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#🌙 गुड नाईट #🙏🏻आध्यात्मिकता😇 #🌞 Good Morning🌞 #😏 रोचक तथ्य #❤️जीवन की सीख 🚩‼️ओ३म्‼️🚩 🕉️🙏नमस्ते जी दिनांक - ०८ दिसम्बर २०२५ ईस्वी दिन - - सोमवार 🌖 तिथि -- चतुर्थी (१६:०३ तक तत्पश्चात पञ्चमी ) 🪐 नक्षत्र - - पुष्य ( २६:५२ तक तत्पश्चात आश्लेषा ) पक्ष - - कृष्ण मास - - पौष ऋतु - - हेमन्त सूर्य - - दक्षिणायन 🌞 सूर्योदय - - प्रातः ७:०२ पर दिल्ली में 🌞 सूर्यास्त - - सायं १७:२४ पर 🌖 चन्द्रोदय -- २१:०५ पर 🌖 चन्द्रास्त - - १०:२३ पर सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२६ कलयुगाब्द - - ५१२६ विक्रम संवत् - -२०८२ शक संवत् - - १९४७ दयानंदाब्द - - २०१ 🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀 🚩‼️ओ३म्‼️🚩 🔥समस्त ब्रह्माण्ड को संचालित करने वाला अग्नि स्वरूप, सबसे अग्रणी, सारे ऐश्वर्यों का उत्पादक ईश्वर है। जो इस श्रृष्टि के बनने से पहले भी विद्यमान था। जो ना तो कभी बनता है और ना ही कभी बिगड़ता है,जो स्वयंभू है। सर्वव्यापक और अन्तर्यामी है। हम सब उसके द्वारा बताये गयें मार्ग से चलकर इन वेद वाणियों के साक्षात्कार से ही, उस तक पहुच सकते हैं। हम अपने प्रत्येक कर्मों का निर्धारण करके ही उस कर्म के अनुरूप शुभ और अशुभ कर्मों के फलो के भोक्ता बन सकते हैं। हम सब कर्म करने में स्वतंत्र हैं किंतु फल में हमारी स्वतन्त्रता नहीं है। इस बात का आभास हम अपने जीवन के प्रत्येक दिन में कर सकते हैं। जो लोग परमात्मा को दोष देकर कहते हैं कि सब कुछ वह करवा रहा है, जैसा कि तुलसी बाबा भी कह गए हैं कि होइहें वही जो राम रची राखा। किन्तु यदि ऐसा होता तो जीव को पाप पुण्य का फल नहीं मिलता। जब सब कुछ ईश्वर ही करा रहा है तो फिर किसी भी कार्य के लिए मनुष्य का क्या दोष? किन्तु ऐसा नहीं होता। जो स्वर्ग नरक, सुख दुख का फल है, वह सब कर्मानुसार परमात्मा देता है। लोग कहते हैं कि ईश्वर जीव को बनाता है तो उनको यह ध्यान रखना चाहिए कि जीव कभी उत्पन्न नहीं हुआ। वह सदा से अनादि है। महर्षि दयानंद सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश में लिखा है कि जीव अनादि व चेतन तत्व है जबकि प्रकृति अनादि व जड़ तत्व है और यह दोनों ही अनेक बातों में ईश्वर के वश व नियन्त्रण में हैं। ईश्वर-जीव-प्रकृति की एक दूसरे से भिन्न पृथक व स्वतन्त्र सत्ताओं को ही त्रैतवाद के नाम से जाना जाता है। जीव अपने कर्तव्य युक्त कर्म करने में स्वतंत्र और फल के लिए ईश्वर की व्यवस्था में परतंत्र है। परमेश्वर पवित्र, शुद्ध, नित्य, शाश्वत व सर्वज्ञ है। किसी जीव को पाप करने में प्रेरणा नहीं करता। जीव अपने कर्म करने में स्वतंत्र है और फल पाने में परतंत्र है। इसीलिए प्रत्येक मनुष्य को कर्म करते हुए इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि वह जिस कर्म को कर रहा है, उससे किसी को हानि या अपकार न हो। यदि हो रहा है तो उसे उस कर्म को तुरंत छोड़ देना चाहिए। 🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁 🕉️🚩आज कावेद मंत्र 🕉️🚩 🌷ओ३म् अन्देवाहु: सम्भवादन्यदाहुरसम्भवात्।इति शुश्रुम धीराणामं ये नस्तद्विचचक्षिरे।।( यजुर्वेद ४०|१० ) 💐भावार्थ :- हे मनुष्यों! जैसे विद्वान लोग कार्य- वस्तु और कारण-वस्तु से आगे कहे जाने वाले भिन्न-भिन्न उपकार ग्रहण करते तथा अन्यों को भी ग्रहण करवाते हैं, उन कार्य और कारण के गुणों को जानकर अन्यों को समझातें है , इसी प्रकार तुम भी निश्चय करों। 🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁 🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇 =========== 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏 (सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮 ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- षड्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२६ ) सृष्ट्यब्दे】【 द्वयशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८२) वैक्रमाब्दे 】 【 एकाधिकद्विशतीतमे ( २०१) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- दक्षिणायने , हेमन्त -ऋतौ, पौष - मासे, कृष्ण - पक्षे , चतुर्थयां तिथौ, पुष्य - नक्षत्रे, सोमवासरे , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे 🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁
