Sunil Das prajapati
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https://youtube.com/watch?v=3rPW1Gn_iC0&si=L216ZhzCwkN_a0o5 #यथार्थ_गीता_ज्ञान
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#यथार्थ_गीता_ज्ञान गीता अध्याय 18, श्लोक 66 गीता ज्ञान दाता काल कहता है, " मेरी सभी धार्मिक पूजाओं को मुझमें त्याग कर, तू केवल उस एक पूर्ण परमात्मा की शरण में जा। मैं तुझे सभी पापों से मुक्त कर दूंगा; तू शोक मत कर। 1Sant Rampal Ji Maharaj
यथार्थ_गीता_ज्ञान - गीता के रहस्यों का महाखुलासा अन्थ गीता अनुवाद कर्ताओं ने शब्द का अर्थ आना किथा है 9எ 70 जो अनुचित है शब्द का अर्थ जाना , 'সস' आदि होता है। चला जान अध्याय १८ का श्लोक ६६ सर्वधर्मान् , परित्यज्य , माम् , एकम् , शरणम् , व्रज, अहम् , त्वा, सर्वपापेभ्यः, मोक्षयिष्यामि , मा, शुचःIl६६I१ मेरी ( सर्वधर्मान् ) सम्पूर्ण (माम् ) मुझ में (परित्यज्य ) पूजाओंको तू केवल ( एकम् ) एक उस अद्वितीय अर्थात् যেখবং पूर्ण परमात्मा की (शरणम् ) शरणमें (व्रज ) जा। ((अहम् ) मैं (त्वा ) तुझे ( सर्वपापेभ्यः ) पा्पोंसे सम्पूर्ण  (मोक्षयिष्यामि ) छुड़वा दूँगा तू (मा ,शुचः ) शोक मत कर। निःशुल्क पायें  पवित्र पुस्तक अपना नाम , पूरा पता भेजें गगा নান +91 7496801823 SPIRITUAL LEADER X SANT RAMPAL Jl SUpREMEGODORG @SAINTRAMPALJIM SAINT RAMPAL JI MAHARAI गीता के रहस्यों का महाखुलासा अन्थ गीता अनुवाद कर्ताओं ने शब्द का अर्थ आना किथा है 9எ 70 जो अनुचित है शब्द का अर्थ जाना , 'সস' आदि होता है। चला जान अध्याय १८ का श्लोक ६६ सर्वधर्मान् , परित्यज्य , माम् , एकम् , शरणम् , व्रज, अहम् , त्वा, सर्वपापेभ्यः, मोक्षयिष्यामि , मा, शुचःIl६६I१ मेरी ( सर्वधर्मान् ) सम्पूर्ण (माम् ) मुझ में (परित्यज्य ) पूजाओंको तू केवल ( एकम् ) एक उस अद्वितीय अर्थात् যেখবং पूर्ण परमात्मा की (शरणम् ) शरणमें (व्रज ) जा। ((अहम् ) मैं (त्वा ) तुझे ( सर्वपापेभ्यः ) पा्पोंसे सम्पूर्ण  (मोक्षयिष्यामि ) छुड़वा दूँगा तू (मा ,शुचः ) शोक मत कर। निःशुल्क पायें  पवित्र पुस्तक अपना नाम , पूरा पता भेजें गगा নান +91 7496801823 SPIRITUAL LEADER X SANT RAMPAL Jl SUpREMEGODORG @SAINTRAMPALJIM SAINT RAMPAL JI MAHARAI - ShareChat
#यथार्थ_गीता_ज्ञान गीता अध्याय 18 श्लोक 62 हे भारत! तू सब प्रकार से उस परमेश्वर की ही शरण में जा। उस परमात्मा की कृपा से ही तू परम शांति को तथा सनातन परम धाम को प्राप्त होगा। इस श्लोक में गीता ज्ञान दाता अपने से अन्य सर्व शक्तिमान पूर्ण परमात्मा की शरण में जाने को कह रहा है, उसकी शरण में जाने से ही पूर्ण शांति व सनातन परम धाम (सत्यलोक/अविनाशी लोक) की प्राप्ति होगी।Sant Rampal Ji Maharaj
