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गणेश जी से प्राप्त होने वाली शिक्षाएँ
गणेश जी का स्वरूप हमें जीवन के कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर गहरी शिक्षाएँ देता है। उनके शरीर का हर अंग हमें एक विशेष संदेश देता है, जिसे अपनाकर हम एक बेहतर और सफल जीवन जी सकते हैं।
1. बड़े कान: ध्यान से सुनना
गणेश जी के बड़े कान इस बात का प्रतीक हैं कि हमें सभी की बातें ध्यान से सुननी चाहिए। इसका मतलब यह है कि हमें दूसरों के विचारों, सलाहों और अनुभवों को खुले मन से सुनना चाहिए। इससे हम ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं और गलतियों से बच सकते हैं।
2. बड़ा सिर: सोच का विस्तार
उनका बड़ा सिर यह दर्शाता है कि हमें अपनी सोच का विस्तार करना चाहिए। हमें केवल छोटी-मोटी बातों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि बड़ी सोच रखनी चाहिए और अपने लक्ष्यों को बड़ा बनाना चाहिए।
3. छोटी आँखें: बारीक नजर
छोटी आँखें हमें यह सिखाती हैं कि हमें छोटी-छोटी चीजों पर भी नजर रखनी चाहिए। सफलता के लिए बड़ी योजनाओं के साथ-साथ बारीक विवरणों पर ध्यान देना भी बहुत जरूरी होता है।
4. छोटा मुँह: कम बोलना
गणेश जी का छोटा मुँह हमें यह संदेश देता है कि हमें कम बोलना चाहिए। सोच-समझकर बोलना और अनावश्यक बातों से बचना बुद्धिमानी का संकेत है।
5. अंकुश: बुरे विचारों पर काबू
उनके हाथ में मौजूद अंकुश हमें यह सिखाता है कि हमें अपने बुरे विचारों और इच्छाओं पर काबू रखना चाहिए। यह आत्म-नियंत्रण का प्रतीक है।
6. एक टूटा दाँत: अपूर्णता को स्वीकार करना
उनका एक टूटा हुआ दाँत इस बात का प्रतीक है कि हमें अपूर्णता को भी स्वीकार करना चाहिए। जीवन में सब कुछ हमेशा सही नहीं होता, और हमें अपनी कमियों को भी स्वीकार करना और उनसे सीखना चाहिए।
7. लड्डू: एकजुट होकर रहना
हाथ में मौजूद लड्डू इस बात का प्रतीक है कि हमें बूंदियों की तरह एकजुट होकर रहना चाहिए। एकता में शक्ति होती है, और मिलकर काम करने से बड़े से बड़े लक्ष्य हासिल किए जा सकते हैं।
8. बड़ा पेट: बातों को पचा लेना
गणेश जी का बड़ा पेट हमें यह सिखाता है कि हमें अच्छी-बुरी सारी बातों को पचा लेना चाहिए। इसका मतलब है कि हमें आलोचना और परेशानियों को सहन करना सीखना चाहिए और उन्हें अपने मन पर हावी नहीं होने देना चाहिए।
9. छोटे पैर: धैर्य बनाए रखना
छोटे पैर इस बात का संदेश देते हैं कि हमें धैर्य बनाए रखना चाहिए और जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। सफल होने के लिए धीरज और दृढ़ता बहुत जरूरी है।
10. सूँड़: आसपास की चीजों को महसूस करना
उनकी सूँड़ हमें यह सिखाती है कि हमें अपने आसपास की सारी चीजों को महसूस करना चाहिए। इसका मतलब है कि हमें अपने परिवेश के प्रति जागरूक रहना चाहिए और हर चीज से कुछ न कुछ सीखना चाहिए।
ये शिक्षाएँ हमें एक संतुलित और सफल जीवन जीने का मार्ग दिखाती हैं
#श्री गणेश जी #जय श्री गणेश #श्री गणेश #☝ मेरे विचार #🙏🏻गुरबानी
देवी दुर्गा और नवदुर्गा से मिलने वाली शिक्षाएँ
देवी दुर्गा स्त्री शक्ति की सर्वोच्च प्रतीक हैं। वे केवल शक्ति का नहीं, बल्कि करुणा, धैर्य और न्याय का भी प्रतिनिधित्व करती हैं। उनके और उनके नौ रूपों से हम ये महत्वपूर्ण बातें सीख सकते हैं:
1. देवी दुर्गा (मुख्य रूप): शक्ति और साहस
