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मंगल भवन अमंगल हारी : विभीषण शरणागति और प्रभु कृपा की पावन कथा
सीताराम सीताराम सीताराम
दोहे का भावार्थ:
हे कल्याण के धाम और अमंगल का हरण करने वाले प्रभु श्रीराम, आप मुझ पर अपनी कृपा की वर्षा करें। आप ही समस्त सुखों के सागर हैं और आप ही भक्तों के सारे कष्टों, पापों और दुखों को नष्ट करने वाले हैं। राजा दशरथ के आंगन में बाल लीला करने वाले हे परमब्रह्म परमात्मा, आप मेरे हृदय रूपी आंगन में भी सदा विहार करें और मेरे जीवन को मंगलमय बनाएं।
* लंका में जहां चारों ओर अधर्म और अमंगल का साम्राज्य था, वहां भी प्रभु श्रीराम के परम भक्त विभीषण जी का मन निरंतर "मंगल भवन अमंगल हारी" प्रभु के चरणों में लगा रहता था। वे जानते थे कि केवल रघुकुल शिरोमणि श्रीराम ही ऐसे देवता हैं जो अपने भक्तों के सारे अमंगल को पल भर में हर लेते हैं और उन्हें परम शांति प्रदान करते हैं।
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* एक बार जब विभीषण जी ने अपने बड़े भाई रावण को समझाने का प्रयास किया कि पराई स्त्री का हरण घोर पाप और अमंगल है, तो रावण ने क्रोध में आकर उन्हें लात मारी और अपमानित किया। यह घटना देखने में तो अमंगलकारी थी, परंतु प्रभु के भक्त के लिए यही वह क्षण बना जो उसे साक्षात् 'मंगल भवन' श्रीराम के चरणों तक ले जाने वाला था।
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* अपमानित होकर विभीषण जी ने उसी क्षण निश्चय किया कि अब वे पाप की नगरी लंका में नहीं रहेंगे और सीधे उन करुणानिधान श्रीराम की शरण में जाएंगे जो दीन-दुखियों के रक्षक हैं। उन्होंने मन ही मन प्रभु की स्तुति की और सोचा कि आज मेरे सारे जन्मों के पुण्य उदय हुए हैं जो मुझे साक्षात् परब्रह्म के दर्शन प्राप्त होंगे।
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* आकाश मार्ग से उड़ते हुए विभीषण जी समुद्र के उस पार प्रभु श्रीराम के शिविर की ओर चल दिए, जहां मंगल मूर्ति श्रीराम विराजमान थे। उनके मन में केवल एक ही आशा थी कि वे 'अमंगल हारी' प्रभु अवश्य ही मेरी विपत्तियों का नाश करेंगे और मुझे अपनी शरण में लेंगे, क्योंकि उनका तो स्वभाव ही प्रेम और करुणा है।
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* जब विभीषण जी प्रभु के शिविर के पास पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि वहां वानर और भालू प्रभु की सेवा में मग्न हैं। प्रभु श्रीराम का दरबार ही ऐसा है जहां पहुंचते ही मन की सारी व्याकुलता शांत हो जाती है और एक अद्भुत आनंद का अनुभव होता है। विभीषण जी को लगा कि वे अंधकार से निकलकर प्रकाश के सागर में आ गए हैं।
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* वानर राज सुग्रीव ने जब विभीषण को आते देखा तो उन्हें शत्रु का गुप्तचर समझकर संदेह किया, क्योंकि संसार की दृष्टि में शत्रु का भाई शत्रु ही होता है। परंतु वे यह नहीं जानते थे कि मेरे प्रभु श्रीराम की दृष्टि अलौकिक है, वे तो हृदय के भावों को देखते हैं और शरण में आए हुए शत्रु को भी गले लगा लेते हैं।
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* सुग्रीव ने प्रभु श्रीराम से कहा कि यह रावण का भाई है और इसे बांध लेना चाहिए, कहीं यह हमारा कोई अमंगल न कर दे। इस पर सर्वज्ञानी और अंतर्यामी प्रभु श्रीराम ने अपनी मंद मुस्कान से सुग्रीव की ओर देखा और कहा कि मेरे मित्र, जो मेरी शरण में एक बार आ जाता है, उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता।
