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2122 2122 2122 212
हर नज़र में हम मुकद्दर के सिकंदर हो गए
फूल के जैसे थे हम भी एक पत्थर हो गए
रस्क थाअल्फाज पे उनके कभी दिलको मेरे
आजनिकले जो जुबाँ से उनके नश्तर हो गए
जब्त थे पलको पे मेरे मुद्दतो से दोस्तों
आंख से जो आज निकले तो समुंदर हो गए
जाने कैसा वक्त मेरी ज़िन्दगी में आ गया
जोकभी दिलबर थे वोआज सितमगर होगए
साथ था जन्मों जनम का जिनसे मेरे प्यार का
मिल के गैरो से सनम वो मेरे विषधर हो गए
ये विरह की रातें तो अब भी जलाती है हमे
रातका तम चीरकर गम सारे दिनकर हो गए
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
11/7/2017 #📚कविता-कहानी संग्रह #शायरी #💝 शायराना इश्क़ #✒ शायरी #📜मेरी कलम से✒️