🌙 गुड नाईट - सुविचार खुशनसीब वो नहीं जिसका नसीब अच्छा है खुशनसीब वो है बल्कि जो अपने नसीब से खुश है मनोज बैजू अध्यक्ष ज्ञान विज्ञान बह्मज्ञान वैदिक विद्यालय एडमिन सुविचार खुशनसीब वो नहीं जिसका नसीब अच्छा है खुशनसीब वो है बल्कि जो अपने नसीब से खुश है मनोज बैजू अध्यक्ष ज्ञान विज्ञान बह्मज्ञान वैदिक विद्यालय एडमिन - ShareChat
🚩‼️ओ३म्‼️🚩 🕉️🙏नमस्ते जी दिनांक - ०७ दिसम्बर २०२५ ईस्वी दिन - - रविवार 🌖 तिथि -- तृतीया (१८:२४ तक तत्पश्चात चतुर्थी ) 🪐 नक्षत्र - - पुनर्वसु ( २८:११ तक तत्पश्चात पुष्य ) पक्ष - - कृष्ण मास - - पौष ऋतु - - हेमन्त सूर्य - - दक्षिणायन 🌞 सूर्योदय - - प्रातः ७:०१ पर दिल्ली में 🌞 सूर्यास्त - - सायं १७:२४ पर 🌖 चन्द्रोदय -- १९:५५ पर 🌖 चन्द्रास्त - - ९:३३ पर सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२६ कलयुगाब्द - - ५१२६ विक्रम संवत् - -२०८२ शक संवत् - - १९४७ दयानंदाब्द - - २०१ 🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀 🚩‼️ओ३म्‼️🚩 🔥ध्यान की बड़ी महिमा बताई जाती है, लेकिन ध्यान की सफलता तभी है, जब वह हमारी हर विषम परिस्थिति में शरीर, मन, बुद्धि व चित्त की शुद्धि बढ़ाने में सहायक बने, हमारे चित्त की वृत्तियों को बिखरने से बचाये, साधक के जीवन की हर स्थिति में इन्द्रियों सहित मन तथा उसमें उठने वाले तीव्र प्रवाह को संतुलित बनाये रखने में मदद करे। कार्य की कुशलता बढ़ाने में मदद करे। पर इसके लिए हमें ध्यान की गहराई तक उतरना होगा तथा सही विधि अपनानी होगी। धन वैभव प्रकार कहते हैं कि जैसे सागर की गहराई में उतरने पर अनेक प्रकार के रत्न मिलते हैं। ठीक उसी तरह जीवन रूपी सागर की गहराई में उतरने पर ज्ञान, धैर्य, करुणा, संवेदनशीलता, दया, श्रद्धा, निष्ठा आदि अनेक प्रकार का वैभव मिलते हैं। धन वैभव दो प्रकार के हैं, एक वाह्य अर्थात सांसांरिक और दूसरा आंतरिक धन। लोग बाहरी धन साधन-समृद्धि तो किसी न किसी तरह जुटा लेते ही हैं, इसे प्राप्त करने की विधि सभी जानते हैं, लेकिन आंतरिक समृद्धि के लिए गुरु के मार्गदर्शन में जीवन की गहराई में उतरने की विधि सीखनी पड़ती है। गुरु अपने मार्ग दर्शन में साधक को अतल गहराई तक उतारकर ईश्वर तक पहुंचने में आने वाले अवरोधों को अपने दिव्य ज्ञान-सद्विचारों द्वारा हटाता है और साधक को ‘ध्यान’ की गहराई तक ले जाता है। जिससे मन भटकाव से बचता है। चित्त के सम्पूर्ण संस्कार एक एक कर मिटते हैं। मन-विचार शून्यता में पहुंचता है। साधक निर्विकार अवस्था में स्थित होता है। आनंद, शांति व निजस्वभाव में स्थित होकर परमात्मा के सौंदर्य में डूबता है। ‘ध्यान निर्विषयं मनः’ यही तो है। शक्तिशाली आत्मा ध्यान के साथ साधक को अफरमेशन का प्रयोग करना भी आवश्यक है, इससे मन व चित्त भटकाव से बचता है, इसके लिए साधक अपने अवचेतन की गहराई को बार-बार आत्मसंवेदन भेजने का प्रयास करे कि मै स्वयं में अंदर-बाहर से शक्तिशाली आत्मा हूं। मैं परमात्मा का बच्चा हूं, उसकी सम्पूर्ण विभूतियों एवं सम्पदाओं पर मेरा पूरा अधिकार है। ध्यान में यह संवेदन भी भेजें कि हम लोगों के रीमोट से नहीं चलते, न ही हमारी प्रसन्नता कोई दूसरों पर निर्भर है, अपितु हम सदा प्रसन्नचित रहते हैं, हर परिस्थितियों में मधुर रहने के संकल्प लेता हूं आदि ऐसे भाव अंतःकरण में लायें, इससे दैवीय शक्तियों को आकर्षित करने एवं उन्हें शांति, आनन्दपूर्ण संवेदनों के साथ अंदर की गहराई तक स्थापित करने में मदद मिलेगी, तब ध्यान को भी गहराई मिलेगी। ऐसे करे ध्यान: ध्यान साधना के लिए रीढ़ व गर्दन सीधी रखकर ज्ञानमुद्रा, पद्मासन अथवा अपने सुविधाजनक आसन पर बैठें। नेत्र बंद करके चेहरे पर प्रसन्नता लायें, धीरे- धीरे श्वास गहरा, लम्बा, आनन्दपूर्वक लें। ओ३म् ध्वनि का लयपूर्ण ढंग से गुंजन करें, इस गुंजन के साथ धीरे-धीरे मौन में उतरें और दृष्टाभाव से श्वास-प्रश्वास को निहारें। इससे स्थिरता आती जायेगी। मन में शांति उतरना प्रारम्भ होगी, मन गहरी श्वांस में लगातार डूबने से लगेगा चारों ओर एक प्रकाश का घेरा बन गया है और साधक उसी की गहराई में उतरता जा रहा है। यह ऐसी अवस्था है, जहां सुख-दुःख राग-द्वेष, हानि-लाभ, जय-पराजय, यश-अपयश आदि किसी