#क्लाइमेट चेंज🙏जागरूक नागरिक बने । इस लेख को ध्यान से पढ़े और विचार करे की आपको क्या करना चाहिए।🍁न सिर्फ आपके लिए बल्कि आपकी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी क्लाइमेट चेंज को रोकना बहुत जरूरी है।.....
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अध्ययन:
यदि धरती 2.7°C गर्म हुई, तो केवल 24% वर्तमान ग्लेशियर ही बचेंगे यह अध्ययन ऐसे समय आया है जब स्विट्ज़रलैंड के ब्लैटन गाँव (आल्प्स पर्वतमाला) में एक विशाल ग्लेशियर का हिस्सा टूटकर घाटी में आ गिरा और पहाड़ी की तलहटी में बसे गाँव के अधिकांश हिस्से को दबा दिया। यदि मौजूदा जलवायु नीतियों की दिशा जारी रही और वैश्विक तापमान 2.7°C तक बढ़ा, तो दुनिया के केवल 24% मौजूदा ग्लेशियर ही बच पाएंगे — Science जर्नल में प्रकाशित इस ताज़ा अध्ययन ने चेताया है कि ग्लेशियर, पहले की अपेक्षा कहीं अधिक संवेदनशील हैं। यह अध्ययन ठीक उसी दिन आया है जिस दिन स्विट्ज़रलैंड के ब्लैटन में बड़ा हिमखंड टूटकर नीचे गिरा। यह अनुमान वैश्विक परिदृश्यों पर आधारित हैं, और अंटार्कटिका व ग्रीनलैंड जैसे विशाल ग्लेशियरों का असर इसमें अधिक है।
अध्ययन में चेताया गया है कि भले ही तापमान आज के स्तर पर स्थिर हो जाए, फिर भी 2020 की तुलना में ग्लेशियर अपनी 39% बर्फ़ खो देंगे, जिससे समुद्र स्तर में लगभग 113 मिमी की वृद्धि होगी। अध्ययन के अनुसार, स्कैंडेनेविया, कनाडा और अमेरिका के रॉकी पर्वत तथा यूरोपीय आल्प्स जैसे क्षेत्र सबसे अधिक जोखिम में हैं। स्कैंडेनेविया में यदि तापमान 2°C तक बढ़ा तो कोई भी ग्लेशियर नहीं बचेगा, जबकि रॉकी पर्वत और यूरोपीय आल्प्स में केवल 10-15% ग्लेशियर ही शेष रहेंगे। यहां तक कि यदि तापमान केवल 1°C तक बढ़ता है, तब भी इन क्षेत्रों में आधी से अधिक बर्फ़ समाप्त हो जाएगी। इस शोध के सह-लेखक डॉ. हैरी ज़ेकोलारी (Vrije Universiteit Brussel) कहते हैं
: “हमारा अध्ययन यह कड़वी सच्चाई स्पष्ट करता है कि तापमान के हर अंश का बहुत बड़ा असर होता है।”
“हम आज जो विकल्प चुनते हैं, वे आने वाली सदियों तक गूंजते रहेंगे, यह तय करते हुए कि हम अपने ग्लेशियरों को कितना बचा सकते हैं।”
शोध की सह-लेखिका डॉ. लिलियन शूस्टर (University of Innsbruck) कहती हैं: “ग्लेशियर जलवायु परिवर्तन के अच्छे संकेतक होते हैं क्योंकि उनका पिघलना हमें साफ़ दिखाता है कि मौसम बदल रहा है… लेकिन सच्चाई यह है कि स्थिति जितनी हमें पहाड़ों में दिखती है, उससे कहीं ज़्यादा भयावह है।”
हालांकि भारतीय ग्लेशियर — विशेषकर दक्षिण-पश्चिम एशिया के — वर्तमान तापमान वृद्धि के तहत केवल 5% की अनुमानित हानि दिखाते हैं, पर अध्ययन यह भी दर्शाता है कि ये क्षेत्र अतिरिक्त तापमान वृद्धि के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं। 1.5°C से 3°C के बीच, हर 0.1°C तापमान वृद्धि पर वैश्विक स्तर पर लगभग 2% अधिक ग्लेशियर हानि होती है — और भारतीय उपमहाद्वीप में यह गिरावट और भी तेज़ होती है। भारत की प्रमुख नदियाँ — गंगा, सिंधु और ब्रह्मपुत्र — उत्तर भारत, पूर्वोत्तर और पूरे इंडो-गैंगेटिक मैदान में करोड़ों लोगों की आजीविका का आधार हैं।
हिंदुकुश हिमालय में यदि तापमान 2°C तक बढ़ता है, तो 2020 की तुलना में केवल 25% बर्फ़ ही शेष बचेगी। इस निष्कर्ष तक पहुँचने के लिए 10 देशों के 21 वैज्ञानिकों की टीम ने 8 अलग-अलग ग्लेशियर मॉडल का उपयोग किया, जिन्होंने 200,000 से अधिक ग्लेशियरों पर विभिन्न तापमान परिदृश्यों के अनुसार बर्फ़ की हानि का आकलन किया।
अध्ययन में दीर्घकालिक और अत्याधुनिक सिमुलेशन का उपयोग किया गया, जिससे यह सामने आया कि कुछ ग्लेशियर प्रणालियाँ — विशेष रूप से ध्रुवीय क्षेत्रों में — आज की जलवायु के प्रति पूर्ण प्रतिक्रिया देने में हज़ार वर्षों तक ले सकती हैं।
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