यथार्थ_गीता_ज्ञान - गीता গান गीता अध्याय १८ श्लोक ६२ अध्याय १८ का श्लोक ६२ हे भारत! तू सब प्रकार से उस परमेश्वर की की ही शरण में जा। उस परमात्मा की कृपा तम् एव शरणम् गच्छ सर्वभावेन भारत ही तू तत्प्रसादात् पराम् शान्तिम स्थानम् प्राप्स्यसि परम शान्ति को तथा सदा रहने 81847//62// वाले सतलोक को प्राप्त होगा| भारत) हे भारत! तू ( सर्वभावेन ) सब प्रकारसे अनुवादः (तम्) उस परमेश्वरकी ( एव) ही (शरणम् ) शरणमें संत रामपाल जी महाराज जी से (गच्छ) जा। (तत्प्रसादात्) उस परमात्माकी कृपा से ही निःशुल्क नामदीक्षा व निःशुल्क  तू (पराम् ) परम (शान्तिम्) शान्तिको तथा ( शाश्वतम्) +91 7496801823 पुस्तक प्राप्त करने के लिये संपर्क सूत्र : वाला सत ( स्थानम्) स्थान। धाम। लाक को रहने Hcl अर्थात् सत्लोक को (प्राप्स्यसि) प्राप्त होगा। (६२) गीता গান गीता अध्याय १८ श्लोक ६२ अध्याय १८ का श्लोक ६२ हे भारत! तू सब प्रकार से उस परमेश्वर की की ही शरण में जा। उस परमात्मा की कृपा तम् एव शरणम् गच्छ सर्वभावेन भारत ही तू तत्प्रसादात् पराम् शान्तिम स्थानम् प्राप्स्यसि परम शान्ति को तथा सदा रहने 81847//62// वाले सतलोक को प्राप्त होगा| भारत) हे भारत! तू ( सर्वभावेन ) सब प्रकारसे अनुवादः (तम्) उस परमेश्वरकी ( एव) ही (शरणम् ) शरणमें संत रामपाल जी महाराज जी से (गच्छ) जा। (तत्प्रसादात्) उस परमात्माकी कृपा से ही निःशुल्क नामदीक्षा व निःशुल्क  तू (पराम् ) परम (शान्तिम्) शान्तिको तथा ( शाश्वतम्) +91 7496801823 पुस्तक प्राप्त करने के लिये संपर्क सूत्र : वाला सत ( स्थानम्) स्थान। धाम। लाक को रहने Hcl अर्थात् सत्लोक को (प्राप्स्यसि) प्राप्त होगा। (६२) - ShareChat
#यथार्थ_गीता_ज्ञान गीताजी अध्याय 18 श्लोक 62 प्रमाणित करता है कि पूर्ण परमात्मा गीता ज्ञानदाता से भिन्न है। हे भारत! तू संपूर्ण भाव से उस परमेश्वर की ही शरण में जा। उस परमात्मा की कृपा से ही तू परम शान्ति को तथा सदा रहने वाले अविनाशी स्थान को अर्थात् सतलोक को प्राप्त होगा।” यही प्रमाण गीता जी अध्याय 18 श्लोक 66 में भी दिया गया है।
यथार्थ_गीता_ज्ञान - गीता अध्याय १८ श्लोक ६४ में देखिए अत्यंत गोपनीय रहस्य अध्याय १८ का श्लोक ६४ सर्वगुह्यतमम् भूयः श्रृणु मे, परमम् वचः इष्टः, असि, मे॰ दृढम् इति ततः, वक्ष्यामि ते টিনসূ1/6411 अनुवादः ( सर्वगुह्यतमम्) सम्पूर्ण गोपनीयोंसे अति गोपनीय (मे) मेरे (परमम् ) परम रहस्ययुक्त (हितम् ) हितकारक (वचः ) वचन (ते) तुझे (भूयः ) फिर ( वक्ष्यामि ) कहूँगा (ततः) इसे (श्रृणु) सुन (इति) यह पूर्ण ब्रह्म (मे) मेरा (दृढम् ) पक्का निश्चित ( इष्टः ) इष्टदेव अर्थात् पूज्यदेव (असि) है। (६४) हिन्दीः सम्पूर्ण गोपनीयोंसे अति गोपनीय मेरे परम रहस्ययुक्त हितकारक वचन तुझे फिर कहूँगा इसे सुन यह पूर्ण ब्रह्म मेरा पक्का Rfa इष्टदेव अर्थात प्ज्यदेव है। पवित्र पुर्तक  निःशुल्क पायें अपना नामः परा पता भेज ज्ञान गगा +91 7496801823 ` गीता अध्याय १८ श्लोक ६४ में देखिए अत्यंत गोपनीय रहस्य अध्याय १८ का श्लोक ६४ सर्वगुह्यतमम् भूयः