शत शत नमन
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सुशील मेहता
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भगत सिंह जयंती भगत सिंह का जन्म लायलपुर (जो अब पाकिस्तान में है) स्थित बंगा गांव में हुआ था। अगर आप ये सोच रहे हैं कि यहां हम आपको उनके जन्म की तारीख के बारे में क्यों नहीं बता रहे है, तो यहां आपको बताते चलें कि दरअसल, भगत सिंह की जयंती दो दिन (27 और 28 सितंबर) मनाई जाती है। भगत सिंह एक महान क्रांतिकारी थे, जिन्होंने भारत को आजादी दिलाने में अहम योगदान निभाया और अंग्रजों से जमकर टक्कर ली। उनके इस जुनून को देखकर ब्रिटिश सम्राज्य भी हिल गया था। लेकिन आप भगत सिंह के जीवन के बारे में कितना जानते हैं? क्या आप जानते हैं कि उन्हें फांसी क्यों और कब दी गई थी? शायद इस बारे में आप बेहद कम जानते हों, तो चलिए हम आपको उनके जीवन से जुड़े कई रोचक पहलूओं के बारेमें बताते हैं, जिन्हें जानकर आप भगत सिंह को बेहद करीब से जान पाएंगे।कहा जाता है कि भगत सिह को देश भक्ति विरासत मे मिली थी, क्योंकि उनके दादा अर्जुन सिंह, उनके पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह गदर पार्टी के अभिन्न हिस्से थे। जब 13 अप्रैल 1919 को जलियावाला बाग में नरसंहार हुआ, तो इसे देखकर भगत सिंह काफी व्यथित हुए थे और इसी के कारण अपना कॉलेज छोड़ वो आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे।भगत सिंह के आजादी की जंग में कूदने के बाद जहां एक तरफ इसे रफ्तार मिली, तो वहीं दूसरी तरफ अंग्रेज उन्हें देखकर हैरान रह गए थे। अंग्रेजों को सबक सिखाने के लिए उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी और 23 मार्च 1931 को अपने क्रांतिकारी साथियों सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर असेंबली में बम फेंका। इसके बदले में अंग्रजों ने राजगुरु और सुखदेव के साथ भगत सिंह को भी फांसी दे दी और उस वक्क भगत सिंह की उम्र महज 23 साल थी।वो दौर आजादी की लड़ाई का था और भगत सिंह इस लड़ाई का एक चर्चित चेहरा बन चुके थे। ऐसे में उनसे जुड़ी कोई भी खबर आग की तरह फैल जाती थी। वहीं, जब भगत सिंह की फांसी मुकर्रर हुई तो उनकी कम उम्र और पूरे भारत में उनकी लोकप्रियता को देखते हुए कोई भी मजिस्ट्रेट ये हिम्मत नहीं जुटा पाए कि वे फांसी स्थल पर जा पाए। ऐसे में अंग्रेजों ने एक मानद न्यायाधीश को बुलाया और उसके हस्ताक्षर लेने के बाद ही उनकी कस्टडी में भगत सिंह को फांसी दी।उस दौर में ज्यादातर शादियां 12 से 14 साल की उम्र के बीच हो जाती थी, जिसके कारण भगत सिंह की मां विद्यावती भी चाहती थी कि उनके भगत सिंह के सिर पर सेहरा बंधे। ऐसे में उन्होंने भगत सिंह से शादी की बात की, जिस पर वे कानपुर चले गए और जाते हुए अपने माता-पिता से कह गए कि इस गुलाम भारत में मेरी दुल्हन बनने का अधिकार सिर्फ मेरी मौत को है, जिसके बाद वे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएश में शामिल हो गए। #शत शत नमन
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सुशील मेहता
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सर्जिकल स्ट्राइक दिवस पराक्रम पर्व के रुप में जानने वाला 28 सितंबर 2016...यह वह रात है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कुछ शीर्ष नेता नए भारत की पटकथा लिख रहे थे। पूरा देश तो सो रहा था, लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय में गहमागहमी थी। भारतीय फौजें पाकिस्तान की सीमा के अंदर घुस कर आतंकी कैंपों को खत्म करके वापस आ चुकी थीं। 29 को दुनिया ने यह जान लिया था कि नए भारत का सूर्योदय हो चुका है। यह नया भारत न झुकेगा और न ही रुकेगा। 