भरती हैं तरुणाई। हरियाली से सजी धरा, यौवन भी जैसे ले रहा अंगड़ाई | प्रकृति की आभा देख कर जन जिन में उत्साह जागा, मातृभूमि की छटा निराली हर हृदय में उजाला बखेरा। ऋतुओं का रंग घनेरा  निशा के अंधियारों से॰ भोर प्रभात का हुआ सवेरा। जाग ন ভ্ালা चमके मोती सी  शबनम भानु की किरणों ತಾTI स्वप्नों की नींदों से जाग॰ओ उत्कल मन्द पवन झोंका यौवन में प्रफुल्लित प्रकृति भू पर ऋतुओं का रंग घनेरा।  उठ चली सभा शशि तारों की॰शयन कक्ष की अब बारी। उदित हुआ दिवाकर अब तारों की नींद भी जैसे बेचारी। यह वक्त की है बेबाकी कोई सोता तो कोई उदित होता, सीखो प्रकृति से यह जीवन जैसे सुख दुःख का है घेरा। चहुं ओर पक्षियों का गुंजन  पशुओं के भी बाजे मृदंगम।  विहंगम भौंरों और पुष्पों का संगम।  चहुं ओर नभ थल हर जीव वनस्पति चेतन पर्वत नदियां समुद्र भी जागृत धरती पर जीव जगत को॰ भोर बन जाता कार्य का फेरा। पी एस " यादव ' अजनबी प्रभात किरण के उगते ही॰मृत होता है निशि अंथियारा। सुबह के जागते ही॰ जीवन पाता   यह जगत सारा। एक जल में थल में जीवों को उगती भोर जागृति मंगलमय प्रकृति की नव  संरचना से॰प्रफुल्लित होता है मन मेरा। चांद की उदित किरण का॰धरा पर होता जब आगमन। तब धरती पर जीवों के हृदय में होता एक नव सृजन।  सागर की लहरों में उमंग , युगल प्रेम में जागे है अंगड़ाई 434 प्रभात के जगते ही उदित किरणों जाता अंधेरा मंद मंद पवन हिल़ोरें जैसे॰ हृदय में भरती हैं तरुणाई। हरियाली से सजी धरा, यौवन भी जैसे ले रहा अंगड़ाई | प्रकृति की आभा देख कर जन जिन में उत्साह जागा, मातृभूमि की छटा निराली हर हृदय में उजाला बखेरा। - ShareChat
#शब्द संवाद #📓 हिंदी साहित्य #✍️ साहित्य एवं शायरी #📚कविता-कहानी संग्रह
शब्द संवाद - 4| मौसम की बेमानी कुछ यादों का वह खजाना। हरदम याद आता बरसात का भीग जाना। ख्वाबों के वे पन्ने मुझको अतीत में ले जाते हैं, है मुझको बचपन का मुस्कुराना। याद आता मुसलसल जिंदगी में वीरानगी है कुछ ज्यादा, उदासियों के बीच में मुश्किल दिल बहलाना। महफिल की रौनक भी दिखती आज वीरान , दर्दकी आगोश में नहीं मिलता खुशी तराना। अश्कों की वो शाम चिरागों पे भरोसा, हमको उम्मीद की सुबह में छुपा है भोर का ठिकाना। की भीड़ में , साथ में वो अकेलापन, নক্কান্রণী :  आंसुओं में चो जीने का अफसाना। Taa & निशाका अंधेरा और दर्द भरी वो तनहाइयां, हर शख्स दिखता बेगाना। अनजाना शहर पी एस यादव ' अजनबी' 4| मौसम की बेमानी कुछ यादों का वह खजाना। हरदम याद आता बरसात का भीग जाना। ख्वाबों के वे पन्ने मुझको अतीत में ले जाते हैं, है मुझको बचपन का मुस्कुराना। याद आता मुसलसल जिंदगी में वीरानगी है कुछ ज्यादा, उदासियों के बीच में मुश्किल दिल बहलाना। महफिल की रौनक भी दिखती आज वीरान , दर्दकी आगोश में नहीं मिलता खुशी तराना। अश्कों की वो शाम चिरागों पे भरोसा, हमको उम्मीद की सुबह में छुपा है भोर का ठिकाना। की भीड़ में , साथ में वो अकेलापन, নক্কান্রণী :  आंसुओं में चो जीने का अफसाना। Taa & निशाका अंधेरा और दर्द भरी वो तनहाइयां, हर शख्स दिखता बेगाना। अनजाना शहर पी एस यादव ' अजनबी' - ShareChat
#📚कविता-कहानी संग्रह #✍️ साहित्य एवं शायरी #📓 हिंदी साहित्य #शब्द संवाद
📚कविता-कहानी संग्रह - कहां उदित स्वर्णिम सवेरे के दीपों तले सिर्फ विनाश के मिलते वे अंधेरे। नफरत सृजन के पटों पर हमेशा होते श्रृंगारों के सुखद सवेरे।  समता में सम्बंध सजकर महकता हे यह सारा संसार संशय के भावों के अंदर मतभेदों के मिलें दुःख घेनेरे। बदलते रंग गिरगिटों के बातों में हरदम छद्म सी घात। संबंधों की क्या अपेक्षा जिनके सोए से सारे जज्बात। भेद की दीवार बनकर खा जाते हैें निज स्नेह संवाद बहम के अंधियारों में सिर्फ कुंठाओं के मिलते बसेरे। सत्य में जहां झूठ पलता, वहां अनुसरण अवहेलना।  प्रेम की अनुगूँज नहीं बहां नफरतोंकी सिर्फ वेदना।  