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आर एस एस के सौ वर्ष पूर्ण
राम मोहन चौकसे
सर्वप्रथम देश और सेवा की शुद्ध भावना से गठित किसी स्वयंसेवी संगठन के सफलतापूर्वक सौ वर्ष पूरे होना अपने आप में गौरव की बात है।राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ऐसा ही संगठन है,जिसके सौ वर्ष पूरे हो गए है।राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ राष्ट्रवादी हिंदू ,अर्द्ध सैनिक और स्वयं सेवी संगठन का मिला जिला स्वरूप है।जिसे प्रचलन की भाषा में आर एस एस कहा जाता है।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को भाजपा का पैतृक संगठन भी माना जाता है। विश्व के सबसे बड़े स्वयं सेवी संगठन आर एस एस का एक मात्र उद्देश्य मातृ भूमि के लिए निस्वार्थ सेवा करना है। 99 वर्ष पूर्व 27 सितंबर 1925 को विजया दशमी के दिन इस संगठन की स्थापना की गई थी। इस संगठन का मुख्यालय नागपुर में है।पूरे विश्व में इस संगठन के लगभग 60 लाख सदस्य हैं। 56659 शाखाएं हैं।संघ का ध्वज भगवा रंग का है।इस संघ के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार हैं।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान यूरोपीय अधिकार के लिए गठित विभिन्न समूहों से आर एस एस के गठन की प्रेरणा मिली।भारत का इतिहास गवाह है कि आर एसएस ने देश पर आई प्राकृतिक आपदाओं और देश पर आए संकट के समय बिना प्रचार के अपनी देश भक्ति का उदाहरण पेश किया है।आर एस एस ने 1962 के युद्ध के समय जवानों की मदद की।कश्मीर सीमा पर निगरानी की।सैनिक आवाजाही के मार्गों की चौकसी की। रसद आपूर्ति में मदद की। शहीदों के परिवारों की चिंता की। 1963 में 26 जनवरी की परेड में संघ ने भाग लिया।तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संघ के कार्यों से प्रभावित होकर संघ को परेड में शामिल होने का निमंत्रण दिया था।इस परेड में 3500 स्वयं सेवक शामिल हुए थे।
आर एस एस ने कश्मीर की भारत विलय में अहम भूमिका निभाई थी। कश्मीर के राजा हरि सिंह भारत में विलय का फैसला नहीं कर पा रहे थे।तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने संघ प्रमुख गुरु गोलवलकर से मदद मांगी। गुरु जी ने महाराजा हरि सिंह से भेंट कर उन्हें विलय के प्रस्ताव के लिए राजी किया। 1965 में पाकिस्तान से युद्ध के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने कानून व्यवस्था सम्हालने के लिए आर एस एस से मदद मांगी ताकि दिल्ली की यातायात व्यवस्था संभालने वाले पुलिस कर्मी सीमा पर मदद कर सकें। संघ ने यह व्यवस्था बखूबी संभाली। संघ ने युद्ध के दौरान कश्मीर की हवाई पट्टियों पर जमी बर्फ को हटाने का काम भी किया।आर एस एस ने 1954 में दादरा ,नगर हवेली और गोवा को भारत में विलय के लिए अहम भूमिका निभाई। 2 अगस्त 1954 की दादरा नगर हवेली को पुर्तगालियों से मुक्त कराया। संघ के स्वयंसेवकों ने जगन्नाथ जोशी जी के नेतृत्व में आंदोलन कर 1961 में गोवा को मुक्त कराया।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में 1975 से 1977 तक लगाए आपातकाल के खिलाफ संघर्ष और जनता पार्टी के गठन तक आर एस एस के हजारों स्वयं सेवकों ने गिरफ्तारियां दी। भूमिगत रहकर आंदोलन चलाया। आर एस एस के कार्यकर्ता जेल में बंद राजनैतिक कार्यकर्ताओं और नेताओं के संवाद सूत्र भी बने। 1955 में बना आर एस एस का अनुशासनिक संगठन भारतीय मजदूर संघ विश्व का ऐसा मजदूर संगठन है,जो विध्वंस की बजाय निर्माण की धारणा पर बना है।
