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"प्रलय बनकर निकले विष को जब किसी ने न अपनाया, तब शिव ने उसे गले लगाकर 'नीलकंठ' बन पूरी सृष्टि की रक्षा की।"
सागर मंथन एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा है, जिसमें देवता और असुर अमृत पाने के लिए क्षीर सागर का मंथन करते हैं। मंदराचल पर्वत को मथनी बनाया गया और वासुकी नाग को रस्सी।
मंथन के दौरान सबसे पहले हलाहल विष निकला, जो सबकुछ नष्ट कर सकता था। तभी भगवान शिव ने उसे पी लिया और उन्हें नीलकंठ कहा गया।
इसके बाद कामधेनु, ऐरावत, कल्पवृक्ष, लक्ष्मी, चंद्रमा, अप्सराएं और अंत में अमृत कलश निकला। अमृत को लेकर देवों और असुरों में युद्ध हुआ।
तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर चतुराई से अमृत केवल देवताओं को पिला दिया।
यह कथा हमें धैर्य, त्याग और बुद्धिमत्ता की सीख देती है