भी प्रकार का द्वन्द्व नहीं रह जाता। यही ईश्वर आत्मसाक्षात्कार का मार्ग है और चित्त के पार की यही स्थितियां हैं। चित्त से परे की यह अवस्था सत्-चित्-आनन्द भी कहलाती है। शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध, सुख, दुःख से परे की इस अवस्था में एक पल बिताना परम आहलाद पूर्ण सौभाग्य जैसा अनुभव होता है। इस प्रकार साधना की पृष्ठभूमि तैयार होती जाती है, फिर ध्यान साधक एक दिन ईश्वर से साक्षात्कार करने में भी सफल होता है। तत्पश्चात् धीरे धीरे इस प्रक्रिया से बाहर निकलें और प्रार्थना करें कि हमारी प्रसन्नता बढ़ गयी है, हम पॉजिटिव हुए हैं, दिव्य मधुरता से सम्पूर्ण जीवन भर रहा है। अंतः की गहराई में साधना से उतरा यह ज्ञान जीवन को रूपांतरित कर रहा है। किसी भी सिचुएशन को बिना तनाव व क्रोध के टेकल करने की स्थिति बन रही है, सदसंस्कारों एवं सदविचारों से भर गया हूं। इस प्रसन्नता-आनन्द की अवस्था को दिनभर बनाये रखने का प्रयास करें। बेहोशी में जीने से बचें इस प्रकार अपना मन दिन भर सकारात्मक दिशा में ही लगाकर रखें। यदि कोई क्रोध करता है, तो मानकर चलें उसका स्वाद खराब है, मुझे उसके स्वाद से नहीं जुड़ना है। रिश्ते में कोई मनमुटाव आ भी जाये तो, हम उससे बात करना बंद न करें, इससे सकारात्मक एनर्जी बढ़ेगी, फिर धीरे से रिश्ते भी सुधर जाते हैं। बेहोशी में जीने से बचें, और अचानक आई परिस्थिति को बेहोशी में रिएक्ट न करें। धीरे धीरे जीवन एवं वातावरण खुशनुमा दिखने लगेगा और अनुभव होगा कि वास्तव में हमारे व्यावहारिक जीवन में ध्यान आनन्द, संतोष आदि देवत्व गुण बढ़ रहे हैं। इस प्रकार हमारा लोक व्यवहार एवं जीवन देवमय होने लगेगा। 🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁 🕉️🚩 आज का वेद मंत्र 🕉️🚩 🌷 पुरुषऽएवेदं सर्व यदभूत॓ यच्च भाव्यम्। उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति।।( यजुर्वेद ३१\२ ) 💐 अर्थ :- हे मनुष्यों ! जिस ईशवर ने जब-जब सृष्टि हुई है तब-तब रची है ; अब उसे धारण कर रहा है, फिर उसका विनाश करके रचेगा । जिसके आधार से सब वर्तमान है और बढ़ रहा है । उसी परमदेव परमात्मा की ही उपासना करें, अन्य की नही। जो यह जगत् उत्पन्न करता हुआ दिखाई देता है और जो उत्पन्न होगा तथा यह जो पृथ्वी आदि के रूप में अत्यन्त विस्तृत दृष्टिगोचर हो रहा है, इस प्रत्यक्ष - अप्रत्यक्ष सम्पूर्ण जगत् को अविनाशी मोक्ष - सुख का तथा कारणरूप प्रकृति का अधिष्ठाता, सत्य गुण कर्म स्वभाव से परिपूर्ण परमात्मा ही रचता है । तात्पर्य यह कि जब - जब सृष्टि उत्पन्न हुई है तब - तब परमेश्वर ने ही इसे रचा है ।वहीं वर्तमान में इसे धारण कर रहा है, इसका विनाश = प्रलय करके फिर वही रचेगा । सब मनुष्य उसी एक परमात्मा की उपासना करे किसी अन्य की नही । 🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁 🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇 =========== 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏 (सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮 ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- षड्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२६ ) सृष्ट्यब्दे】【 द्वयशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८२) वैक्रमाब्दे 】 【 एकाधिकद्विशतीतमे ( २०१) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- दक्षिणायने , हेमन्त -ऋतौ, पौष - मासे, कृष्ण - पक्षे , तृतीयायां तिथौ, पुनर्वसु - नक्षत्रे, रविवासरे , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे 🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁 #❤️जीवन की सीख #🌙 गुड नाईट #🌞 Good Morning🌞 #😏 रोचक तथ्य
❤️जीवन की सीख - सुविचार तीन रास्तैे खुश रहनै कै शुकराना, मुस्कराना और किसी का दिल ना दुखाना मनोज बैजू अध्यक्ष ज्ञान विज्ञान बह्मज्ञान वैदिक িলত सुविचार तीन रास्तैे खुश रहनै कै शुकराना, मुस्कराना और किसी का दिल ना दुखाना मनोज बैजू अध्यक्ष ज्ञान विज्ञान बह्मज्ञान वैदिक িলত - ShareChat