भारत में जमींदारी प्रथा से जकड़े समाज को नई दिशा देने आर एस एस ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद,शिक्षा भारती,एकलव्य विद्यालय,स्वदेशी जागरण मंच,वनवासी कल्याण आश्रम,मुस्लिम राष्ट्रीय मंच,विद्याभारती( 20 हजार से ज्यादा स्कूल) दो दर्जन शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र, डेढ़ दर्जन महाविद्यालय,10 से ज्यादा रोजगार प्रशिक्षण संस्थाएं स्थापित की।आर एस एस के सहयोग से संचालित सरस्वती शिशु मंदिरों में 30 लाख विद्यार्थी अध्ययनरत है। 1 लाख शिक्षक सेवारत हैं।सेवा भारती के देश में सेवा के 1 लाख से ज्यादा प्रकल्प कार्यरत हैं।
आर एस एस ने 1977 में उड़ीसा में आए चक्रवात से लेकर विश्व की भीषण भोपाल की गैस त्रासदी, 1984 के सिख विरोधी दंगे, गुजरात का भयावह भूकंप,उत्तराखंड की बाढ़,कोलकाता में फैली प्लेग की बीमारी,कारगिल के घायलों की सेवा जैसे सैकड़ों कार्य हैं।जिसकी कोई मिसाल नहीं है।आर एस एस का नामकरण भी स्वयं सेवकों ने मतदान कर किया था। आर एस एस की स्थापना के 7 माह बाद तक मानकरण नहीं हुआ था।नामकरण की बैठक में 26 स्वयंसेवक मौजूद थे। 26 अप्रैल 1926 को आर एस एस नामकरण हुआ। जरी पटका मंडल और भारतोद्धार मंडल भी नामकरण के लिए प्रस्तुत किए गए थे।
नमस्ते सदा वत्सले मातृ भूमि ... के गान को आत्मसात करने वाले आर एस एस के प्रथम संघ प्रमुख डॉ केशव बलिराम हेडगेवार थे।बाद में माधवराव सदाशिव गोलवलकर,मधु दत्तात्रेय देवरस,प्रोफेसर राजेंद्र सिंह रज्जू भैया,कृपाहल्ली सीता रमैया सुदर्शन और वर्तमान में डॉ मोहनराव मधुकर भागवत संघ प्रमुख हैं। आर एस एस के गठन से लेकर आज तक उसके खिलाफ दुष्प्रचार किया जाता रहा है।इसके बावजूद एक भी ऐसा मामला सामने नहीं आया है कि आर एस एस को देशद्रोही कहा जा सके।आर एस एस ने देशभक्ति की अलख जगाते हुए सौ साल पूरे कर लिए हैं।
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आर एस एस के सौ वर्ष पूर्ण
राम मोहन चौकसे
सर्वप्रथम देश और सेवा की शुद्ध भावना से गठित किसी स्वयंसेवी संगठन के सफलतापूर्वक सौ वर्ष पूरे होना अपने आप में गौरव की बात है।राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ऐसा ही संगठन है,जिसके सौ वर्ष पूरे हो गए है।राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ राष्ट्रवादी हिंदू ,अर्द्ध सैनिक और स्वयं सेवी संगठन का मिला जिला स्वरूप है।जिसे प्रचलन की भाषा में आर एस एस कहा जाता है।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को भाजपा का पैतृक संगठन भी माना जाता है। विश्व के सबसे बड़े स्वयं सेवी संगठन आर एस एस का एक मात्र उद्देश्य मातृ भूमि के लिए निस्वार्थ सेवा करना है। 99 वर्ष पूर्व 27 सितंबर 1925 को विजया दशमी के दिन इस संगठन की स्थापना की गई थी। इस संगठन का मुख्यालय नागपुर में है।पूरे विश्व में इस संगठन के लगभग 60 लाख सदस्य हैं। 56659 शाखाएं हैं।संघ का ध्वज भगवा रंग का है।इस संघ के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार हैं।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान यूरोपीय अधिकार के लिए गठित विभिन्न समूहों से आर एस एस के गठन की प्रेरणा मिली।भारत का इतिहास गवाह है कि आर एसएस ने देश पर आई प्राकृतिक आपदाओं और देश पर आए संकट के समय बिना प्रचार के अपनी देश भक्ति का उदाहरण पेश किया है।आर एस एस ने 1962 के युद्ध के समय जवानों की मदद की।कश्मीर सीमा पर निगरानी की।सैनिक आवाजाही के मार्गों की चौकसी की। रसद आपूर्ति में मदद की। शहीदों के परिवारों की चिंता की। 1963 में 26 जनवरी की परेड में संघ ने भाग लिया।तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संघ के कार्यों से प्रभावित होकर संघ को परेड में शामिल होने का निमंत्रण दिया था।इस परेड में 3500 स्वयं सेवक शामिल हुए थे।