देवी दुर्गा, जो सिंह पर सवार हैं, साहस, शक्ति और दुष्टता का नाश करने का प्रतीक हैं। वे हमें सिखाती हैं कि हमें अपने भीतर की बुराइयों और बाहरी चुनौतियों का सामना करने के लिए मजबूत और निडर बनना चाहिए। उनका सिंह पर बैठना यह दर्शाता है कि हमें अपनी जंगली और आक्रामक ऊर्जा को नियंत्रित कर उसे सही दिशा में लगाना चाहिए।
2. शैलपुत्री (पहले दिन): प्रकृति और दृढ़ता
यह रूप हिमालय की पुत्री का है। यह हमें प्रकृति के साथ जुड़ने और दृढ़ता की शिक्षा देता है। यह सिखाता है कि जिस तरह पर्वत अटल होते हैं, उसी तरह हमें भी अपने लक्ष्यों के प्रति अडिग रहना चाहिए।
3. ब्रह्मचारिणी (दूसरे दिन): तपस्या और सादगी
यह रूप तपस्या, त्याग और संयम का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि ज्ञान और सफलता पाने के लिए कठिन परिश्रम और अनुशासन बहुत जरूरी है।
4. चंद्रघंटा (तीसरे दिन): शांति और वीरता
यह रूप शांतिपूर्ण और वीर दोनों है। यह हमें सिखाता है कि हमें शांत मन के साथ ही वीरता से बुराई का सामना करना चाहिए। यह आंतरिक शांति और शक्ति के संतुलन का प्रतीक है।
5. कूष्मांडा (चौथे दिन): सृष्टि और ऊर्जा
इस रूप को ब्रह्मांड की रचना करने वाली माना जाता है। यह हमें सिखाता है कि हमें अपने भीतर की रचनात्मक ऊर्जा को पहचानना और उसका उपयोग करना चाहिए।
6. स्कंदमाता (पाँचवें दिन): मातृत्व और करुणा
यह रूप मातृत्व और प्रेम का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि सच्ची शक्ति केवल बल में नहीं, बल्कि करुणा, प्रेम और देखभाल में भी होती है।
7. कात्यायनी (छठे दिन): न्याय और धर्म
यह रूप न्याय और धर्म की रक्षा का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि जब जरूरत हो, तो हमें बुराई के खिलाफ खड़े होकर न्याय के लिए लड़ना चाहिए।
8. कालरात्रि (सातवें दिन): साहस और बुराई का अंत
यह रूप सभी तरह के भय और बुराई का नाश करने वाला है। यह हमें सिखाता है कि डर पर विजय पाना और अपनी कमजोरियों का अंत करना ही सच्ची आजादी है।
9. महागौरी (आठवें दिन): पवित्रता और शुद्धि
यह रूप पवित्रता और निर्मलता का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि हमें अपने मन और आत्मा को हमेशा शुद्ध रखना चाहिए।
10. सिद्धिदात्री (नवें दिन): सफलता और सिद्धि
यह रूप सभी सिद्धियों और सफलताओं को प्रदान करने वाला है। यह हमें सिखाता है कि पूरी भक्ति और परिश्रम के बाद ही हमें अपने जीवन में सफलता मिलती है।
ये सभी रूप हमें जीवन में शक्ति, साहस, करुणा और दृढ़ता के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। #🙏 माँ वैष्णो देवी #🙏माँ लक्ष्मी महामंत्र🌺
इस तस्वीर में देवी लक्ष्मी, देवी सरस्वती और देवी पार्वती को एक साथ दिखाया गया है, जिन्हें 'त्रिदेवी' के नाम से जाना जाता है। ये तीनों देवियाँ हिंदू धर्म में स्त्री शक्ति के तीन प्रमुख पहलुओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये तीनों मिलकर हमें जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर गहरी शिक्षाएँ देती हैं।
त्रिदेवी: लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती से मिलने वाली शिक्षाएँ
1. देवी लक्ष्मी (बीच में): धन और समृद्धि
देवी लक्ष्मी धन, समृद्धि, भाग्य और भौतिक सुखों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
शिक्षा: वे हमें सिखाती हैं कि धन का सही उपयोग कैसे किया जाए। धन केवल भौतिक सुख के लिए नहीं होता, बल्कि इसका उपयोग दूसरों की भलाई और समाज के कल्याण के लिए भी करना चाहिए। वे यह भी बताती हैं कि केवल मेहनत से ही धन प्राप्त नहीं होता, बल्कि इसके लिए सही समय पर सही निर्णय और सद्गुण भी जरूरी हैं।