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* प्रभु श्रीराम ने अपनी विशाल भुजाएं उठाकर घोषणा की कि यदि स्वयं रावण भी भयभीत होकर मेरी शरण में आ जाए, तो मैं उसे भी अभयदान दे दूंगा। यह प्रभु का 'मंगल भवन' स्वरूप है, जहां किसी के लिए भी बैर या द्वेष का कोई स्थान नहीं है, केवल क्षमा और प्रेम का ही वास है।
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* भगवान श्रीराम ने कहा कि करोड़ों ब्राह्मणों की हत्या करने वाला पापी भी यदि मेरी शरण में आकर पश्चाताप करता है, तो मैं उसके सारे पापों को भस्म कर देता हूं। प्रभु की यह वाणी सुनकर वहां उपस्थित सभी भक्त गदगद हो गए और जय-जयकार करने लगे कि धन्य हैं हमारे प्रभु जो अमंगल का नाश करने वाले हैं।
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* शरणागत वत्सल प्रभु ने हनुमान जी को आज्ञा दी कि विभीषण को आदर सहित मेरे पास ले आओ। प्रभु की आज्ञा पाते ही हनुमान जी और अंगद विभीषण जी को लेकर प्रभु के समीप आए। विभीषण जी ने दूर से ही प्रभु के उस मनमोहन रूप के दर्शन किए जो करोड़ों कामदेवों की सुंदरता को भी लज्जित करने वाला है।
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* प्रभु श्रीराम का श्याम वर्ण, विशाल नेत्र, और मस्तक पर जटाओं का मुकुट देखकर विभीषण जी अपनी सुध-बुध खो बैठे। उन्हें लगा कि जिस 'अमंगल हारी' रूप का वे ध्यान करते थे, आज वह साक्षात् उनके सामने विराजमान है। उनके नेत्रों से प्रेम के अश्रु बहने लगे और वे वहीं धरती पर दंडवत लेट गए।
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* हे दीनबंधु! विभीषण जी ने प्रभु के चरणों में गिरकर कहा कि हे नाथ, मैं रावण का भाई हूं और राक्षसी तामसी शरीर में मेरा जन्म हुआ है। मेरा जीवन पापों और अमंगल से घिरा हुआ था, परंतु आपके नाम की महिमा सुनकर मैं आपकी शरण में आया हूं, आप मेरी रक्षा करें।
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* विभीषण जी ने गदगद वाणी में कहा कि हे त्रिलोकीनाथ, मैंने सुना है कि आप भवसागर के भय को हरने वाले और अपने भक्तों को सुख देने वाले हैं। मैं अनाथ हूं, मेरा कोई सहारा नहीं है, अब आप ही मेरे माता-पिता और आप ही मेरे स्वामी हैं। मुझे अपने चरणों की भक्ति प्रदान कीजिए।
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* भक्त की ऐसी दीन दशा देखकर करुणा के सागर श्रीराम का हृदय पिघल गया। उन्होंने तुरंत उठकर विभीषण जी को अपनी भुजाओं में भर लिया और हृदय से लगा लिया। उस क्षण विभीषण जी का सारा अमंगल, सारा दुख और सारा भय कपूर की भांति उड़ गया और वे परम पावन हो गए।
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* प्रभु श्रीराम के स्पर्श मात्र से विभीषण जी को जो शीतलता और शांति प्राप्त हुई, उसका वर्णन वेदों और पुराणों में भी संभव नहीं है। प्रभु ने अपने उन कोमल हाथों को, जो सदा धनुष-बाण धारण करते हैं, विभीषण के सिर पर फेरा और उन्हें अभय कर दिया। यह प्रभु की अकारण करुणा का ही प्रमाण है।
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* भगवान श्रीराम ने विभीषण जी से कहा कि हे लंकेश! अब तुम मेरे परिवार के सदस्य हो, मेरे सखा हो। तुम्हारे मन में अब किसी भी प्रकार का भय नहीं रहना चाहिए। मैं स्वयं तुम्हारे सारे कष्टों का निवारण करूंगा और तुम्हें लंका का राजा बनाऊंगा।