आर एस एस ने कश्मीर की भारत विलय में अहम भूमिका निभाई थी। कश्मीर के राजा हरि सिंह भारत में विलय का फैसला नहीं कर पा रहे थे।तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने संघ प्रमुख गुरु गोलवलकर से मदद मांगी। गुरु जी ने महाराजा हरि सिंह से भेंट कर उन्हें विलय के प्रस्ताव के लिए राजी किया। 1965 में पाकिस्तान से युद्ध के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने कानून व्यवस्था सम्हालने के लिए आर एस एस से मदद मांगी ताकि दिल्ली की यातायात व्यवस्था संभालने वाले पुलिस कर्मी सीमा पर मदद कर सकें। संघ ने यह व्यवस्था बखूबी संभाली। संघ ने युद्ध के दौरान कश्मीर की हवाई पट्टियों पर जमी बर्फ को हटाने का काम भी किया।आर एस एस ने 1954 में दादरा ,नगर हवेली और गोवा को भारत में विलय के लिए अहम भूमिका निभाई। 2 अगस्त 1954 की दादरा नगर हवेली को पुर्तगालियों से मुक्त कराया। संघ के स्वयंसेवकों ने जगन्नाथ जोशी जी के नेतृत्व में आंदोलन कर 1961 में गोवा को मुक्त कराया।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में 1975 से 1977 तक लगाए आपातकाल के खिलाफ संघर्ष और जनता पार्टी के गठन तक आर एस एस के हजारों स्वयं सेवकों ने गिरफ्तारियां दी। भूमिगत रहकर आंदोलन चलाया। आर एस एस के कार्यकर्ता जेल में बंद राजनैतिक कार्यकर्ताओं और नेताओं के संवाद सूत्र भी बने। 1955 में बना आर एस एस का अनुशासनिक संगठन भारतीय मजदूर संघ विश्व का ऐसा मजदूर संगठन है,जो विध्वंस की बजाय निर्माण की धारणा पर बना है।
भारत में जमींदारी प्रथा से जकड़े समाज को नई दिशा देने आर एस एस ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद,शिक्षा भारती,एकलव्य विद्यालय,स्वदेशी जागरण मंच,वनवासी कल्याण आश्रम,मुस्लिम राष्ट्रीय मंच,विद्याभारती( 20 हजार से ज्यादा स्कूल) दो दर्जन शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र, डेढ़ दर्जन महाविद्यालय,10 से ज्यादा रोजगार प्रशिक्षण संस्थाएं स्थापित की।आर एस एस के सहयोग से संचालित सरस्वती शिशु मंदिरों में 30 लाख विद्यार्थी अध्ययनरत है। 1 लाख शिक्षक सेवारत हैं।सेवा भारती के देश में सेवा के 1 लाख से ज्यादा प्रकल्प कार्यरत हैं।
आर एस एस ने 1977 में उड़ीसा में आए चक्रवात से लेकर विश्व की भीषण भोपाल की गैस त्रासदी, 1984 के सिख विरोधी दंगे, गुजरात का भयावह भूकंप,उत्तराखंड की बाढ़,कोलकाता में फैली प्लेग की बीमारी,कारगिल के घायलों की सेवा जैसे सैकड़ों कार्य हैं।जिसकी कोई मिसाल नहीं है।आर एस एस का नामकरण भी स्वयं सेवकों ने मतदान कर किया था। आर एस एस की स्थापना के 7 माह बाद तक मानकरण नहीं हुआ था।नामकरण की बैठक में 26 स्वयंसेवक मौजूद थे। 26 अप्रैल 1926 को आर एस एस नामकरण हुआ। जरी पटका मंडल और भारतोद्धार मंडल भी नामकरण के लिए प्रस्तुत किए गए थे।
नमस्ते सदा वत्सले मातृ भूमि ... के गान को आत्मसात करने वाले आर एस एस के प्रथम संघ प्रमुख डॉ केशव बलिराम हेडगेवार थे।बाद में माधवराव सदाशिव गोलवलकर,मधु दत्तात्रेय देवरस,प्रोफेसर राजेंद्र सिंह रज्जू भैया,कृपाहल्ली सीता रमैया सुदर्शन और वर्तमान में डॉ मोहनराव मधुकर भागवत संघ प्रमुख हैं। आर एस एस के गठन से लेकर आज तक उसके खिलाफ दुष्प्रचार किया जाता रहा है।इसके बावजूद एक भी ऐसा मामला सामने नहीं आया है कि आर एस एस को देशद्रोही कहा जा सके।आर एस एस ने देशभक्ति की अलख जगाते हुए सौ साल पूरे कर लिए हैं।