18 सितंबर 2016 को पाकिस्तान से आए आतंकियों ने जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में भारतीय सेना के शिविर पर हमला किया था। इस घातक हमले में 18 जवान शहीद हो गए थे। पूरे देश में आक्रोश था। तब पीएम मोदी ने कहा था कि हमलावर बेखौफ नहीं जाएंगे और उन्हें माफ नहीं किया जाएगा। 18 जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। हमले की प्रतिक्रिया में आतंकवादी समूहों के खिलाफ 28-29 सितंबर की रात जवाबी हमले किए गए थे। पाकिस्तान आतंकी कैंपों की मौजूदगी को स्वीकार नहीं कर रहा था। भारत ने कड़ा रुख अपनाते हुए ऐसा कदम उठाया कि न सिर्फ पाकिस्तान बल्कि पूरी दुनिया को दिखा दिया कि भारत आतंकी कैंपों का खात्मा कर सकता है। 28-29 सितंबर की दरम्यानी रात को भारतीय सेना के विशेष बलों ने नियंत्रण रेखा (एलओसी) पार कर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आतंकी लॉन्च पैड्स पर सर्जिकल स्ट्राइक की और उन्हें तबाह कर दिया। इस हमले में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी आतंकवादियों के छह लॉन्चपैड को तबाह कर दिया था और करीब 45 आतंकी इस कार्रवाई में मारे गए थे। इस हमले के दो साल बाद 2018 में भारत सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक दिवस मनाना शुरू किया। इस सर्जिकल स्ट्राइक को सबसे बेहतरीन सैन्य ऑपरेशन के रूप में भी याद किया जाता है क्योंकि दुश्मन ठिकानों को तहस-नहस करने के दौरान भारतीय सेना के किसी जवान को मामूली खरोंच तक नहीं आई थी। भारत ने पाकिस्तान को सबक सिखाने की योजना बनाई। पहली बार आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई को लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) पार कर अंजाम दिया गया। 28-29 सितंबर की रात भारतीय सेना के विशेष बलों के 150 कमांडोज की मदद से सर्जिकल स्ट्राइक ऑपरेशन किया गया। भारतीय सेना आधी रात पीओके में 3 किलोमीटर अंदर घुसे और आतंकियों के ठिकानों को नेस्तनाबूद कर दिया। 28 सितंबर की आधी रात 12 बज MI 17 हेलिकॉप्टरों के जरिए 150 कमांडो को एलओसी के पास उतारा गया। यहां से 4 और 9 पैरा के 25 कमांडो ने एलओसी पार की और पाक अधिकृत कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया। इस स्ट्राइक के लिए सेना ने अपनी तैयारी 24 सितंबर से शुरू कर दी थी। स्पेशल कमांडोज को नाइट-विजन डिवाइस, Tavor 21 और AK-47 असॉल्ट राइफल, रॉकेट-प्रोपेल्ड ग्रेनेड, शोल्डर-फाइबल मिसाइल, हेकलर और कोच पिस्तौल, उच्च विस्फोटक ग्रेनेड और प्लास्टिक विस्फोटक से लैस किया गया था। टीम में 30 भारतीय जवान शामिल थे।कमांडोज ने बिना मौका गंवाए आतंकियों पर ग्रेनेड फेंके। अफरा-तफरी फैलते ही स्मोक ग्रेनेड के साथ ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं। हमले में आतंकियों के साथ पाकिस्तानी सेना के कुछ जवान भी मारे गए। ये ऑपरेशन रात साढ़े 12 बजे शुरू हुआ था और सुबह साढ़े 4 बजे तक चला। पूरे अभियान पर दिल्ली में सेना मुख्यालय से रात भर नजर रखी गई थी। इन आतंकी शिविरों को भारत में आतंकवादियों को भेजने के लिए लॉन्चपैड के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। सैनिकों के अंदर जाने और लगभग पांच घंटे तक चलने वाले ऑपरेशन को पूरा करने से पहले इन लॉन्चपैडों पर तैनात पहरेदारों को स्निपर्स ने मार गिराया। इस हमले में पीओके स्थिति आतंकवादियों के ठिकाने बुरी तरह तबाह हो गए और अतंकियों की कमर टूट गई। #शत शत नमन
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सुशील मेहता