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* प्रभु की यह बात सुनकर वानर सेना चकित रह गई कि जो अभी-अभी शरण में आया है, जिसके पास न कोई सेना है और न कोई राज्य, उसे प्रभु ने बिना जीते ही लंका का राजा घोषित कर दिया। यह प्रभु श्रीराम की उदारता है कि वे देने में कभी संकोच नहीं करते, वे तो बिना मांगे ही सब कुछ दे देते हैं।
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* प्रभु ने तुरंत लक्ष्मण जी को आदेश दिया कि समुद्र के जल से विभीषण का राजतिलक करो। जिस रावण के डर से देवता भी कांपते थे, उस रावण की नगरी का राजा प्रभु ने एक पल में विभीषण को बना दिया। सचमुच, प्रभु का दरबार ही 'मंगल भवन' है जहां रंक भी राजा बन जाता है।
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* आकाश से देवताओं ने पुष्प वर्षा की और प्रभु श्रीराम की जय-जयकार की। उन्होंने कहा कि श्रीराम जैसा स्वामी तीनों लोकों में नहीं है, जो शरण में आए हुए विभीषण को अपनी छाती से लगा लेते हैं और उसे अपना निज जन मान लेते हैं। उनकी महिमा अनंत और अपार है।
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* विभीषण जी ने हाथ जोड़कर कहा कि हे प्रभु, मुझे राज्य की कामना नहीं है, मुझे तो केवल आपके चरणों में प्रेम चाहिए। परंतु प्रभु ने कहा कि हे विभीषण, मेरा भक्त धर्म और अर्थ दोनों का उपभोग करते हुए अंत में मेरे परम धाम को प्राप्त होता है। मेरी कृपा से तुम्हारा कभी अमंगल नहीं होगा।
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* इस प्रकार प्रभु श्रीराम ने विभीषण जी के माथे पर राजतिलक करके उनके जीवन के सारे कलंक और अंधकार को मिटा दिया। जो विभीषण कल तक अपमानित और तिरस्कृत थे, आज वे त्रिभुवन पति श्रीराम के परम मित्र और लंकाधिपति बन गए। यह केवल राम कृपा का ही फल है।
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* प्रभु श्रीराम ने विभीषण जी को विश्वास दिलाया कि रावण चाहे कितना भी बलशाली क्यों न हो, उसका अंत निश्चित है क्योंकि जहां धर्म और सत्य है, वहीं विजय है। आप तो साक्षात् धर्म के विग्रह हैं, आपके पक्ष में रहकर विभीषण जी निर्भय हो गए।
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* इसके पश्चात विभीषण जी ने प्रभु को रावण की मृत्यु के उपाय बताए, जिसे प्रभु ने ध्यानपूर्वक सुना। यद्यपि प्रभु सर्वशक्तिमान हैं और वे अपनी भृकुटी के इशारे से ही सृष्टि का संहार कर सकते हैं, फिर भी वे अपने भक्त को मान देने के लिए उसकी सलाह लेते हैं। यह उनकी भक्त-वत्सलता है।
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* प्रभु श्रीराम का चरित्र ऐसा पावन है कि वे अपने सेवकों को सदैव ऊंचे आसन पर बैठाते हैं। उन्होंने सुग्रीव और विभीषण को अपने भाइयों जैसा स्नेह दिया। भरत जी के समान ही उन्होंने इन भक्तों को भी अपने हृदय में स्थान दिया, जिससे यह सिद्ध होता है कि प्रभु केवल भाव के भूखे हैं।
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* युद्ध भूमि में भी जब रावण ने शक्ति बाण चलाकर विभीषण को मारना चाहा, तो प्रभु श्रीराम ने विभीषण को पीछे करके वह बाण अपनी छाती पर झेल लिया। भक्त की रक्षा के लिए भगवान का यह त्याग देखकर देवता और दानव सभी स्तब्ध रह गए। ऐसा रक्षक जिसके पास हो, उसका अमंगल कैसे हो सकता है?
