#🖋ग़ज़ल
ख़्वाबों की महफ़िल अब सूनी पड़ी है,
इस दिल में गमों की सवारी हो गई,
हर धड़कन में ज़िक़्र था उसका,
मगर अब ये कैसी लाचारी हो गई,
दर्द का आलम है सीने में गहरा,
हर ख़ुशी जैसे अब बेचारी हो गई,
उसके बिना हर राह है अधूरी,
ज़िंदगी जैसे इक बीमारी हो गई,
जिनसे उम्मीद थी हमदर्दी की हमें,
मौजूदगी उनकी अदाकारी हो गई,
जब भी सुकून को हमने तलाशा,
चोट और भी गहरी जारी हो गई..