🙏✨નવરાત્રી: નવ દુર્ગા, નવ મંત્ર, નવ શક્તિ🦁🙌Navratri 2025🛕🕉️#tirthyatraa #navratri #shorts #short #👣 જય મેલડી માઁ #👣 જય માતાજી #🏵️દેવી કુષ્માંડા🏵️ #🔴LIVE: નવરાત્રી મહોત્સવ 2025🎥 #🏵️દેવી ચંદ્રઘંટા🏵️
🕉️🔥ભય અને કષ્ટ નિવારણ મંત્ર | નરસિંહ મંત્ર🙏🦁Narsinh Mantra🌟✨#tirthyatraa #narsimha #shorts #🙏હિન્દૂ દેવી-દેવતા🌺 #🙏ભક્તિ સ્ટેટ્સ #🙏ગુરુ દત્તાત્રેય #🧿દોષ અને ઉપાય #🔍 જ્યોતિષ
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*🚩🌺 पितरों की विदाई की वेला पर श्रद्धांजलि 🚩🌺*
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*🚩🌺नत मस्तक हम करते हैं प्रणाम,*
*हे पितरों! स्वीकारो श्रद्धा के अरमान।*
*🚩🌺तुम्हीं थे आधार इस जीवन के,*
*तुम्हीं थे दीपक अंधकार हरन के।*
*🚩🌺आज तर्पण जल की धार कह रही,*
*तेरी कृपा से यह सांस चल रही।*
*🚩🌺संसार में जो भी सुख पाया हमने,*
*वह तुम्हारे तप और बलिदान से मिले।*
*🚩🌺आओ अंतिम वेला का सत्कार करें,*
*आशीष लेकर तुम्हें विदा करें।*
*🚩🌺विदाई है पर बिछोह नहीं होगा,*
*तुम्हारा स्मरण हर पल संग होगा।*
*🚩🌺यज्ञ की अग्नि में गूँजे तुम्हारा नाम,*
*फूलों की पंखुड़ियाँ करें प्रेम का प्रणाम।*
*🚩🌺हम निभाएँगे मर्यादा, धर्म और सत्य,*
*यही होगी सच्ची श्रद्धांजलि की ज्योति।*
*🚩🌺हे पितरों! लौटो अपने दिव्य लोक,*
*पर स्मृति रहेगी हृदय में हर शोक।*
*🚩🌺विदाई में आँसू हैं, पर गर्व भी अपार,*
*तुम्हारे संस्कारों से है जीवन साकार।*
*🚩🌺आज अमावस्या की गहन निस्तब्ध रात,*
*दीपक की लौ में झलक रहा है उनका साथ।*
*🚩🌺स्मृतियों के आँगन में गूँज रही है वाणी,*
*जैसे कह रही हो — "स्मरण रखो सन्तानी।"*
*🚩🌺पितरों की छाया है हर श्वास के संग,*
*उनके ही आशीष से जीवन में है रंग।*
*🚩🌺तर्पण की धार से मन करता प्रणाम,*
*श्रद्धा के सुमन चढ़े, झुके सबके प्राण।*
*🚩🌺वे आये थे कुछ दिन हमारे आँगन में,*
*आशीष बरसाने प्रेम के सागर में।*
*🚩🌺अब लौट रहे हैं दिव्य लोक की राह,*
*मन कहता है — "फिर मिलेंगे एक दिन, अथाह।"*
*🚩🌺विदाई की घड़ी है, अश्रु सजल नयन,*
*किन्तु हृदय में बसता उनका ही दर्शन।*
*🚩🌺कर्मपथ पर चलना यही सच्चा तर्पण,*
*उनकी परम्परा ही है जीवन का अर्जन।*
*🚩🌺हे पितरों! चरणों में शत शत नमन,*
*आपकी स्मृति रहे हर क्षण-प्रतिक्षण।*
*🚩🌺श्रद्धा के दीप से आलोकित हो जीवन,*
*सदा मिले आशीष, सदा रहे संतोषमय मन।*
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हिन्दू देवी देवताओं के नाम और काम
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सनातन धर्म में अनेक देवताओं का उल्लेख है उन देवताओ को किसी नाम विशेष से जाना जाता है। देवताओं का यह नामकरण उनके कार्य और गुण-धर्म के आधार पर किया गया है। हम यहाँ कुछ प्रमुख देवताओं के विषय में जाकारी प्राप्त करेगें।
ब्रह्मा
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ब्रह्मा को जन्म देने वाला कहा गया है।
विष्णु
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विष्णु को पालन करने वाला कहा गया है।
महेश