श्रृणु मे, परमम् वचः इष्टः, असि, मे॰ दृढम् इति ततः, वक्ष्यामि ते টিনসূ1/6411 अनुवादः ( सर्वगुह्यतमम्) सम्पूर्ण गोपनीयोंसे अति गोपनीय (मे) मेरे (परमम् ) परम रहस्ययुक्त (हितम् ) हितकारक (वचः ) वचन (ते) तुझे (भूयः ) फिर ( वक्ष्यामि ) कहूँगा (ततः) इसे (श्रृणु) सुन (इति) यह पूर्ण ब्रह्म (मे) मेरा (दृढम् ) पक्का निश्चित ( इष्टः ) इष्टदेव अर्थात् पूज्यदेव (असि) है। (६४) हिन्दीः सम्पूर्ण गोपनीयोंसे अति गोपनीय मेरे परम रहस्ययुक्त हितकारक वचन तुझे फिर कहूँगा इसे सुन यह पूर्ण ब्रह्म मेरा पक्का Rfa इष्टदेव अर्थात प्ज्यदेव है। पवित्र पुर्तक  निःशुल्क पायें अपना नामः परा पता भेज ज्ञान गगा +91 7496801823 ` - ShareChat
#यथार्थ_गीता_ज्ञान गीताजी अध्याय 4 श्लोक 5 में गीता ज्ञान देने वाला भगवान स्वयं को जन्म मरण के अंतर्गत बता रहा है, फिर जन्म मरण से परे अविनाशी व पूजनीय पूर्ण परमात्मा कौन है? जानने के लिए पढ़ें पवित्र पुस्तक ज्ञान गंगा। Sant Rampal Ji Maharaj
यथार्थ_गीता_ज्ञान - गीता का गूढ़ ऱहस्य प्रश्नः - काल भगवान अर्थातू ब्रह्म अविनाशी है या जन्मता=्सरता है? उत्तरः - जन्मता - मरता है। अध्याय 4 का श्लाक प्रमाण के लिए देखें - (भगवान उवाच)  बहनि, मे व्यतीतानि जन्गानि तवच अर्जुन श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 2 श्लोक १२, तानि अहम येर सर्याणिनत्यभ वेत्य परन्तप।।५१  गीता अध्याय 4 श्लोक 5 परन्तप ( अर्जुन) अर्जुन। (मे) সনুনাৎ: এলেপ] मेरे (च) और (तव) तेरे (बहूनि) बहुतनसे ( जन्मानि) गीता अध्याय १० श्लोक 2 जन्म (व्यतीतानि) हो चुके हे। (नानि) उन ( सर्वाणि) सबको (त्वम तू (न) नईी (चैत्य) जानता कितु में गीता ज्ञान दाता स्वयं स्वीकार करता है कि (अहम्) र्म (वेद ) जानता हूँ। (५)  मेरी भी जन्म व मृत्यु होती है, मैं अविनाशी नहीं हूँl परन्तप अर्जुन। मेरे ओर तेरे बहुत रे जन्म हिन्दीः fnd' हो चुके ह। उन सबको  স লাননা বু লচা লাননা संत रामपाल जी महाराज द्वारा ख्ुलासा निःशुल्क पायें पवित्र पुस्तक  अपना नाम, पूर पता भेजे ज्ञान गगा +91 7496801823 SPIRITUAL LEADER SANT RAMPAL @SAINTRAMPALJIM SUPREMEGODORG SAINT RAMPAL JI MAHARAJ गीता का गूढ़ ऱहस्य प्रश्नः - काल भगवान अर्थातू ब्रह्म अविनाशी है या जन्मता=्सरता है? उत्तरः - जन्मता - मरता है। अध्याय 4 का श्लाक प्रमाण के लिए देखें - (भगवान उवाच)  बहनि, मे व्यतीतानि जन्गानि तवच अर्जुन श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 2 श्लोक १२, तानि अहम येर सर्याणिनत्यभ वेत्य परन्तप।।