देशभक्ति
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Praveen Kumar Yadav
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"बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।" देश की आजादी के लिए अंग्रेजो से लोहा लेने वाली महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई जी की 197 वी जयंती पर मैं उन्हे कोटिश: नमन तथा विनम्र श्रद्धांजली अर्पित करता हूं।बनारस में 19 नवंबर 1828 ई को जन्मी लक्ष्मीबाई का बचपन का नाम मणिकर्णिका था।प्यार से उन्हें मनु कहा जाता था।उनके पिता मोरोपंत तांबे और मां भागीरथी सप्रे थीं।वह मनु चार साल की थीं,तभी उनकी मां की निधन हो गया।पिता बिठूर जिले के पेशवा बाजी राव द्वितीय के लिए काम करते थे। उन्होंने लक्ष्मी बाई का पालन पोषण किया।इस दौरान उन्होंने घुड़सवारी, तीरंदाजी,शआत्मरक्षा और निशानेबाजी की ट्रेनिंग ली।14 साल की उम्र में 1842 में मनु की शादी झांसी के शासक गंगाधर राव नेवलेकर से कर दी गई।शादी के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई पड़ा।उस दौर में शादी के बाद लड़कियों का नाम बदल जाता था।विवाह के बाद लक्ष्मी बाई ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसकी मृत्यु महज चार महीने में ही हो गई। बाद में उनके पति और झांसी के राजा का भी निधन हो गया।पति और बेटे को खोने के बाद लक्ष्मी बाई ने खुद ही अपने साम्राज्य और प्रजा की रक्षा की ठान ली।उस समय ब्रिटिश इंडिया कंपनी के वायसराय डलहौजी ने झांसी पर कब्जे का यह बेहतर समय समझा क्योंकि राज्य की रक्षा के लिए कोई नहीं था।उन्होंने रानी लक्ष्मी बाई पर दबाव बनाना शुरू किया कि झांसी को अंग्रेजी हुकूमत के हवाले कर दें।रानी ने रिश्तेदार के एक बच्चे को अपना दत्तक पुत्र बनाया,जिनका नाम दामोदर था।अंग्रेजी हुकूमत ने दामोदर को झांसी का उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया और झांसी का किला उनके हवाले करने को कहा।अंग्रेजों ने साम्राज्य पर कब्जा करने की कोशिश की लेकिन लक्ष्मी बाई ने काशी बाई समेत 14000 बागियों की एक बड़ी फौज तैयार की।23 मार्च 1858 को ब्रिटिश फौज ने झांसी पर आक्रमण कर दिया और 30 मार्च को बमबारी करके किले की दीवार में सेंध लगाने में सफल हुए।17 जून 1858 को लक्ष्मीबाई आखिरी जंग के लिए निकली।पीठ पर दत्तक पुत्र को बांधकर हाथ में तलवार लिए झांसी की रानी ने अंग्रेजों से जंग की।लाॅर्ड कैनिंग की रिपोर्ट के मुताबिक,लक्ष्मीबाई को एक सैनिक ने पीछे से गोली मारी,फिर एक सैनिक ने एक तलवार से उनकी हत्या कर दी।शत् शत् नमन।भारत माता की जय।🇮🇳🇮🇳🇮🇳🙏 #देशभक्ति #🥰मोटिवेशन वीडियो #👍 डर के आगे जीत👌 #🙌 Never Give Up #रानी लक्ष्मीबाई जयंन्ती
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Praveen Kumar Yadav
592 views 15 days ago
महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त जी की 115 वी जयंती पर मैं उन्हे कोटिश नमन तथा विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।आप का जन्म 18 नवम्बर 1910 ई को ग्राम-ओँयाड़ि,जिला - नानी बेदवान (बंगाल) में एक कायस्थ परिवार में हुआ था।बटुकेश्वर दत्त जी के पिताजी का नाम गोष्ठ बिहारी दत्ता जी था।आप का बचपन अपने जन्म स्थान के अतिरिक्त बंगाल प्रान्त के वर्धमान जिला अंतर्गत खण्डा और मौसु में बीता।आप की स्नातक स्तरीय शिक्षा पी॰पी॰एन॰ कॉलेज कानपुर में सम्पन्न हुई।1924 ई में कानपुर में इनकी सिख भगत सिंह जी से भेंट हुई।इसके बाद इन्होंने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के लिए कानपुर में कार्य करना प्रारंभ किया। इसी क्रम में बम बनाना भी सीखा। 8 अप्रैल 1929 ई को दिल्ली स्थित केंद्रीय विधानसभा (वर्तमान में संसद भवन) में भगत सिंह के साथ बम विस्फोट कर ब्रिटिश राज्य की तानाशाही का विरोध किया।बम विस्फोट बिना किसी को नुकसान पहुँचाए सिर्फ पर्चों के माध्यम से अपनी बात को प्रचारित करने के लिए किया गया था।उस दिन भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार की ओर से पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल लाया गया था,जो इन लोगों के विरोध के कारण एक वोट से पारित नहीं हो पाया।इस घटना के बाद बटुकेश्वर दत्त जी और सिख भगत सिंह जी को गिरफ्तार कर लिया गया।12 जून 1929 ई को इन दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।सजा सुनाने के बाद इन लोगों को लाहौर फोर्ट जेल में डाल दिया गया।यहाँ पर सिख भगत सिंह जी और बटुकेश्वर दत्त जी पर लाहौर षडयंत्र केस चलाया गया।उल्लेखनीय है कि साइमन कमीशन के विरोध-प्रदर्शन करते हुए लाहौर में पंजाब केसरी लाला लाजपत राय जी को अंग्रेजों के इशारे पर अंग्रेजी राज के सिपाहियों द्वारा इतना पीटा गया कि उनकी मृत्यु हो गई।इस मृत्यु का बदला अंग्रेजी राज के जिम्मेदार पुलिस अधिकारी को मारकर चुकाने का निर्णय क्रांतिकारियों द्वारा लिया गया था।इस कार्रवाई के परिणामस्वरूप लाहौर षड़यंत्र केस चला,जिसमें भगत सिंह,राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा दी गई थी।बटुकेश्वर दत्त जी को आजीवन कारावास काटने के लिए काला पानी जेल भेज दिया गया।जेल में ही उन्होंने 1933 ई और 1937 ई में ऐतिहासिक भूख हड़ताल की।सेल्यूलर जेल से 1937 ई में बांकीपुर केन्द्रीय कारागार,पटना में लाए गए और 1938 ई में रिहा कर दिए गए।काला पानी से गंभीर बीमारी लेकर लौटे बटुकेश्वर दत्त जी को फिर गिरफ्तार कर लिया गया।आज़ादी के बाद, 1947 में जेल से रिहा होने के बाद वे पटना चले गए।दत्त जी ने इसके बाद सक्रिय राजनीतिक जीवन से संन्यास ले लिया लेकिन लेख लिखना जारी रखा। दत्त का स्वास्थ्य,जो लंबे समय तक कारावास, भूख हड़ताल और यातना के कारण दुर्बल था,और भी खराब हो गया।दत्त जी ने 20 जुलाई 1965 को एम्स, दिल्ली,में कैंसर के कारण दम तोड़ दिया।🇮🇳🇮🇳🇮🇳🫡😭🙏 #🌞 Good Morning🌞 #🙌 Never Give Up #👍 डर के आगे जीत👌 #🥰मोटिवेशन वीडियो #देशभक्ति
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