2. देवी सरस्वती (बाएँ से): ज्ञान और कला
देवी सरस्वती ज्ञान, विद्या, कला, संगीत और वाणी की देवी हैं। उनके हाथ में वीणा और पुस्तक है, जो ज्ञान और कला का प्रतीक है।
शिक्षा: वे हमें सिखाती हैं कि जीवन में सबसे बड़ा धन ज्ञान है। भौतिक सुख-सुविधाएँ तो आती-जाती रहती हैं, लेकिन ज्ञान हमेशा हमारे साथ रहता है। वे हमें प्रेरित करती हैं कि हमें शिक्षा, कला और संस्कृति को अपने जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए।
3. देवी पार्वती (दाएँ से): शक्ति और साहस
#🙏🏻गुरबानी #🙏गीता ज्ञान🛕 #हिन्दू #हिन्दू सनातन संगठन देवी पार्वती शक्ति, प्रेम, भक्ति और पारिवारिक संबंधों का प्रतीक हैं। वे भगवान शिव की पत्नी हैं और साहस, शक्ति और भक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं।
शिक्षा: वे हमें सिखाती हैं कि शक्ति केवल शारीरिक बल में नहीं होती, बल्कि दृढ़ इच्छाशक्ति, प्रेम और करुणा में भी होती है। वे यह भी बताती हैं कि पारिवारिक संबंध और त्याग ही एक सुखी जीवन का आधार होते हैं।
त्रिदेवी का संयुक्त संदेश
जब ये तीनों देवियाँ एक साथ होती हैं, तो ये हमें एक महत्वपूर्ण संदेश देती हैं:
जीवन में धन (लक्ष्मी), ज्ञान (सरस्वती) और शक्ति (पार्वती) का सही संतुलन होना चाहिए।
केवल धन होने से जीवन अधूरा है, बिना ज्ञान और शक्ति के वह व्यर्थ हो सकता है।
केवल ज्ञान होने पर भी जीवन में प्रगति के लिए धन और शक्ति की जरूरत होती है।
केवल शक्ति होने पर भी बिना ज्ञान और धन के उसका सही उपयोग नहीं हो पाता।
ये तीनों मिलकर हमें एक संतुलित और सफल जीवन जीने का मार्ग दिखाती हैं, जिसमें भौतिक सुख, मानसिक ज्ञान और आंतरिक शक्ति का मेल हो। #सनातन हिन्दू धर्म और देश भक्त
निश्चित रूप से। यह तस्वीर 'त्रिदेव' को दर्शाती है, जिनमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) शामिल हैं। हिंदू धर्म में इन तीनों को सृष्टि, स्थिति (पालन) और संहार (विनाश) का प्रतीक माना जाता है। ये तीनों मिलकर हमें जीवन के सबसे बड़े चक्र और उसके संतुलन के बारे में महत्वपूर्ण शिक्षाएँ देते हैं।
त्रिदेव: ब्रह्मा, विष्णु और महेश से मिलने वाली शिक्षाएँ
1. ब्रह्मा: सृष्टि और सृजन
ब्रह्मा जी को ब्रह्मांड के सृजनकर्ता के रूप में जाना जाता है। वे सृष्टि की रचना करते हैं और नए जीवन का निर्माण करते हैं।
* शिक्षा: ब्रह्मा जी हमें सिखाते हैं कि हर जीवन की शुरुआत रचनात्मकता और सृजन से होती है। हमें अपने जीवन में कुछ नया बनाने, सीखने और विकसित करने पर ध्यान देना चाहिए। हमें अपनी रचनात्मकता का उपयोग समाज और खुद के विकास के लिए करना चाहिए।
2. विष्णु: पालन और संरक्षण
विष्णु जी को ब्रह्मांड के पालक के रूप में जाना जाता है। वे सृष्टि को बनाए रखते हैं, संतुलन स्थापित करते हैं और धर्म की रक्षा करते हैं।
* शिक्षा: विष्णु जी हमें सिखाते हैं कि किसी भी चीज को बनाने से ज्यादा महत्वपूर्ण उसे बनाए रखना है। हमें अपने रिश्तों, जिम्मेदारियों और पर्यावरण का ध्यान रखना चाहिए। यह हमें संतुलन और स्थिरता का महत्व भी बताता है।
3. महेश (शिव): संहार और परिवर्तन
शिव जी को ब्रह्मांड के संहारक के रूप में जाना जाता है। वे पुराने और अनुपयोगी चीजों का अंत करते हैं, ताकि नए का जन्म हो सके।