🚩‼️ओ३म्‼️🚩 🕉️🙏नमस्ते जी दिनांक - ०६ दिसम्बर २०२५ ईस्वी दिन - - शनिवार 🌖 तिथि -- द्वितीय ( २१:२५ तक तत्पश्चात तृतीया ) 🪐 नक्षत्र - - मृगशिर्ष ( ८:४८ तक तत्पश्चात आर्द्रा) [ ३०:१३ से पुनर्वसु ] पक्ष - - कृष्ण मास - - पौष ऋतु - - हेमन्त सूर्य - - दक्षिणायन 🌞 सूर्योदय - - प्रातः ७:०० पर दिल्ली में 🌞 सूर्यास्त - - सायं १७:२४ पर 🌖 चन्द्रोदय -- १८:४४ पर 🌖 चन्द्रास्त - - ८:३२ पर सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२६ कलयुगाब्द - - ५१२६ विक्रम संवत् - -२०८२ शक संवत् - - १९४७ दयानंदाब्द - - २०१ 🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀 🚩‼️ओ३म्‼️🚩 शान्ति की खोज ========= "शांति" की खोज में चलने वाले पथिक को यह जान लेना चाहिए कि अकेले रहने या जंगल, पर्वतों में निवास करने से "शांति" का कोई संबंध नहीं । यदि ऐसा होता तो अकेले रहने वाले जीव-जंतुओं को "शांति" मिल गई होती और जंगल पर्वतों में रहने वाली अन्य जातियाँ कब की शांति प्राप्त कर चुकी होती । अशांति का कारण है, "आंतरिक-दुर्बलता ।" स्वार्थी मनुष्य बहुत चाहते हैं और उसमें कमी रहने पर खिन्न होते हैं । "अहंकारी" का क्षोभ ही उसे जलाता रहता है । कायर मनुष्य हिलते हुए पत्ते से भी डरता है और उसे अपना भविष्य अंधकार से घिरा दीखता है । "असंयमी" की तृष्णा कभी शांत नहीं होती । इस कुचक्र में फँसा हुआ मनुष्य सदा विक्षुब्ध ही रहेगा, भले ही उसने अपना निवास सुनसान एकांत में बना लिया हो । नदी या पर्वत सुहावने अवश्य लगते हैं । विश्राम या जलवायु की दृष्टि से वे स्वास्थ्यकर हो सकते हैं, पर "शांति" का उनमें निवास नहीं । चेतन आत्मा को यह जड़ पदार्थ भला "शांति" कैसे दे पाएँगे ? "शांति" अंदर रहती है और जिसने उसे पाया है, उसे अंदर ही मिली है । अशांति उत्पन्न करने वाली विकृतियों को जब तक परास्त न किया जाए, तब तक शांति का दर्शन नहीं हो सकता, भले ही कितने सुरम्य स्थानों में कोई निवास क्यों न करता रहे । 🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁 🚩‼️आज का वेद मंत्र ‼️🚩 🔥ओ३म् माहिर्भूर्मा पृदाकुर्नमस्तऽआतानानर्वा प्रेहि। घृतस्य कुल्याऽउपऽऋतस्य पथ्याऽअनु॥ यजुर्वेद ६-१२॥ 🌷हे विद्वान मनुष्य, तुम सर्प की तरह कुटिल मार्ग गामी ना बनो, ना ही बाघ की तरह हिंसक बनो और ना ही मूर्ख की तरह घमंडी बनो। तुम बिना हिंसा और घमंड के सीधे और सरल बनो। सत्य के मार्ग पर चलो तुम्हें सभी सुख साधन मिलते चले जाएंगे। 🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀 🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇 ============= 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏 (सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮 ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- षड्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२६ ) सृष्ट्यब्दे】【 द्वयशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८२) वैक्रमाब्दे 】 【 एकाधिकद्विशतीतमे ( २०१) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- दक्षिणायने , हेमन्त -ऋतौ, पौष - मासे, कृष्ण - पक्षे , द्वितीयायां तिथौ, मृगशिर्ष - नक्षत्रे, शनिवासरे , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे 🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁 #🌞 Good Morning🌞 #🙏🏻आध्यात्मिकता😇 #🙏गुरु महिमा😇 #🌙 गुड नाईट
🌞 Good Morning🌞 - सुविचार भक्ति और भरोसा भगवान पर इतना करो कि संकट हम पर हा और चिंता भगवान को हो मनोज बैजू अध्यक्ष ज्ञान विज्ञान बह्मज्ञान वैदिक विद्यालय एडमिन सुविचार भक्ति और भरोसा भगवान पर इतना करो कि संकट हम पर हा और चिंता भगवान को हो मनोज बैजू अध्यक्ष ज्ञान विज्ञान बह्मज्ञान वैदिक विद्यालय एडमिन - ShareChat
*🚩‼️ओ३म्‼️🚩* *🕉️🙏नमस्ते जी🙏🕉️* दिनांक - ०४ दिसम्बर २०२५ ईस्वी दिन - - गुरुवार 🌔 तिथि -- चतुर्दशी ( ८:३७ तक तत्पश्चात पूर्णिमा [ २८:४३ से प्रतिपदा ] 🪐 नक्षत्र - - कृत्तिका (१४:५४ तक तत्पश्चात रोहिणी पक्ष - - शुक्ल मास - - मार्गशीर्ष ऋतु - - हेमन्त सूर्य - - दक्षिणायन 🌞 सूर्योदय - - प्रातः ६:५९ पर दिल्ली में 🌞 सूर्यास्त - - सायं १७:२४ पर 🌔 चन्द्रोदय -- १६:३७ पर 🌔 चन्द्रास्त - - चन्द्रास्त नही होगा सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२६ कलयुगाब्द - - ५१२६ विक्रम संवत् - -२०८२ शक संवत् - - १९४७ दयानंदाब्द - - २०१ 🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀 *🚩‼️ओ३म्‼️🚩* 