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महेश को संसार से ले जाने वाला कहा गया है।
त्रिमूर्ति
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भगवान ब्रह्मा-सरस्वती (सर्जन तथा ज्ञान), विष्णु-लक्ष्मी (पालन तथा साधन) और शिव-पार्वती (विसर्जन तथा शक्ति)। कार्य विभाजन अनुसार पत्नियां ही पतियों की शक्तियां हैं।
इंद्र
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बारिश और विद्युत को संचालित करते हैं। प्रत्येक मन्वंतर में एक इंद्र हुए हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं- यज्न, विपस्चित, शीबि, विधु, मनोजव, पुरंदर, बाली, अद्भुत, शांति, विश, रितुधाम, देवास्पति और सुचि।
अग्नि
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अग्नि का दर्जा इन्द्र से दूसरे स्थान पर है। देवताओं को दी जाने वाली सभी आहूतियां अग्नि के द्वारा ही देवताओं को प्राप्त होती हैं। बहुत सी ऐसी आत्माएं है जिनका शरीर अग्निरूप में है, प्रकाश रूप में नहीं।देबकी गुरु
सूर्य
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प्रत्यक्ष सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है तो इस नाम से एक देवता भी हैं। दोनों ही देवता हैं। कर्ण सूर्यपुत्र ही था। सूर्य का कार्य मुख्य सचिव जैसा है। सूर्यदेव जगत के समस्त प्राणियों को जीवनदान देते हैं।
वायु
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वायु को पवनदेव भी कहा जाता है। वे सर्वव्यापक हैं। उनके बगैर एक पत्ता तक नहीं हिल सकता और बिना वायु के सृष्टि का समस्त जीवन क्षणभर में नष्ट हो जाएगा। पवनदेव के अधीन रहती है जगत की समस्त वायु।
वरुण
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वरुणदेव का जल जगत पर शासन है। उनकी गणना देवों और दैत्यों दोनों में की जाती है। वरुण को बर्फ के रूप में रिजर्व स्टॉक रखना पड़ता है और बादल के रूप में सभी जगहों पर आपूर्ति भी करना पड़ती है।
यमराज
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यमराज सृष्टि में मृत्यु के विभागाध्यक्ष हैं। सृष्टि के प्राणियों के भौतिक शरीरों के नष्ट हो जाने के बाद उनकी आत्माओं को उचित स्थान पर पहुंचाने और शरीर के हिस्सों को पांचों तत्व में विलीन कर देते हैं। वे मृत्यु के देवता हैं।
कुबेर
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कुबेर धन के अधिपति और देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं।
मित्र
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मित्र देव और देवगणों के बीच संपर्क का कार्य करते हैं। वे ईमानदारी, मित्रता तथा व्यावहारिक संबंधों के प्रतीक देवता हैं।
कामदेव
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कामदेव और रति सृष्टि में समस्त प्रजनन क्रिया के निदेशक हैं। उनके बिना सृष्टि की कल्पना ही नहीं की जा सकती। पौराणिक कथानुसार कामदेव का शरीर भगवान शिव ने भस्म कर दिया था अतः उन्हें अनंग (बिना शरीर) भी कहा जाता है। इसका अर्थ यह है कि काम एक भाव मात्र है जिसका भौतिक वजूद नहीं होता।
अदिति और दिति