* शिक्षा: शिव जी हमें सिखाते हैं कि परिवर्तन जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है। विनाश या अंत का मतलब हमेशा बुरा नहीं होता; यह नई शुरुआत का भी संकेत है। हमें पुरानी आदतों, विचारों और परेशानियों को छोड़ना सीखना चाहिए, ताकि हम जीवन में आगे बढ़ सकें।
त्रिदेव का संयुक्त संदेश
जब ये तीनों देव एक साथ होते हैं, तो वे हमें जीवन के तीन मुख्य चरणों को समझाते हैं:
* सृष्टि: हर चीज का जन्म होता है।
* स्थिति: हर चीज कुछ समय तक बनी रहती है।
* संहार: हर चीज का अंत होता है, जिसके बाद एक नई #वैदिक ज्ञान📚 #वैदिक एवं ज्योतिष शास्त्र ज्ञान #मौलिक वैदिक ज्ञान #सनातन ज्ञान #🚩 सनातन ज्ञान 🚩 शुरुआत होती है।
यह चक्र हमें सिखाता है कि जीवन में हर चरण का महत्व है। हमें न केवल कुछ नया बनाने पर ध्यान देना चाहिए, बल्कि उसे बनाए रखने और समय आने पर पुराने को छोड़कर नए को स्वीकार करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। यह संतुलन ही हमें एक सफल और पूर्ण जीवन जीने में मदद करता है।
#प्रवचन #सुविचार #🌠ओशो☘️ #❤️जीवन की सीख #☝ मेरे विचार 🇮🇳#एकभारत #श्रेष्ठभारत🇮🇳:
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हे महाबली देवी - देवता मेरी व मेरी पत्नी एवं पुत्रियों सहित भूत भविष्य वर्तमान तीनों काल में हमारी रक्षा एवं सुरक्षा करते हुये हमारे धन-सम्पत्ति, सौभाग्य में वृद्धि करें हम लोगों के माध्यम से पुण्य कर्म, देव कर्म करायें और हमारे माध्यम से सुख शान्ती का भोग करें, इसके लिए हम लोगो को बुद्धि विद्या बल एवं धन-सम्पत्ति से सम्पन्न करें।
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बता दें कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने संपत्ति के एक विवाद में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। फैसले में कोर्ट का कहना है कि हाउस वाइफ के नाम पर खरीदी गई प्रॉपर्टी पारिवारिक संपत्ति होती है, क्योंकि पत्नी के पास इनकम का कोई (independent source) स्वतंत्र स्रोत नहीं है। इन सभी हालात को देखते हुए अदालत ने कहा कि हिंदू धर्म में पति आमतौर पर अपनी पत्नी के नाम ही संपत्ति खरीदते हैं।
इलाहबाद हाई कोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला
हाईकोर्ट ने एक पुत्र की ओर से दिवंगत पिता की संपत्ति में सह स्वामित्व (co-ownership) के दावे को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) की धारा 114 के तहत यह माना जा सकता है कि हिंदू पति की ओर से अपनी पत्नी के नाम पर खरीदी गई प्रॉपर्टी (Property purchased in wife's name), परिवार की संपत्ति होगी। क्योंकि आमतौर पर पति पारिवारिक हित में अपनी पत्नी के नाम ही संपत्ति खरीदता है, जिसके पास इनकम (Independent source of income) का कोई इंडिपेंडेंट सोर्स नहीं होता। पत्नी की आय प्रमाणित करना बहुत जरूरी
अपने फैसले में हाईकोर्ट ने कहा कि जब तक यह प्रमाणित न हो जाए परचेज की गई प्रॉपर्टी पत्नी की इनकम (wife's income) से खरीदी गई है, तब तक उस प्रॉपर्टी को पति की इनकम से खरीदा ही माना जाएगा। बता दें कि हाईकोर्ट में अपीलकर्ता सौरभ गुप्ता ने यह मांग करते हुए अपील दायर की थी कि उसे उसके पिता द्वारा खरीदी गई प्रॉपर्टी (property purchased by father) के एक चौथाई हिस्से का सह स्वामी का दर्जा दिया जाए। क्योंकि प्रॉपर्टी उसके दिवंगत पिता की ओर से खरीदी गई थी, जिसमें अपनी मां के साथ-साथ वह भी सह हिस्सेदार है। #कानून #🏵 भारतीय कानून 🏵 #भारतीय संपूर्ण कानून जानकारी