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* हे दयानिधान, आपने विभीषण को जो गति प्रदान की, वह बड़े-बड़े योगियों और तपस्वियों को भी दुर्लभ है। आपने उन्हें कल्प के अंत तक लंका का राज्य और अंत में अपना परम धाम देने का वचन दिया। आपकी वात्सल्य और ममता माता कौशल्या से भी अधिक है।
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* प्रभु की कृपा से समुद्र पर सेतु का निर्माण हुआ, जो असंभव को संभव बनाने का प्रतीक है। आपके नाम के प्रभाव से पत्थर पानी पर तैरने लगे। यह दृश्य देखकर विभीषण जी का विश्वास और भी दृढ़ हो गया कि 'मंगल भवन' प्रभु के नाम में ही सारी शक्ति समाहित है।
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* लंका युद्ध के दौरान भी प्रभु ने सदैव धर्म की मर्यादा का पालन किया और विभीषण जी को धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। रावण के वध के पश्चात जब विभीषण जी शोक में डूब गए, तब प्रभु ने उन्हें ज्ञान का उपदेश देकर उनके शोक रूपी अमंगल का हरण किया।
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* प्रभु श्रीराम ने विभीषण जी को समझाया कि यह शरीर नश्वर है और आत्मा अमर है। अधर्म का नाश होना ही विधि का विधान है। प्रभु के मुख से ज्ञान की वर्षा सुनकर विभीषण जी का मोह भंग हो गया और वे पुनः प्रभु की भक्ति में लीन हो गए।
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* रावण वध के बाद प्रभु ने विभीषण जी को विधिवत लंका के सिंहासन पर बैठाया। मंदोदरी और अन्य रानियों को सांत्वना दी और लंका में पुनः धर्म की स्थापना की। प्रभु जहां भी जाते हैं, वहां रामराज्य जैसी सुख-शांति अपने आप स्थापित हो जाती है।
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* जब प्रभु अयोध्या लौटने लगे, तो विभीषण जी ने भी साथ चलने का आग्रह किया। प्रभु ने प्रेमपूर्वक उन्हें अपने पुष्पक विमान में बैठाया। अयोध्या पहुंचकर प्रभु ने भरत जी से विभीषण का परिचय अपने प्राणप्रिय सखा के रूप में कराया। भक्त को भगवान से मिलाने का यह क्षण अत्यंत मंगलकारी था।
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* अयोध्या में प्रभु के राजतिलक के समय विभीषण जी ने प्रभु की सेवा में चंवर डुलाकर अपने आप को धन्य माना। जो लंका के राजा थे, वे अयोध्या में प्रभु के सेवक बनकर अधिक प्रसन्न थे। प्रभु के चरणों की सेवा ही सबसे बड़ा सुख और सबसे बड़ा मंगल है।
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* हे राघवेंद्र, आपकी लीलाएं अनंत हैं। आपने विभीषण जैसे राक्षस कुल के व्यक्ति को भी संत बना दिया। आपकी पारस रूपी देह के स्पर्श से लोहा भी सोना बन जाता है। आप पतित पावन हैं और अधम से अधम जीव का भी उद्धार करने में सक्षम हैं।
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* प्रभु, आपका नाम 'मंगल भवन' इसलिए है क्योंकि आपके नाम का स्मरण करते ही घर-घर में उत्सव होने लगते हैं। और आप 'अमंगल हारी' इसलिए हैं क्योंकि आप अपने भक्तों के जीवन से रोग, शोक, संताप और दरिद्रता को जड़ से उखाड़ फेंकते हैं।
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* गोस्वामी तुलसीदास जी ने ठीक ही कहा है कि जिस पर प्रभु श्रीराम की कृपा होती है, उस पर सब कृपा करते हैं। विभीषण जी पर राम कृपा हुई तो हनुमान जी, सुग्रीव जी और यहां तक कि स्वयं माता जानकी ने भी उन्हें आशीष दिया।
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* प्रभु, आपकी शरण में आने के बाद जीव को किसी अन्य सहारे की आवश्यकता नहीं रहती। जैसे विभीषण जी ने रावण का त्याग करके केवल आपके चरणों को पकड़ा, वैसे ही हमें भी संसार के मोह-माया को छोड़कर केवल आपके नाम का सहारा लेना चाहिए।
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* हे राजीव लोचन, हम भी विभीषण जी की भांति आपकी शरण में हैं। हमारे मन में अनेक प्रकार के विकार और अमंगल भरे हुए हैं। आप अपनी करुणा की दृष्टि हम पर डालें और हमारे हृदय को अपना भवन बना लें, ताकि हमारा जीवन भी मंगलमय हो जाए।
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* प्रभु, जब तक आप हमारे हृदय में नहीं बसेंगे, तब तक अमंगल का नाश नहीं हो सकता। जैसे सूर्य के उदय होते ही रात्रि का अंधकार मिट जाता है, वैसे ही आपके आगमन से हमारे जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। आप ही हमारे एकमात्र उद्धारक हैं।
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* अंत में, विभीषण जी की कथा हमें यही शिक्षा देती है कि परिस्थितियां चाहे कितनी भी विपरीत क्यों न हों, यदि हम धर्म और प्रभु श्रीराम का साथ नहीं छोड़ते, तो हमारा कल्याण निश्चित है। प्रभु श्रीराम ही सत्य हैं, वे ही शाश्वत हैं और वे ही परम आनंद हैं।
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* हे अवधेश, हम बार-बार आपके चरणों में नमन करते हैं। आप हमारे योग-क्षेम का वहन करें और हमें अपनी अविचल भक्ति प्रदान करें। मंगल भवन अमंगल हारी प्रभु श्रीराम सदा हमारे सहायक रहें और हमें सन्मार्ग पर चलाएं, यही हमारी प्रार्थना है।
सीताराम सीताराम सीताराम
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*कुछ पाकर तो हर कोई मुस्कुराता है लेकिन जिंदगी शायद उनकी होती है जो बहुत कुछ खोकर भी मुस्कुराना जानते हैं। अपनी अच्छाई साबित मत कीजिए,अगर आपके किरदार में दम होगा तो, वक्त खुद आपकी कीमत लोगों को बता देगा। किसी से बदला लेने की सोच ना रखें।खराब फल अपने आप पेड़ से गिर जाते हैं। वैसे भी सबकी अपनी कहानी है! वो ऐसा है, वो वैसा है, कौन जाने, कौन कैसा है! इतना ना किसी की जिंदगी में झांका करो। एक बात हमेशा याद रखना:- जितना दिखाते हो उस से अधिक आपके पास होना चाहिए, जितना जानते हो उस से कम आपको बोलना चाहिए। बाकी:- तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए। अनहोनी होनी नहीं,होनी हो सो होए.....*
*सुप्रभात*
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तुम्हारे अपने ही दुश्मन बन जायेंगे दोस्तों !