उन व्यवहारों से निज संवादों में उदासीनता, त्रिशंकु  जीवन की नर्क गलियों में कहां उदित स्वर्णिम सवेरे। अवसादों की पीड़ाओं में॰ कहां उमंगों की बो बरसात। झूठ की उन मीनारों में कहां जीवन रूपी वो प्रभात।  गिरी हुई सोचों के अंदर सिर्फ अवसरवादी व्यवहार उजड़े हुए खंडहरों में मिलते नहीं हें हरियाली के घेरे। रावण की कुल में मिलते विनाश के श्रृंगार।  परम्परा दुर्योधन की कूटनीति में हमेशा पाण्डवों का संहार। केसे हो उत्थान धरा का॰मन में बैठा हुआ अभिमान चरित्र पतन के बाद नही स्वाभिमान के पल सुनहरे। झूठी उड़ानों के अंदर नहीं कभी ऊंचाई का आधार।  शोषण की जन नीतियों में सिर्फ झूठ का ही प्रसार।  करूणा त्याग जहां पर बही सफलता के उत्थान, सच्चाई के मिटते ही जिँदगी भी उजड़ा खंडहर खेरे। कहां उदित स्वर्णिम सवेरे के दीपों तले सिर्फ विनाश के मिलते वे अंधेरे। नफरत सृजन के पटों पर हमेशा होते श्रृंगारों के सुखद सवेरे।  समता में सम्बंध सजकर महकता हे यह सारा संसार संशय के भावों के अंदर मतभेदों के मिलें दुःख घेनेरे। बदलते रंग गिरगिटों के बातों में हरदम छद्म सी घात। संबंधों की क्या अपेक्षा जिनके सोए से सारे जज्बात। भेद की दीवार बनकर खा जाते हैें निज स्नेह संवाद बहम के अंधियारों में सिर्फ कुंठाओं के मिलते बसेरे। सत्य में जहां झूठ पलता, वहां अनुसरण अवहेलना।  प्रेम की अनुगूँज नहीं बहां नफरतोंकी सिर्फ वेदना।  उन व्यवहारों से निज संवादों में उदासीनता, त्रिशंकु  जीवन की नर्क गलियों में कहां उदित स्वर्णिम सवेरे। अवसादों की पीड़ाओं में॰ कहां उमंगों की बो बरसात। झूठ की उन मीनारों में कहां जीवन रूपी वो प्रभात।  गिरी हुई सोचों के अंदर सिर्फ अवसरवादी व्यवहार उजड़े हुए खंडहरों में मिलते नहीं हें हरियाली के घेरे। रावण की कुल में मिलते विनाश के श्रृंगार।  परम्परा दुर्योधन की कूटनीति में हमेशा पाण्डवों का संहार। केसे हो उत्थान धरा का॰मन में बैठा हुआ अभिमान चरित्र पतन के बाद नही स्वाभिमान के पल सुनहरे। झूठी उड़ानों के अंदर नहीं कभी ऊंचाई का आधार।  शोषण की जन नीतियों में सिर्फ झूठ का ही प्रसार।  करूणा त्याग जहां पर बही सफलता के उत्थान, सच्चाई के मिटते ही जिँदगी भी उजड़ा खंडहर खेरे। - ShareChat
#happy birthday #रानी लक्ष्मीबाई जयंन्ती
happy birthday - बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी। महयन वीरांगना 19 নননয Tj लक्ष्मीबाई जी की जयंती पर उन्हें कोटि कोटि प्रणाम बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी। महयन वीरांगना 19 নননয Tj लक्ष्मीबाई जी की जयंती पर उन्हें कोटि कोटि प्रणाम - ShareChat
#इंदिरा गांधी की जयंती #🌹 पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जयंती 🌹 #जन्मदिन #happy birthday
इंदिरा गांधी की जयंती - भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्रीमती Indira Candhi को उनके जन्म ज्यंती पर उन्हें 19 शत् शत् नमन Nov. क्षवपूर्णश्रिद्वाजलि भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्रीमती Indira Candhi को उनके जन्म ज्यंती पर उन्हें 19 शत् शत् नमन Nov. क्षवपूर्णश्रिद्वाजलि - ShareChat
#🪔देवउठनी एकादशी📿
🪔देवउठनी एकादशी📿 - १ नवम्बर तुलस ववाe देवउठनी एकादशी तुलसी विवाह की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं 4364 १ नवम्बर तुलस ववाe देवउठनी एकादशी तुलसी विवाह की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं 4364 - ShareChat
#🪔देवउठनी एकादशी📿
🪔देवउठनी एकादशी📿 - 01 নননয श्रीकृष्ण 7 द्वारा कंस के अत्याचारों का अंत करने के दिवस भगवान  3Iq& தினம் 01 নননয श्रीकृष्ण 7 द्वारा कंस के अत्याचारों का अंत करने के दिवस भगवान  3Iq& தினம் - ShareChat
#जय श्री कृष्णा
जय श्री कृष्णा - ना पैसा लगता है॰ ना खर्चा लगता है राधे राधे बोलिए बड़ा अच्छा लगता है। Gilaol 6l2 [ [ ना पैसा लगता है॰ ना खर्चा लगता है राधे राधे बोलिए बड़ा अच्छा लगता है। Gilaol 6l2 [ [ - ShareChat