शादी के एक दिवसीय इवेंट पर लाखों करोड़ों फूंकना निरी मूर्खता है।
महंगी शादियों में नेता-मंत्री आते है,बड़े अधिकारी आते है,कुछ उद्योगपति आते है।
बस गांव के बड़े-बुजुर्ग,दादा के भाइयों के परिवार,माँ की मौसियां आदि के परिवार पीछे छूट जाते है।
आजकल तो शादियों के लिए कृत्रिम गांव के गांव बसाए जा रहे है!महंगी गाडियाँ गिफ्ट दी जा रही है।
मेरे एक जानकार ने पिछले साल अपनी लड़की की शादी में लाखों रुपये खर्च किये।अभी फैमिली कोर्ट में लेनदेन की लिस्टों की अदला-बदली चल रही है।
भरे-पेट वालों को शादियों में बुलाकर एलीट क्लास में शामिल होने की लालसा से बच्चों का दाम्पत्य जीवन खुशहाल नहीं हो जाता है!
शादियां जितनी सस्ती व परिवार-रिश्तेदारों तक सीमित होती है उतनी ही बेहतर रहती है।रिश्ता न निभ सके तो दूसरा रिश्ता कर सके उतना आर्थिक स्पेस रहना ही चाहिए।
आज समाज मे सामान्य परिवारों के लाखों लड़के अच्छा धंधा कर रहे है लेकिन सरकारी दामाद के चक्कर मे दहेज देकर लड़कियों के लिए गृहक्लेश की व्यवस्था करने के लिए हांड रहे है।
नैतिकता की कसौटी पर हर मुद्दे पर गरीब को ही परीक्षा देनी होती है।सामाजिक कुरीतियों को सक्षम लोग लेकर आते है।
पाखंड व अंधविश्वास गांवों तक लेकर सरकारी कर्मचारी-अधिकारियों की पत्नियां ही लेकर पहुंची है।सरकारी है सिर्फ इसलिए आंख मूंदकर सम्मान की नजरों से नहीं देखना चाहिए।
मैं महंगी शादियों में खुद को असहज महसूस करता हूँ।घर-परिवार के लोगों से जान-पहचान होती नहीं है।दूर के 5-7 जानकार मिलते है और दो बात करके फोटो खिंचाकर निकलना होता है।
जहाँ पारिवारिक प्रगाढ़ता नहीं,मिलन नहीं और दिखावे के लिए लाखों रुपये उड़ाए जाते हो उनसे वर-वधु पर शादी चलाने के लिए कोई अतिरिक्त जिम्मेदारी का अहसास नहीं होता है।शादी टूटी भी तो पीछे मुड़कर कौन चेक करता है!
बात यह सज्जन आदमी पत्ते की कह रहा है लेकिन लोग समझकर आत्मसात करे तब कोई बात बने।
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