जरा उनसे आगे निकल कर तो देखो।
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कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने वाले धर्मशाला के पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा जी का दिल जीतने वाला बयान !!!!🙏🙏
कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आये एक कांग्रेसी नेता से पत्रकार ने पूछा कि "आप कांग्रेस छोड़कर भाजपा में क्यूँ आये?" तो उसका बहुत ही तार्किक और मार्मिक उत्तर ......
कांग्रेस में रहकर मुझे और मेरे परिवार को यह लगने लगा था कि मैं हिन्दू हूँ कि नही हूँ ? हम अपने त्यौहार उस उमंग और उत्साह से नही मना पा रहे थे जैसे कालोनी के दूसरे लोग मना रहे थे ।
जिस दिन कोर्ट से राम मंदिर के पक्ष में फैसला आया उस दिन पूरी कालोनी के लोग उत्साह से जश्न मना रहे थे तो मेरा परिवार दरवाजा बंद कर घर के अंदर बैठे थे।
राम नवमी पर ज़ब पूरा देश उमंग में रहता हे तो हम मायूस घर पर बैठे रहते थे।
करोना काल में ज़ब पूरी कालोनी दिए जलाकर और बर्तन बजा कर करोना से मुक्ति की प्रार्थना कर रहे थे तब भी मेरा परिवार खिड़कियों से उन्हें निहार रहा था।
पाकिस्तान पर भारत की एयर स्ट्राइक पर ज़ब पूरा भारत गौरवान्वित महसूस कर रहा था तब भी हम घुटघुट कर कमरों में बंद थे।
धारा 370 हटने पर पूरी कालोनी जश्न मना रही थी तो में और मेरे बच्चे ड्राइंग रूम में बंद थे।
और सबसे ज्यादा आहत करने वाली बात तो पिछली 22 तारीख को ज़ब पूरा भारत तो छोड़ पूरी दुनिया राम मय होकर राम मंदिर के उद्धघाटन समारोह में शिरकत कर रही थी तो में और मेरा परिवार अत्यंत मायूसी में उन्हें निहार रहे थे। पर कांग्रेसी होने के नाते उनके साथ शिरकत नही कर सकते थे।
जिस अभिषेक मनु सिंघवी ने राम मंदिर के विरोध में केस लड़ा उसे राज्यसभा का उम्मीदवार बना दिया।
ऐसे पिछले दस साल में अनगिनत मोके आये ज़ब हमें अपने आप से पूछना पड़ता था कि हम हिन्दू हे क़ी नही हे?
कांग्रेसी विचारधारा हमें धीरे धीरे धर्म विरोधी तो बना ही रही थी, कहीं ना कहीं हम देश विरोधी भी बनते जा रहे थे। क्योंकि हमें हर उस अच्छे कार्य का विरोध करना था जो मोदी सरकार कर रही थी।
बस मेरे कांग्रेस छोड़ने का सिर्फ यही कारण हे।
अब लगता है,हम फिर से हिन्दू हो गए हे । अब मैं भी अपने कालोनी वासियों के साथ अपने हर त्यौहार को पूरे हर्ष उल्हास के साथ मनाऊँगा !
🇮🇳🚩 जय श्रीराम 🚩🇮🇳
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