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अदिति और दिति को भूत, भविष्य, चेतना तथा उपजाऊपन की देवी माना जाता है।
धर्मराज और चित्रगुप्त
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संसार के लेखा-जोखा कार्यालय को संभालते हैं और यमराज, स्वर्ग तथा नरक के मुख्यालयों में तालमेल भी कराते रहते हैं।
अर्यमा या अर्यमन
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यह आदित्यों में से एक हैं और देह छोड़ चुकी आत्माओं के अधिपति हैं अर्थात पितरों के देव।
गणेश
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शिवपुत्र गणेशजी को देवगणों का अधिपति नियुक्त किया गया है। वे बुद्धिमत्ता और समृद्धि के देवता हैं। विघ्ननाशक की ऋद्धि और सिद्धि नामक दो पत्नियां हैं।
कार्तिकेय
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कार्तिकेय वीरता के देव हैं तथा वे देवताओं के सेनापति हैं। उनका एक नाम स्कंद भी है। उनका वाहन मोर है तथा वे भगवान शिव के पुत्र हैं। दक्षिण भारत में उनकी पूजा का प्रचलन है। इराक, सीरिया आदि जगहों पर रह रहे यजीदियों को उनकी ही कौम का माना जाता है, जो आज दरबदर हैं।
देवऋषि नारद
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नारद देवताओं के ऋषि हैं तथा चिरंजीवी हैं। वे तीनों लोकों में विचरने में समर्थ हैं। वे देवताओं के संदेशवाहक और गुप्तचर हैं। सृष्टि में घटित होने वाली सभी घटनाओं की जानकारी देवऋषि नारद के पास होती है।
हनुमान
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देवताओं में सबसे शक्तिशाली देव रामदूत हनुमानजी अभी भी सशरीर हैं। उन्हें चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त है। वे पवनदेव के पुत्र हैं। बुद्धि और बल देने वाले देवता हैं। उनका नाम मात्र लेने से सभी तरह की बुरी शक्तियां और संकटों का खात्मा हो जाता है।
देवताओं के नाम का अर्थ
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ईश्वर का उनके गुणों के आधार पर देववाची नामकरण किया गया है, जैसे -
*अग्नि*- तेजस्वी।
*प्रजापति*- प्रजा का पालन करने वाला।
*इन्द्र-* ऐश्वर्यवान।
*ब्रह्मा*- बनाने वाला।
*विष्णु-* व्यापक। *रुद्र-* भयंकर।
*शिव*- कल्याण कारक। *मातरिश्वा*- अत्यंत बलवान।
*वायु-* वेगवान।
*आदित्य*- अविनाशी।
*मित्र*- मित्रता रखने वाला।
*वरुण*- ग्रहण करने योग्य।
*अर्यमा*- न्यायवान। *सविता-*उत्पादक।
*कुबेर-* व्यापक। *वसु-* सब में बसने वाला।
*चंद्र*- आनंद देने वाला।
*मंगल*- कल्याणकारी।
*बुध-* ज्ञानस्वरूप।
*बृहस्पति*- समस्त ब्रह्माण्डों का स्वामी।
*शुक्र -* पवित्र।
*शनिश्चर*- सहज में प्राप्त होने वाला।
*राहु-* निर्लिप्त।
*केतु*- निर्दोष।
*निरंजन-* कामनारहित।
*गणेश*- प्रजा का स्वामी।
*धर्मराज*- धर्म का स्वामी।
*यम-* फलदाता।
*काल-* समय रूप।
*शेष*- उत्पत्ति और प्रलय से बचा हुआ। *महादेव भोले शंकर*- कल्याण करने वाला।
साभार~ पं देव शर्मा💐
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मोक्षदायिनी सप्तपुरियां कौन कौन सी हैं?
