महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त जी की 115 वी जयंती पर मैं उन्हे कोटिश नमन तथा विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।आप का जन्म 18 नवम्बर 1910 ई को ग्राम-ओँयाड़ि,जिला - नानी बेदवान (बंगाल) में एक कायस्थ परिवार में हुआ था।बटुकेश्वर दत्त जी के पिताजी का नाम गोष्ठ बिहारी दत्ता जी था।आप का बचपन अपने जन्म स्थान के अतिरिक्त बंगाल प्रान्त के वर्धमान जिला अंतर्गत खण्डा और मौसु में बीता।आप की स्नातक स्तरीय शिक्षा पी॰पी॰एन॰ कॉलेज कानपुर में सम्पन्न हुई।1924 ई में कानपुर में इनकी सिख भगत सिंह जी से भेंट हुई।इसके बाद इन्होंने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के लिए कानपुर में कार्य करना प्रारंभ किया। इसी क्रम में बम बनाना भी सीखा।
8 अप्रैल 1929 ई को दिल्ली स्थित केंद्रीय विधानसभा (वर्तमान में संसद भवन) में भगत सिंह के साथ बम विस्फोट कर ब्रिटिश राज्य की तानाशाही का विरोध किया।बम विस्फोट बिना किसी को नुकसान पहुँचाए सिर्फ पर्चों के माध्यम से अपनी बात को प्रचारित करने के लिए किया गया था।उस दिन भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार की ओर से पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल लाया गया था,जो इन लोगों के विरोध के कारण एक वोट से पारित नहीं हो पाया।इस घटना के बाद बटुकेश्वर दत्त जी और सिख भगत सिंह जी को गिरफ्तार कर लिया गया।12 जून 1929 ई को इन दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।सजा सुनाने के बाद इन लोगों को लाहौर फोर्ट जेल में डाल दिया गया।यहाँ पर सिख भगत सिंह जी और बटुकेश्वर दत्त जी पर लाहौर षडयंत्र केस चलाया गया।उल्लेखनीय है कि साइमन कमीशन के विरोध-प्रदर्शन करते हुए लाहौर में पंजाब केसरी लाला लाजपत राय जी को अंग्रेजों के इशारे पर अंग्रेजी राज के सिपाहियों द्वारा इतना पीटा गया कि उनकी मृत्यु हो गई।इस मृत्यु का बदला अंग्रेजी राज के जिम्मेदार पुलिस अधिकारी को मारकर चुकाने का निर्णय क्रांतिकारियों द्वारा लिया गया था।इस कार्रवाई के परिणामस्वरूप लाहौर षड़यंत्र केस चला,जिसमें भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा दी गई थी।बटुकेश्वर दत्त जी को आजीवन कारावास काटने के लिए काला पानी जेल भेज दिया गया।जेल में ही उन्होंने 1933 ई और 1937 ई में ऐतिहासिक भूख हड़ताल की।सेल्यूलर जेल से 1937 ई में बांकीपुर केन्द्रीय कारागार,पटना में लाए गए और 1938 ई में रिहा कर दिए गए।काला पानी से गंभीर बीमारी लेकर लौटे बटुकेश्वर दत्त जी को फिर गिरफ्तार कर लिया गया।आज़ादी के बाद, 1947 में जेल से रिहा होने के बाद वे पटना चले गए।दत्त जी ने इसके बाद सक्रिय राजनीतिक जीवन से संन्यास ले लिया लेकिन लेख लिखना जारी रखा। दत्त का स्वास्थ्य,जो लंबे समय तक कारावास, भूख हड़ताल और यातना के कारण दुर्बल था,और भी खराब हो गया।दत्त जी ने 20 जुलाई 1965 को एम्स, दिल्ली,में कैंसर के कारण दम तोड़ दिया।🇮🇳🇮🇳🇮🇳🫡😭🙏
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