🔥प्रश्न :- धर्म क्या है ? किसे कहते हैं ? मनुष्य का क्या धर्म है ? =========== उत्तर :- ' धर्म ' धृ धारणे धातु से बना है जिसका अर्थ है ' ' 'धारण करना ' अर्थात् वे सत्य और अटल सिद्धांत या ईश्वरीय नियम जिनके धारण करने से यह समस्त संसार थमा हुआ है। ईश्वर की रची सृष्टि के हर कार्य में जो सत्यरूपी नियम पूर्ण रूप से प्रत्येक वस्तु में रमा हुआ है वही धर्म है। मनुस्मृति में धर्म शब्द की परिभाषा इस प्रकार की गयी है कि - ' धारणाद्धर्ममित्याहु:' अर्थात् जिसके धारण करने से किसी वस्तु की स्थिति रहती हैं वह धर्म है। मनुष्य का धर्म मानवता है इतना तो सभी जानते हैं , वैशेषिक दर्शनकार कहते है - *यतोऽभयुदयनि:श्रेयससिद्धि स धर्म: ( वैशेषिक १\२ )* अर्थात् जिसे भोग और मोक्ष की सिद्धि हो वह धर्म है। मनु महाराज ने धर्म के दस लक्षण बताए है ।जिस मनुष्य में ये दस गुण विधमान है और उन्हीं के अनुसार जीवन व्यतीत करता है वही धार्मिक प्रवृत्ति वाला है। मनु महाराज ने इस श्लोक में धर्म के दस लक्षण बताए है। *धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।* *धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणमं।। ( मनुस्मृति ६\९२ )* धृति ( धैर्य), क्षमा,दम (आत्म-संयम ), अस्तेय ( चोरी न करना), शौच ( स्वच्छता), इन्द्रिनिग्रह ( इन्द्रियों पर नियंत्रण), धी: ( विवेकशीलता ), विद्या ( ज्ञान), सत्य बोलना, अक्रोध ( क्रोध न करना) - ये वैदिक धर्म के दस लक्षण है। महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने 'धर्म किसको कहते है ' बड़े ही आसान तरीके से सत्यार्थ प्रकाश में बताया है। " धर्म वह है जिसमें परस्पर किसी का विरोध न हो अर्थात् धर्म एक सार्वभौम वस्तु है जिसका किसी विशेष देश , जाति तथा काल से खास सम्बन्ध नही होता। " " जो ईश्वर की आज्ञा का यथावत् पालन और पक्षपात रहित सर्वहित न्याय करना है।, जो कि वेदोक्त होने से सब मनुष्यों के लिए एक ही मानने योग्य हैं, वह धर्म कहाता है। ( महर्षि दयानंद सरस्वती) ईश्वर एक है अत: उसके द्वारा प्रदत्त धर्म भी एक ही होता है, अनेक नही। जो अनेक है वे मत, मज़हब, पंथ हो सकते हैं जो मनुष्य कृत अपने-अपने विचार है, मान्यताएँ हैं , देश- काल परिस्थितियों के अनुसार बनाए नियम है ।प्रन्तु जहाँ धर्म की बात आती है वहाँ धर्म सबके लिए एक है।धर्म ही मनुष्य को मनुष्य बनाता है, जीने का तरीका बताता है, सत्यासत्य का बोध कराता है, कर्तव्यों की जानकारी देता है, वरना धर्महीन मनुष्य दिखने में तो मनुष्य-जैसा लगता है, प्रन्तु वह मनुष्य कहलाने के काबिल नहीं होता। 🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁 *💐🙏आज का वेद मंत्र 💐🙏* *🌷ओ३म् शं नो द्यावापृथिवी पूर्वहूतौ शमन्तरिक्षं दृशये नो अस्तु। शं न ओषधीर्वनिनो भवन्तु शं नो रजसस्पतिरस्तु जिष्णु: ( ऋग्वेद ७\३५\५)* 🌷अर्थ :' पहले स्तुति किये हुए द्युलोक और पृथ्वी लोक हमारे लिए शान्तिदायक हो, सूर्य-चन्द्रमा वाला अन्तरिक्ष हमारी नेत्र ज्योति के लिये शान्ति देने वाला हो, औषधियाँ-अन्नादि और वन पदार्थ हमें शान्तिकारक हो , जगत् का स्वामी जयशील परमेश्वर हमें सदा शान्तिदायक हो। 🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁 🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇 ============= 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏 (सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮 ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- षड्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२६ ) सृष्ट्यब्दे】【 द्वयशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८२) वैक्रमाब्दे 】 【 एकाधिकद्विशतीतमे ( २०१) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- दक्षिणायने , हेमन्त -ऋतौ, मार्गशीर्ष - मासे, शुक्ल - पक्षे , चतुर्दश्यां तिथौ, कृत्तिका - नक्षत्रे, गुरुवासरे , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे। 🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁 #❤️जीवन की सीख #🌙 गुड नाईट #😏 रोचक तथ्य #🙏🏻आध्यात्मिकता😇