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दीनदयाल उपाध्याय जयंती पंडित दीनदयाल उपाध्याय ( जन्म: 25 सितम्बर 1916–11 फरवरी 1968) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चिंतक (चिन्तक) और संगठनकर्ता थे। वे भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्म मानववाद नामक विचारधारा दी। वे एक समावेशित विचारधारा के समर्थक थे जो एक मजबूत और सशक्त भारत चाहते थे। राजनीति के अतिरिक्त साहित्य में भी उनकी गहरी अभिरुचि थी। उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में कई लेख लिखे, जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर 1916 को मथुरा जिले के "नगला चन्द्रभान" ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय था, जो नगला चंद्रभान (फरह, मथुरा) के निवासी थे। उनकी माता का नाम रामप्यारी था, जो धार्मिक प्रवृत्ति की थीं। पिता रेलवे में जलेसर रोड स्टेशन के सहायक स्टेशन मास्टर थे। 1937 में जब वह कानपुर से बी०ए० कर थे, अपने सहपाठी बालूजी महाशब्दे की प्रेरणा से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आये। संघ के संस्थापक डॉ० हेडगेवार का सान्निध्य कानपुर में ही मिला। उपाध्याय जी ने पढ़ाई पूरी होने के बाद संघ का दो वर्षों का प्रशिक्षण पूर्ण किया और संघ के जीवनव्रती प्रचारक हो गये। आजीवन संघ के प्रचारक रहे। संघ के माध्यम से ही उपाध्याय जी राजनीति में आये। 21 अक्टूबर 1951 को डॉ० श्यामाप्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में 'भारतीय जनसंघ' की स्थापना हुई। गुरुजी (गोलवलकर जी) की प्रेरणा इसमें निहित थी। 1952 में इसका प्रथम अधिवेशन कानपुर में हुआ। उपाध्याय जी इस दल के महामंत्री बने। इस अधिवेशन में पारित 15 प्रस्तावों में से 7 उपाध्याय जी ने प्रस्तुत किये। डॉ० मुखर्जी ने उनकी कार्यकुशलता और क्षमता से प्रभावित होकर कहा- "यदि मुझे दो दीनदयाल मिल जाएं, तो मैं भारतीय राजनीति का नक्शा बदल दूँ।"1967 तक उपाध्याय जी भारतीय जनसंघ के महामंत्री रहे। 1967 में कालीकट अधिवेशन में उपाध्याय जी भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। वह मात्र 43 दिन जनसंघ के अध्यक्ष रहे। 10/11 फरवरी 1968 की रात्रि में मुगलसराय स्टेशन पर उनकी हत्या कर दी गई। #शत शत नमन
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सुशील मेहता
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गुरु नानक देव ज्योति ज्योत गुरु गद्दी की सारी बातचीत भाई बुड्डा जी आदि निकटवर्ती सिखो को समझाकर गुरु नानक देव जी (Shri Guru Nanak Dev Ji) ने बैकुंठ जाने की तैयारी कर ली| ऐसा सुनकर दूर दूर से सिख आपके अन्तिम दर्शन करने ले लिए आ गए| गुरु जी अपनी धर्मशाला में बैठे थे और कीर्तन हो रहा था इस समय माता सुलखनी जी भी दीन मन होकर गुरु जी के पास आ बैठी| गुरु जी ने दोनों साहिबजादों को भी बुलाया| पर वे थोड़ा समय बैठकर वहाँ से चल दिए| असूज सुदी दसवी संवत् 1539 को संगत के सामने गुरु जी चादर तानकर लेट गए और संगत को धैर्य देते हुए कहने लगे-आप सभी सत्यनाम का जाप करो| जाप कर रही संगत ने जब कुछ समय बाद देखा तब गुरु जी अपना शरीर छोडकर बैकुंठ में जा चुके थे| आपका अन्तिम संस्कार करने के लिए हिन्दू कहे कि हमारा गुरु है हमने संस्कार करना है| मुस्लमान कहे कि हमारा पीर है हमने दफ़न करना है| इस प्रकार झगडा और संगत को धैर्य देते हुए कहने लगे-आप सभी सत्यनाम का जाप करो| जाप कर रही संगत ने जब कुछ समय बाद देखा तब गुरु जी अपना शरीर छोडकर बैकुंठ में जा चुके थे| आपका अन्तिम संस्कार करने के लिए हिन्दू कहे कि हमारा गुरु है हमने संस्कार करना है| मुस्लमान कहे कि हमारा पीर है हमने दफ़न करना है| इस प्रकार झगडा करते जब दोनों धर्मों के लोगों ने चादर उठाकर देखा तो आपका शरीर अलोप था| केवल चादर ही वहाँ रह गई| इस चादर को लेकर आधा हिन्दुओं ने संस्कार कर दिया और आधा मुसलमानों ने कबर में दफ़न कर दिया| गुरु नानक देव जी (Shri Guru Nanak Dev Ji) शरीर त्याग कर के संसार में 70 साल 5 महीने 7 दिन पातशाही करके असूज सुदी 10 संवत् 1539 करतारपुर में ज्योति ज्योत समाए| #शत शत नमन
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