हम डूबने की तरफ तैर रहे थे,
या मरने के लिए जी रहे थे?
पता नहीं! मगर रोशनदानों से आती धूप के टुकड़ों में पूरी परछाई खोज लेना चाहते थे...
दरारों से पूरी दुनिया झांक लेना चाहते थे..
हम चलते-चलते बहुत दूर आ गए थे, अब आगे जंगल था और हमारे पांव नँगे थे..!!
मैंने बहुत पहले कहा था उससे कि दो जोड़ी जूते खरीद लेने चाहिए..
मगर वो वक्त के खर्च होने से डरती थी..हमारे डर हमें कुतरने लगे थे, हम अपनी जड़ें खो चुके थे और शायद मुरझाने के लिए खिल रहे थे, ख़ाक होने के लिए पनप रहे थे..!!
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