❤️जीवन की सीख - सुविचार हर चीज का समाधान आपके अंदरहै बस उसे अच्छे से जानने की ज़रूरत है मनोज बैजू अध्यक्ष ज्ञान विज्ञान बह्मज्ञान वैदिक विद्यालय सुविचार हर चीज का समाधान आपके अंदरहै बस उसे अच्छे से जानने की ज़रूरत है मनोज बैजू अध्यक्ष ज्ञान विज्ञान बह्मज्ञान वैदिक विद्यालय - ShareChat
#🌙 गुड नाईट #😏 रोचक तथ्य #🌞 Good Morning🌞 #❤️जीवन की सीख 🚩‼️ओ३म्‼️🚩 🕉️🙏नमस्ते जी दिनांक - ०३ दिसम्बर २०२५ ईस्वी दिन - - बुधवार 🌔 तिथि -- त्रयोदशी (१२:२५ तक तत्पश्चात चतुर्दशी ) 🪐 नक्षत्र - - भरणी ( १७:५९ तक तत्पश्चात कृत्तिका ) पक्ष - - शुक्ल मास - - मार्गशीर्ष ऋतु - - हेमन्त सूर्य - - दक्षिणायन 🌞 सूर्योदय - - प्रातः ६:५८ पर दिल्ली में 🌞 सूर्यास्त - - सायं १७:२४ पर 🌔 चन्द्रोदय -- १५:४३ पर 🌔 चन्द्रास्त - - ३०:०७ पर सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२६ कलयुगाब्द - - ५१२६ विक्रम संवत् - -२०८२ शक संवत् - - १९४७ दयानंदाब्द - - २०१ 🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀 🚩‼️ओ३म्‼️🚩 🔥जो मनुष्य ऊषाकाल में शयन से उठकर परमात्मा का ध्यान करते हैं, ईश्वर उन्हे बुद्धिमान और धार्मिक बनाता है। जो स्त्री-पुरूष परमात्मा की साक्षी में मधुर संबंध बनाए रखते हैं उन्हे भगवान सदैव सुखी रखते हैं। समस्त प्राकृतिक तत्वों में वायु बहुत सूक्ष्म है। पृथ्वी, जल, अग्नि की अपेक्षा वायु की सूक्ष्मता बहुत अधिक है। इसी से इसका गुण और प्रभाव भी अधिक है। अन्न और जल के बिना तो कुछ समय मनुष्य जीवित रह सकता है पर वायु के बिना एक क्षण भी काम नहीं चल सकता। शरीर के अन्य तत्वों के विकार इतने हानिकारक नहीं होते जितने वायु के विकार। गंदी, अशुद्ध, सीलन भरी, दुर्गंधयुक्त वायु के विषैले वातावरण में सांस लेना भी कठिन होता है और दम घुटने लगता है। दिन भर तो कार्य-व्यापार के संबंध में हमें न जाने कहां कहां जाना पडता है और शुद्ध वायु का सेवन भी कठिनता से ही हो पाता है। ऐसे में सर्वसुलभ प्रातःकालीन प्राणवायु की अवहेलना करके मुंह ढांके सोते रहना परले दरजे की मूर्खता ही है। प्रातःकाल ब्रह्ममुहुर्त में उठकर नित्यकर्म से निवृत होकर प्राणवायु का सेवन करने के साथ व्यायाम और ईश-चिंतन भी करना चाहिए। यह सारा संसार, यह अदभुत प्रकृति, फल-फूल, अन्न, जल सब उस परमपिता परमेश्वर ने हमारे उपयोग के लिए ही उत्पन्न किए हैं। उस प्रभु का ध्यान करके उसके प्रति आभार प्रकट करना और उसके दिव्य निर्देशों को पालन करने का संकल्प लेना ही ईश-चिंतन है। किसी मंदिर में जाकर फल-फूल, जल, दूध आदि मूर्ति पर चढा देना, धूप-दीप दिखा देना और घंटा बजाकर माथा टेकना या नाक रगडना ईश्वर भक्ति नहीं है। यह तो मात्र कौतुक पूर्ण दिखावा भर है। जीवन का सदुपयोग इसी में है कि ईश्वरीय आदेशों का उचित रीति से पालन हो। आसुरी प्रवृत्तियां हमारे दैनिक कार्यों में हस्तक्षेप न करने पावें। हमारे व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक सभी कार्य दैवी गुणों से प्रेरित हों। स्वार्थ, लोभ, मोह, क्रोध आदि राक्षस हमें न सताएं। यही वास्तविक ईश चिंतन है। जीवन का सदुपयोग हमारी सबसे महत्वपूर्ण समस्या है। दूरदर्शिता और बुद्धिमता का तकाजा है कि उसे सुलझाया जाए। इसके लिए प्रातःकाल का समय सर्वश्रेष्ठ होता है। कुछ समय तक प्रभु चिंतन करने से जीवन लक्ष्य की प्राप्ति के लिए दिव्य संदेश प्राप्त होता है। जो भी दोष दुर्गुण हैं वे दूर होते हैं तथा सदगुणों की वृद्धि होती है। मन से पाप भावना और दुष्ट विचार दूर होती है। प्रातः बेला में प्रकृति के संसर्ग से ईश्वर की सर्वव्यापक सत्ता से सीधा संबंध जुडता है और मन में पवित्र, मधुर और सुंदर विचार तरंगे उठती हैं। इस प्रकार के धार्मिक आचरण से प्रभु कृपा का वरदान मिलता है और मनुष्य सारे दिन प्रफुल्लता व उल्लास के साथ अपने दैनिक कार्यों को करते हुए सुख, शांति, यश व कीर्ति प्राप्त करता है। 🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀 🕉️🚩 आज का वेद मंत्र 🚩🕉️ 🌷ओ३म् यो रेवान् यो अमीवहा वसुवित्पुष्टिवर्द्धनः । स नः सिषक्तु यस्तुरः ।। ( यजुर्वेद ३|२९ ) 💐 अर्थ :- जो इस संसार में धन है सो सब जगदीश्वर का ही है । मनुष्य लोग जैसी परमेश्वर की प्रार्थना करें, वैसा ही उनको पुरुषार्थ भी करना चाहिए । जैसे विद्या आदि धनवाला परमेश्वर है ऐसा विशेषण ईश्वर का कह वा सुनकर मनुष्य कृतकृत्य अर्थात् विद्या आदि धनवाला