हम पागल होते जा रहे थे.. हमारे बीच निर्वात बढ़ रहा था, उँगलियों के किनारों का आज़ाद होना हमें बैचैन करने लगा था..
और हम हवाओं में जीवन की कल्पना से जूझ रहे थे..
हम अँधेरे जंगल में चेहरा पढ़ने की कोशिश करतेे,
सूखे पत्तों में आँखों की नमी तलाशतेे रहते..!!
वैसे करने को हमारे पास बातें भी बहुत थीं, पर मौन में कुछ समझ नहीं आता था..
यूँ कहूँ कि इश्क की भाषा थोड़ी अलग थी और हम अनपढ़ थे...!!
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