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राधे-कृष्ण का प्रेम केवल रोमांटिक नहीं, बल्कि वेदांत में पुरुष–प्रकृति की एक गूढ़ दार्शनिक अभिव्यक्ति है — जहाँ कृष्ण को सर्वआकर्षक (आकर्षण का स्रोत) और राधा को उसकी ऊर्जा/भावना का साक्षात रूप माना गया है, जिससे भक्ति में “द्वैत” और “अद्वैत” का रस एक साथ मिलता है; इस दृष्टि से उनका संबंध सिर्फ देवत्व नहीं बल्कि मानव-मनोविज्ञान और आध्यात्मिक चेतना का भी प्रतीक है। वर्तमान काल में यह विषय नाटकीय रूप से लोकप्रिय हुआ है, और टीवी-श्रृंखला व आधुनिक प्रसार ने इन जीवंत आख्यानों को नई पीढ़ी तक पहुँचाया है — इसलिए लोग न केवल कथा देखते हैं बल्कि सांस्कृतिक स्मृति और उत्सवों के माध्यम से अनुभव भी साझा करते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो कथाएँ, भजन और पर्व (जैसे जन्मोत्सव/अर्चना) सामूहिक भावना और पहचान को मजबूत करते हैं, जो सामाजिक-संजाल और मनोवैज्ञानिक स्थिरता में योगदान दे सकता है — यही वजह है कि हर त्योहार पर इनकी प्रासंगिकता बढ़ जाती है। रचनात्मक एक वाक्य के रूप में: “राधे-कृष्ण — वह नाजुक शक्ति जो आत्मा को खींचे, और हर दूरी को प्रेम में पिघला दे।” 😊🌺🕊️ #RadheRadhe #RadhaKrishna #DivineLove #भक्ति #धर्म @Radhe krishna @jay shree radhe krishna *****:.(())🙏
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