नहीं हो सकता, किन्तु अपने पुरुषार्थ से विद्या आदि धन की वृद्धि वा रक्षा निरन्तर करनी चाहिए जैसे परमेश्वर अविद्या आदि रोगों को दूर करनेवाला है, वैसे मनुष्यों को भी उचित है कि आप भी अविद्या आदि रोगों को निरन्तर दूर करें । जैसे वह वस्तुओं को यथावत् जानता है, वैसे मनुष्यों को भी उचित है की अपने सामर्थ्य के अनुसार सब पदार्थ-विद्याओं को यथावत् जानें जैसे वह सबकी पुष्टि को बढ़ाता है, वैसे मनुष्य को भी सबके पुष्टि आदि गुणों को निरन्तर बढ़ावें । जैसे वह अच्छे-अच्छे कार्यों को बनाने में शीघ्रता करता है, वैसे मनुष्य भी उत्तम-उत्तम कार्यों को त्वरा से करें और जैसे हम लोग उस परमेश्वर की उत्तम कर्मों के लिए प्रार्थना निरन्तर करते हैं, वैसे परमेश्वर भी हम सब मनुष्यों को उत्तम पुरुषार्थ से उत्तम-उत्तम गुण वा कर्मों के आचरण के साथ निरन्तर संयुक्त करें । 🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁 🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇 =========== 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏 (सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮 ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- षड्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२६ ) सृष्ट्यब्दे】【 द्वयशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८२) वैक्रमाब्दे 】 【 एकाधिकद्विशतीतमे ( २०१) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- दक्षिणायने , हेमन्त -ऋतौ, मार्गशीर्ष - मासे, शुक्ल - पक्षे , त्रयोदश्यां - तिथौ, भरणी - नक्षत्रे, बुधवासरे , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे 🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁
🌙 गुड नाईट - सुविचार মুঁবনা ৪্ী যরা না ৪্ী लेकिन सादगी और सच्चाई होना ज़रूरी है 00 बैजू अध्यक्ष ज्ञान विज्ञान Tt बह्मज्ञान वैदिक विद्यालय एडमिन सुविचार মুঁবনা ৪্ী যরা না ৪্ী लेकिन सादगी और सच्चाई होना ज़रूरी है 00 बैजू अध्यक्ष ज्ञान विज्ञान Tt बह्मज्ञान वैदिक विद्यालय एडमिन - ShareChat
#😏 रोचक तथ्य #🌞 Good Morning🌞 #❤️जीवन की सीख #🙏🏻आध्यात्मिकता😇
😏 रोचक तथ्य - ०२ दिसंबर अजरामरवत् प्राज्ञो विद्यामर्थं च चिन्तयेत्।  गृहीत इव केशेषु मृत्युना धर्ममाचरेत् I१  अर्थात बुद्धिमान को स्वयं को अजर और अमर समझकर विद्या तथा धन का उपार्जन करना चाहिए और मृत्यु ने केश पकड़ रखे हैं (मृत्यु निकट है। यह सोचकर धर्म का आचरण करना चाहिए। चाणक्य नीति Manoj Baijue president of GVB THE University of Veda ०२ दिसंबर अजरामरवत् प्राज्ञो विद्यामर्थं च चिन्तयेत्।  गृहीत इव केशेषु मृत्युना धर्ममाचरेत् I१  अर्थात बुद्धिमान को स्वयं को अजर और अमर समझकर विद्या तथा धन का उपार्जन करना चाहिए और मृत्यु ने केश पकड़ रखे हैं (मृत्यु निकट है। यह सोचकर धर्म का आचरण करना चाहिए। चाणक्य नीति Manoj Baijue president of GVB THE University of Veda - ShareChat
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🌙 गुड नाईट - आज का कड़वा सच सिगरेट जरूरी नहीं है, लेकिन उसे बनाने वाला बहुत अमीर है। शराब जरूरी नहीं है, लेकिन उसे बनाने वाला बहुत अमीर है। खाना बहुत जरूरी है, लेकिन उसे उगाने वाला किसान आज भी बहुत गरीब है। आज का कड़वा सच सिगरेट जरूरी नहीं है, लेकिन उसे बनाने वाला बहुत अमीर है। शराब जरूरी नहीं है, लेकिन उसे बनाने वाला बहुत अमीर है। खाना बहुत जरूरी है, लेकिन उसे उगाने वाला किसान आज भी बहुत गरीब है। - ShareChat
#❤️जीवन की सीख #🌞 Good Morning🌞 #🙏🏻आध्यात्मिकता😇 #🌙 गुड नाईट #😏 रोचक तथ्य 🚩‼️ओ३म्‼️🚩 🕉️🙏नमस्ते जी दिनांक - ०२ दिसम्बर २०२५ ईस्वी दिन - - मंगलवार 🌔 तिथि -- द्वादशी (१५:५७ तक तत्पश्चात त्रयोदशी ) 🪐 नक्षत्र - - अश्वनी ( २०:५१ तक तत्पश्चात भरणी ) पक्ष - - शुक्ल मास - - मार्गशीर्ष ऋतु - - हेमन्त सूर्य - - दक्षिणायन 🌞 सूर्योदय - - प्रातः ६:५७ पर दिल्ली में 🌞 सूर्यास्त - - सायं १७:२४ पर 🌔 चन्द्रोदय -- १४:५९ पर 🌔 चन्द्रास्त - - २८:५३ पर सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२६ कलयुगाब्द - - ५१२६ विक्रम संवत् - -२०८२ शक संवत् - - १९४७ दयानंदाब्द - - २०१ 🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀 