*🌹🌹🌹आत्मनिर्भर🌹🌹🌹* एक शाम पति दरवाजे से ही सहज-सा बोला, सुनो ना, मैं थोड़ा-सा दोस्तों के साथ बाहर जा रहा हूं। कपड़े तह करके रख रही पत्नी ने बस ऊपर देखकर कहा, ठीक है, मौज करो। वो थोड़ा सा चौंक गया क्योंकि हमेशा वो कहती थी, जल्दी आना, गाड़ी ध्यान से चलाना, ज्यादा देर मत करना हमेशा कुछ न कुछ तो कहती ही थी लेकिन आज कुछ नहीं, न आह, न सवाल, बस शांति से एक ठीक है। कुछ घंटे बाद उनका किशोर बेटा किचन में आया तो हाथ में एक कागज था और चेहरा पीला-सा। माँ, वो धीमे स्वर में बोला, मेरे एग्जाम के रिजल्ट आ गए हैं जो बहुत ही खराब हैं। वो वहीं जम-सा गया, उसे पूरा यकीन था कि अब डांट पड़ेगी क्योंकि माँ को उसके पढ़ाई की बहुत चिंता रहती थी, तो आज फिर वही सुनने को मिलेगा, समय बर्बाद किया, अपनी क्षमता बरबाद कर रहा है, ऐसी लंबी-लंबी बातें, इसलिए आज वो सारी तैयारी करके आया था। लेकिन उसकी माँ ने शांति पूर्वक कहा, ठीक है। वो आंखें फाड़कर बोला, बस ठीक है ? हाँ, उसने प्यार से कहा, ज्यादा अच्छे से पढ़ाई करोगे तो अगली बार बेहतर होगा और नहीं करोगे तो तुम्हें ही सेमेस्टर रिपीट करना पड़ेगा अब ये तुम्हारा फैसला है, मैं दोनों ही हालत में तुम्हारे साथ हूँ। वो हैरान रह गया कि माँ इतनी शांत कब हो गई ? दूसरे दिन दोपहर में उनकी बेटी घबराते हुए घर में आई और हॉल में थोड़ा रुककर बोली, मां मेरे से कार टकरा गई है जो बहुत बड़ी तो नहीं है, लेकिन डेंट आ गया है। माँ ने ना तो डाँटा, ना ही चिल्लाई, कुछ भी नहीं, बस वो बोली, ठीक है, कल गाड़ी को वर्कशॉप में दे देना। बेटी ठिठक गई, तुम्हें गुस्सा नहीं आ रहा है ? माँ ने हल्की-सी मुस्कान दी और कहा नहीं, गुस्सा करने से कार ठीक तो होने वाली नहीं, अगली बार से गाड़ी संभाल कर चलाना। अब घर के सब लोग चिंतित थे कि ये वही औरत है, उनकी पत्नी, उनकी माँ, अब पहले जैसी नहीं रही, वो पहले जल्दी गुस्सा होने वाली, तुरंत टेंशन लेने वाली, झट से बोल देने वाली थी लेकिन अब वो शांत, स्थिर, जैसे भीतर से खुश दिखती थी। सब आपस में फुसफुसाने लगे, *कुछ गड़बड़ है क्या ?* *तबीयत तो ठीक है ?* *कुछ हुआ है क्या ?* आखिरकार एक शाम सबने उसे किचन की टेबल पर बैठा लिया। सुनो, पति ने कहा, तुम इन दिनों बहुत बदल गई हो, कुछ भी गलत हो तो भी तुम्हें ग़ुस्सा नहीं आता, तुम कोई भी रिएक्ट नहीं करती, सब ठीक तो है न ? वो उसके चेहरे की ओर देखकर मुस्कुराते हुए बोली कुछ भी गलत नहीं है, सब बिल्कुल ठीक चल रहा हैं, बस मुझ बहुत सालों बाद एहसास हुआ, कि हर इंसान अपने जीवन में उतार चढ़ाव के लिए वो स्वयं जिम्मेदार होता है। पति ने भौहें सिकोड़ कर कहा मतलब ? वो हाथ जोड़कर मेज पर टिककर बोली, मैं पहले हर बात की चिंता करती थी, तुम देर करते थे, तो मैं घबराती थी, बच्चों के नंबर कम आए, तो मुझे अपराध-बोध होता था, कुछ टूट जाए तो गुस्सा, कोई नाराज हो जाए तो उसे मनाने