५१  गीता अध्याय 4 श्लोक 5 परन्तप ( अर्जुन) अर्जुन। (मे) সনুনাৎ: এলেপ] मेरे (च) और (तव) तेरे (बहूनि) बहुतनसे ( जन्मानि) गीता अध्याय १० श्लोक 2 जन्म (व्यतीतानि) हो चुके हे। (नानि) उन ( सर्वाणि) सबको (त्वम तू (न) नईी (चैत्य) जानता कितु में गीता ज्ञान दाता स्वयं स्वीकार करता है कि (अहम्) र्म (वेद ) जानता हूँ। (५)  मेरी भी जन्म व मृत्यु होती है, मैं अविनाशी नहीं हूँl परन्तप अर्जुन। मेरे ओर तेरे बहुत रे जन्म हिन्दीः fnd' हो चुके ह। उन सबको  স লাননা বু লচা লাননা संत रामपाल जी महाराज द्वारा ख्ुलासा निःशुल्क पायें पवित्र पुस्तक  अपना नाम, पूर पता भेजे ज्ञान गगा +91 7496801823 SPIRITUAL LEADER SANT RAMPAL @SAINTRAMPALJIM SUPREMEGODORG SAINT RAMPAL JI MAHARAJ - ShareChat
#यथार्थ_गीता_ज्ञान गीता अध्याय 15 श्लोक 16 इस संसार में, दो प्रकार के भगवान हैं, नाशवान और अविनाशी और सभी प्राणियों के शरीर नाशवान और आत्मा अविनाशी कही जाती है। वास्तव में, अविनाशी भगवान इन दोनों से अन्य है जो अमर परमात्मा, परमेश्वर (सर्वोच्च ईश्वर), सतपुरुष के रूप में जाने जाते हैं। #यथार्थ_गीता_ज्ञान Sant Rampal Ji Maharaj
यथार्थ_गीता_ज्ञान - संत रामपाल जी महाराज द्ारा गीता के रहर्स्यों का खुलासा श्रीमद्भगवत गीता अध्याय १५ श्लोक १६ १७ में तीन पुरूष (प्रभु) कहे हैं। गीता अध्याय १५ श्लोक 16 # कहा है कि इस लोक में दो पुरूष प्रसिद्घ हैं : क्षर पुरूष तथा अक्षर पुरूष। ये दोनों प्रभु तथा इनके नाशवान हैं आत्मा तो सबकी अन्तर्गत सर्व प्राणी अमर है। गीता अध्याय १५ श्लोक १७ में कहा है कि उत्तम पुरूष अर्थात् पुरूषोत्तम तो कोई अन्य ही है॰ जिसे परमात्मा कहा गया हैजो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है॰ वह वास्तव में अविनाशी है। अविनाशी   परमात्मा की जानकारी क लिए पढ़ें पवित्र ज्ञान   गंगा | पुस्तक संत रामपाल जी महाराज जी से Sant Rampal Ji Maharaj App Download कीजिये व निःशुल्क निःशुल्क नामदीक्षा पुस्तक प्राप्त करने के लिये संपर्क सूत्र : +917496801823 Coogs Play संत रामपाल जी महाराज द्ारा गीता के रहर्स्यों का खुलासा श्रीमद्भगवत गीता अध्याय १५ श्लोक १६ १७ में तीन पुरूष (प्रभु) कहे हैं। गीता अध्याय १५ श्लोक 16 # कहा है कि इस लोक में दो पुरूष प्रसिद्घ हैं : क्षर पुरूष तथा अक्षर पुरूष। ये दोनों प्रभु तथा इनके नाशवान हैं आत्मा तो सबकी अन्तर्गत सर्व प्राणी अमर है। गीता अध्याय १५ श्लोक १७ में कहा है कि उत्तम पुरूष अर्थात् पुरूषोत्तम तो कोई अन्य ही है॰ जिसे परमात्मा कहा गया हैजो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है॰ वह वास्तव में अविनाशी है। अविनाशी   परमात्मा की जानकारी क लिए पढ़ें पवित्र ज्ञान   गंगा | पुस्तक संत रामपाल जी महाराज जी से Sant Rampal Ji Maharaj App Download कीजिये व निःशुल्क निःशुल्क नामदीक्षा पुस्तक प्राप्त करने के लिये संपर्क सूत्र : +917496801823 Coogs Play - ShareChat
#यथार्थ_गीता_ज्ञान गीता अध्याय 18, श्लोक 62 “हे अर्जुन! तू सब प्रकार से उस परम ईश्वर की ही शरण में जा। उस परमपिता परमात्मा की कृपा से ही तू परम शांति और शाश्वत स्थान- सतलोक (स्थान-धाम) को प्राप्त होगा”। ’सब प्रकार से’ का अर्थ कोई अन्य पूजा नहीं करना बल्कि मन-कर्म-वचन से केवल एक भगवान में विश्वास रखना है।