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सप्तपुरी पुराणों में वर्णित सात मोक्षदायिका पुरियों को कहा गया है। इन पुरियों में 'काशी', 'कांची' (कांचीपुरम), 'माया' (हरिद्वार), 'अयोध्या', 'द्वारका', 'मथुरा' और 'अवंतिका' (उज्जयिनी) की गणना की गई है।
'काशी कांची चमायाख्यातवयोध्याद्वारवतयपि, मथुराऽवन्तिका चैताः सप्तपुर्योऽत्र मोक्षदाः'; 'अयोध्या-मथुरामायाकाशीकांचीत्वन्तिका, पुरी द्वारावतीचैव सप्तैते मोक्षदायिकाः।'
पुराणों के अनुसार इन सात पुरियों या तीर्थों को मोक्षदायक कहा गया है। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
1. अयोध्या
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अयोध्या उत्तर प्रदेश प्रान्त का एक शहर है। दशरथ अयोध्या के राजा थे। श्रीराम का जन्म यहीं हुआ था। राम की जन्म-भूमि अयोध्या उत्तर प्रदेश में सरयू नदी के दाएँ तट पर स्थित है। अयोध्या हिन्दुओं के प्राचीन और सात पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है। अयोध्या को अथर्ववेद में ईश्वर का नगर बताया गया है और इसकी संपन्नता की तुलना स्वर्ग से की गई है।
रामायण के अनुसार अयोध्या की स्थापना मनु ने की थी। कई शताब्दियों तक यह नगर सूर्य वंश की राजधानी रहा। अयोध्या एक तीर्थ स्थान है और मूल रूप से मंदिरों का शहर है। यहाँ आज भी हिन्दू, बौद्ध, इस्लाम और जैन धर्म से जुड़े अवशेष देखे जा सकते हैं। जैन मत के अनुसार यहाँ आदिनाथ सहित पाँच तीर्थंकरों का जन्म हुआ था।
2. मथुरा
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पुराणों में मथुरा के गौरवमय इतिहास का विषद विवरण मिलता है। अनेक धर्मों से संबंधित होने के कारण मथुरा में बसने और रहने का महत्त्व क्रमश: बढ़ता रहा। ऐसी मान्यता थी कि यहाँ रहने से पाप रहित हो जाते हैं तथा इसमें रहने करने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
वराह पुराण में कहा गया है कि इस नगरी में जो लोग शुध्द विचार से निवास करते हैं, वे मानव के रूप में साक्षात देवता हैं।[3] श्राद्ध कर्म का विशेष फल मथुरा में प्राप्त होता है। मथुरा में श्राद्ध करने वालों के पूर्वजों को आध्यात्मिक मुक्ति मिलती है।उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव ने मथुरा में तपस्या कर के नक्षत्रों में स्थान प्राप्त किया था।
पुराणों में मथुरा की महिमा का वर्णन है। पृथ्वी के यह पूछने पर कि मथुरा जैसे तीर्थ की महिमा क्या है? महावराह ने कहा था- "मुझे इस वसुंधरा में पाताल अथवा अंतरिक्ष से भी मथुरा अधिक प्रिय है। वराह पुराण में भी मथुरा के संदर्भ में उल्लेख मिलता है, यहाँ की भौगोलिक स्थिति का वर्णन मिलता है।यहाँ मथुरा की माप बीस योजन बतायी गयी है।
इस मंडल में मथुरा, गोकुल, वृन्दावन, गोवर्धन आदि नगर, ग्राम एवं मंदिर, तड़ाग, कुण्ड, वन एवं अनगणित तीर्थों के होने का विवरण मिलता है। इनका विस्तृत वर्णन पुराणों में मिलता है। गंगा के समान ही यमुना के गौरवमय महत्त्व का भी विशद विवरण किया गया है। पुराणों में वर्णित राजाओं के शासन एवं उनके वंशों का भी वर्णन प्राप्त होता है।
3. हरिद्वार
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हरिद्वार उत्तराखंड में स्थित भारत के सात सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में एक है। भारत के पौराणिक ग्रंथों और उपनिषदों में हरिद्वार को मायापुरी कहा गया है। गंगा नदी के किनारे बसा हरिद्वार अर्थात हरि तक पहुंचने का द्वार है। हरिद्वार को धर्म की नगरी माना जाता है। सैकडों सालों से लोग मोक्ष की तलाश में इस पवित्र भूमि में आते रहे हैं।