🚩‼️ओ३म्‼️🚩 🔥 परमात्मा ने इस संसार में सभी को दीर्घ आयु प्रदान की है किंतु मनुष्य अनुचित आहार-बिहार द्वारा आयु-क्षय कर लेता है। इसलिए नियमपूर्वक जीवन जीते हुए पूर्ण आयु प्राप्त करना प्रत्येक मनुष्य का धर्म है। मानव जीवन की यह महान उपलब्धि परमेश्वर ने हमें ऐसे ही प्रदान नहीं कर दी है। उसने हमें संसार में अपने उत्तराधिकारी के रूप में भेजा है कि हम सौ वर्ष तक हृष्ट-पुष्ट रहकर समाज में सबकी भलाई के कार्य करते हुए यशस्वी एवं श्रेष्ठ जीवन व्यतीत करें और हमारी कीर्ति पताका सर्वत्र फैहराती रहे। जीवन बहुत महत्वपूर्ण है, इसे नीचतापूर्ण कर्मों में गंवाना अच्छी बात नहीं। इसलिए पुरूषार्थी बने और दुराचार त्याग कर सदाचारी हों इससे मनुष्य पूर्ण आयु प्राप्त करता है। प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में श्रेष्ठ, यशस्वी और कीर्तिमान होने की कामना करनी चाहिए। उसे सदैव सत्कर्मों के द्वारा समाज हितकारी कार्य करने चाहिए। जिस प्रकार संसार का उपकार करते रहने से सूर्य, चंद्र, पवन को यश मिलता है, उसी प्रकार हम भी ऐसे ही कार्य करें। कभी भी कोई ऐसा कार्य न करें जो हमें अपयश का भागी बनाए। यशस्वी एवं सर्वश्रेष्ठ बनने का सर्वोत्तम मार्ग है अपने जीवन को दोष एवं दुर्गुणों से मुक्त करके आसुरी वृत्तियों का पूरी तरह से दमन करना। दुराचारी व्यक्ति अपने नीच कर्मों से थोडा बहुत लाभ भले ही प्राप्त कर लें परंतु वे आंतरिक रूप से निरंतर उदास, दुखी, क्षुब्ध और रोते हुए ही दिखाई देते हैं। हमें इस जीवन का सर्वोत्तम उपयोग करना चाहिए। विषय सेवन से अपने को दूर रखें। इनमें फंसने से सदा अपयश ही मिलता है। हमें स्वयं अपना समीक्षक और न्यायधीश बनकर अपने आपको दुराचारों के लिए दंडित करते रहना चाहिए। हमारी भावना होनी चाहिए की जो पांव कुमार्ग पर चलें उन्हे काट दो, जो हाथ किसी की सहायता न करें उन्हे काट दो, जो जिह्वा परनिंदा में लगी रहे उसे काट दो, जिस आंख में करूणा के आंसू न हों उसे फोड दो। इस प्रकार स्वयं अपने आचरण की समीक्षा करते हुए पुरूषार्थी और सदाचारी बनकर यशस्वी बनें। संसार में सर्वश्रेष्ठ बनने के लिए मनुष्य को उच्चकोटि का ज्ञान, स्वस्थ शरीर, स्वस्थ मस्तिष्क, और उत्कृष्ट मनोबल चाहिए। ज्ञानी, विद्वान, सदाचारी, परोपकारी और उदारमना व्यक्ति ही मनुष्यों में अपना सर्वोच्च स्थान बना सकता है। इसी से वह दैवी गुणों में वृद्धि करते रहने का साहस कर सकता है और पाप कर्मों के प्रलोभन से अपने को बचा सकता है। दैवी गुणों से दिव्यता आती है तथा सुशीलता, वर्चस्विता, तेजस्विता और प्राण शक्ति में वृद्धि होती है। करूणा, प्रेम, दया, उदारता, सरसता, शिष्टता, विनय के प्रभाव से उसके व्यक्तित्व में निखार आता है और वह समाज में अद्वितीय, अनुपम एवं अग्रणी होने का सम्मान पाता है। दीर्घायु प्राप्त करने का यही साधन है । 🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀 🚩‼️आज का वेद मंत्र ‼️🚩 🌷 ओ३म् शं नो वात: पवतां शं नस्तपतु सूर्य्य:। शं न: कनिक्रदद्देव: पर्जन्योऽअभिवर्षतु। । ( यजुर्वेद ३६\१० ) 💐अर्थ - हे परमेश्वर ! पवन हमारे लिए सुखकारी चले , सूर्य हमारे लिए सुखकारी तपे, अत्यन्त उत्तम गुण युक्त विद्युत् रूप अग्नि हमारे लिए कल्याणकारी हो और गरजता हुआ मेघ हमारे लिए सब ओर से सुख की वर्षा करे । 🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁 🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇 =========== 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏 (सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮 ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- षड्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२६ ) सृष्ट्यब्दे】【 द्वयशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८२) वैक्रमाब्दे 】 【 एकाधिकद्विशतीतमे ( २०१) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- दक्षिणायने , हेमन्त -ऋतौ, मार्गशीर्ष - मासे, शुक्ल - पक्षे , द्वादश्यां - तिथौ, अश्विनी - नक्षत्रे, मंगलवासरे , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे 🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁
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