की भागदौड़, मैं सबकी समस्याओं को अपनी समझ बैठती थी, लेकिन एक दिन समझ आया कि मेरी चिंता से उन समस्याओं का कोई हल नहीं होता, बस मेरी शांति खत्म हो जाती है। बेटी चुपचाप सुन रही थी। फिर वो आगे बोली, मेरे तनाव से तुम्हें कोई फायदा नहीं होता, मेरी भागदौड़ तुम्हारा जीवन आसान नहीं करती, बल्कि मेरे लिए मुश्किल कर देती है, मैं तुम्हें सलाह दे सकती हूँ, प्यार दे सकती हूँ, साथ दे सकती हूँ, लेकिन तुम्हारी ज़िंदगी तुम्हारे लिए मैं नहीं जी सकती, जो भी फैसले तुम लोग लेते हो, उनके नतीजे तुम्हें ही भुगतने पड़ेंगे, अच्छे हों या बुरे।” वो एक पल रुकी और फिर मुस्कुरा कर कहा, इसलिए मैंने तय किया है कि जो मेरे कंट्रोल में नहीं है, उसे कंट्रोल करने की कोशिश ही नहीं करूंगी। बेटा आगे झुककर बोला, मतलब तुम्हें अब हमारी कोई परवाह नहीं है ? उसने ना में सिर हिलाया, बहुत परवाह है, लेकिन चिंता करना और कंट्रोल करना, ये दो अलग बातें हैं, मैं तुम सब पर ममता तो लुटा सकती हूँ, पर उसके लिए अपनी शांति खो देना ठीक नहीं। घर में सन्नाटा छा गया। वो तीनों को प्यार से देखते हुए बोली, मेरा काम है, तुम्हें प्रेम देना, मार्गदर्शन करना और जरूरत पड़ने पर तुम्हारे साथ खड़ा रहना, लेकिन तुम्हारा काम है, अपनी जिंदगी को अपने आप संभालना, फैसले लेना और उनके नफा नुकसान को स्वयं ही सहना, इसी तरह हर इंसान बड़ा होता है। वो शांत अंदाज में पीछे को टिककर बोली, इसलिए अब अगर कुछ ग़लत भी होता है, तो मैं अपने आप को याद दिलाती हूँ, ये सब ठीक करने वाला मामला मेरा नहीं हैं, इसलिए अब मैं मैं शांत रहूँगी, तुम लोग इससे कुछ न कुछ सीखोगे, इस बात पर भरोसा रखूँगी, क्योंकि जिंदगी ऐसी ही है, जो सबको सबक सिखाती हैं। कुछ देर तक घर में पूर्ण शांति रही लेकिन अब माहौल बदल चुका था, पति ने उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कहा, आज तुमने हम सबको कुछ सिखा दिया। वो मुस्कुराई, शायद, लेकिन ये बात मुझे पहले स्वयं को ही सीखनी पड़ी। उस रात सबने उसके शब्दों पर विचार किया। बेटा फिर से पढ़ने बैठ गया, इसलिए नहीं कि माँ डांटेगी, बल्कि इसलिए कि ये उसकी जिम्मेदारी है, ये बात उसे महसूस हुई। बेटी ने स्वयं ही कार की मरम्मत के लिए वर्कशॉप पर बात की और इंश्योरेंस की प्रक्रिया समझी। पति अगली बार से जब भी बाहर जाते तो अपने आप ही फोन करके बताने लगे, इसलिए नहीं, कि उसे मजबूर किया जा रहा था, बल्कि उसे स्वयं ही ऐसा करने में सही लगा। धीरे-धीरे सबको घर में हल्का लगने लगा, कोई डर से नहीं, समझ से व्यवहार करने कारण, कोई इस सोच से दबा हुआ नहीं था कि गलती हुई तो डाँट पड़ेगी। घर में अगर कोई एक भी इंसान शांति को अपनाता है, तो वो शांति सबमें फैल जाती है। एक इंसान नियंत्रण छोड़ देता है, तो बाकी लोग अपने आपको नियंत्रित करना सीखने लग जाते हैं। *विचार और शेयर करें* 🙏🌹🌹🙏
PRADEEP AGRAWAL