यथार्थ_गीता_ज्ञान - SANT RAMPAL JIMAHARAJ UNVELLS  THEHYSIERIESOF TIE BEIfI Gita Chapter 18 Verse 62: 0 Bharatl You; in every respect go in the refuge of only that Supreme God. By the grace of that Supreme God only you will attain the supreme peace and the everlasting place Idhaam/lok]i.e Satlok. free Download our Official App To receive Initiation Sant Rampal Ji Maharaj and spiritual books by Sant Rampal Ji Maharaj Ji, GTION Google Play +91 7496801823 message us on WhatsApp: SANT RAMPAL JIMAHARAJ UNVELLS  THEHYSIERIESOF TIE BEIfI Gita Chapter 18 Verse 62: 0 Bharatl You; in every respect go in the refuge of only that Supreme God. By the grace of that Supreme God only you will attain the supreme peace and the everlasting place Idhaam/lok]i.e Satlok. free Download our Official App To receive Initiation Sant Rampal Ji Maharaj and spiritual books by Sant Rampal Ji Maharaj Ji, GTION Google Play +91 7496801823 message us on WhatsApp: - ShareChat
#यथार्थ_गीता_ज्ञान गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में कहा है कि अर्जुन पूर्ण परमात्मा के तत्वज्ञान को जानने वाले तत्वदर्शी संतों के पास जा कर उनसे विनम्रता से पूर्ण परमात्मा का भक्ति मार्ग प्राप्त कर, मैं उस पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग नहीं जानता। संत रामपाल जी महाराज ही वह तत्वदर्शी संत हैं।
यथार्थ_गीता_ज्ञान - GIVER OF THE KNOWLEDGE OF GITA DESCRIBES] HIMSELF AS KAAL In Bhagavad Gita Chapter 11 Verse 32, Kaal Godis saying that am the enlarged Kaal the destroyer of the lokslworlds have come (appeared) at this time to destroy the worldslloks Even without you; these warriors arrayed in the opponent's armyl will not survive i.e will eat them Official App To receive free Initiation Download our and spiritual books by Sant Rampal Ji Maharaj Sant Rampal Ji Maharaj Ji, 511 Google Play +91 7496801823 message us on WhatsApp: GIVER OF THE KNOWLEDGE OF GITA DESCRIBES] HIMSELF AS KAAL In Bhagavad Gita Chapter 11 Verse 32, Kaal Godis saying that am the enlarged Kaal the destroyer of the lokslworlds have come (appeared) at this time to destroy the worldslloks Even without you; these warriors arrayed in the opponent's armyl will not survive i.e will eat them Official App To receive free Initiation Download our and spiritual books by Sant Rampal Ji Maharaj Sant Rampal Ji Maharaj Ji, 511 Google Play +91 7496801823 message us on WhatsApp: - ShareChat