इस शहर की पवित्र नदी गंगा में डुबकी लगाने और अपने पापों का नाश करने के लिए साल भर श्रद्धालुओं का आना जाना यहाँ लगा रहता है। गंगा नदी पहाड़ी इलाकों को पीछे छोड़ती हुई हरिद्वार से ही मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है। उत्तराखंड क्षेत्र के चार प्रमुख तीर्थस्थलों का प्रवेश द्वार हरिद्वार ही है। संपूर्ण हरिद्वार में सिद्धपीठ, शक्तिपीठ और अनेक नए पुराने मंदिर बने हुए हैं।
4. काशी
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वाराणसी, काशी अथवा बनारस भारत देश के उत्तर प्रदेश का एक प्राचीन और धार्मिक महत्ता रखने वाला शहर है। वाराणसी का पुराना नाम काशी है। वाराणसी विश्व का प्राचीनतम बसा हुआ शहर है। यह गंगा नदी किनारे बसा है और हज़ारों साल से उत्तर भारत का धार्मिक एवं सांस्कृतिक केन्द्र रहा है।
दो नदियों वरुणा और असि के मध्य बसा होने के कारण इसका नाम वाराणसी पडा। बनारस या वाराणसी का नाम पुराणों, रामायण, महाभारत जैसे अनेकानेक ग्रन्थों में मिलता है। संस्कृत पढने प्राचीन काल से ही लोग वाराणसी आया करते थे। वाराणसी के घरानों की हिन्दुस्तानी संगीत में अपनी ही शैली है।
5. कांचीपुरम
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कांचीपुरम तीर्थपुरी दक्षिण की काशी मानी जाती है, जो मद्रास से 45 मील की दूरी पर दक्षिण–पश्चिम में स्थित है। कांचीपुरम को कांची भी कहा जाता है। यह आधुनिक काल में कांचीवरम के नाम से भी प्रसिद्ध है। ऐसी अनुश्रुति है कि इस क्षेत्र में प्राचीन काल में ब्रह्मा जी ने देवी के दर्शन के लिये तप किया था।
मोक्षदायिनी सप्त पुरियों अयोध्या, मथुरा, द्वारका, माया(हरिद्वार), काशी और अवन्तिका (उज्जैन) में इसकी गणना की जाती है। कांची हरिहरात्मक पुरी है। इसके दो भाग शिवकांची और विष्णुकांची हैं। सम्भवत: कामाक्षी अम्मान मंदिर ही यहाँ का शक्तिपीठ है।
6. अवंतिका
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उज्जयिनी का प्राचीनतम नाम अवन्तिका, अवन्ति नामक राजा के नाम पर था। [9] इस जगह को पृथ्वी का नाभिदेश कहा गया है। महर्षि सान्दीपनि का आश्रम भी यहीं था।
उज्जयिनी महाराज विक्रमादित्य की राजधानी थी। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में देशान्तर की शून्य रेखा उज्जयिनी से प्रारम्भ हुई मानी जाती है। इसे कालिदास की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ हर 12 वर्ष पर सिंहस्थ कुंभ मेला लगता है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक महाकाल इस नगरी में स्थित है।
7. द्वारका
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द्वारका का प्राचीन नाम है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाराजा रैवतक के समुद्र में कुश बिछाकर यज्ञ करने के कारण ही इस नगरी का नाम कुशस्थली हुआ था।
बाद में त्रिविकम भगवान ने कुश नामक दानव का वध भी यहीं किया था। त्रिविक्रम का मंदिर द्वारका में रणछोड़जी के मंदिर के निकट है। ऐसा जान पड़ता है कि महाराज रैवतक (बलराम की पत्नी रेवती के पिता) ने प्रथम बार, समुद्र में से कुछ भूमि बाहर निकाल कर यह नगरी बसाई होगी।
हरिवंश पुराण के अनुसार कुशस्थली उस प्रदेश का नाम था जहां यादवों ने द्वारका बसाई थी। विष्णु पुराण के अनुसार,अर्थात् आनर्त के रेवत नामक पुत्र हुआ जिसने कुशस्थली नामक पुरी में रह कर आनर्त पर राज्य किया।
विष्णु पुराण से सूचित होता है कि प्राचीन कुशावती के स्थान पर ही श्रीकृष्ण ने द्वारका बसाई थी-'कुशस्थली या तव भूप रम्या पुरी पुराभूदमरावतीव, सा द्वारका संप्रति तत्र चास्ते स केशवांशो बलदेवनामा'।
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