Failed to fetch language order
जय माता की
1K Posts • 2M views
Davinder Singh Rana
733 views 4 days ago
*देवी का नाम 'काली' पड़ने का कारण* 🚩🔱🚩🔱🚩🔱🚩🔱🚩🔱🚩🔱 कालिका पुराण के अनुसार, सभी देवता एक बार हिमालय में मतंग मुनि के आश्रम में गए और आद्या शक्ति या महामाया की स्तुति करने लगे। सभी देवताओं द्वारा की गई वंदना तथा स्तुति से देवी अत्यंत प्रसन्न हुई तथा एक काले रंग की विशाल पहाड़ जैसी स्वरूप वाली दिव्य स्त्री देखते ही देखते सभी देवताओं के सन्मुख प्रकट हुई। वह स्त्री देखने में अमावस्या के अंधकार जैसी थी, इस कारण उस शक्ति का नाम 'काली' पड़ा। वास्तव में देवी, शिव पत्नी पार्वती के देह से उत्पन्न हुई थीं, जिनका पूर्व में सर्वप्रथम घोर अन्धकार से उत्पत्ति होने के कारण आद्या काली नाम पड़ा था। मार्गशीर्ष मास की कृष्ण अष्टमी कालाष्टमी कहलाती हैं, इस दिन सामान्यतः महा-काली की पूजा, आराधना की जाती हैं या कहे तो पौराणिक काली की आराधना होती हैं, जो दुर्गा जी के नाना रूपों में से एक हैं। परन्तु तांत्रिक मतानुसार, दक्षिणा काली या आद्या काली की साधना कार्तिक अमावस्या या दीपावली के दिन होती हैं। शक्ति तथा शैव समुदाय इस दिन आद्या शक्ति काली के भिन्न-भिन्न स्वरूपों की आराधना करता हैं। जबकि वैष्णव समुदाय का अनुसरण करने वाले इस दिन, धन-दात्री महा लक्ष्मी की आराधना करते हैं। काली के प्रादुर्भाव से सम्बंधित कथा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ कालिका पुराण के अनुसार, देवी काली के दो स्वरूप हैं, प्रथम 'आद्या शक्ति काली' तथा द्वितीय केवल पौराणिक 'काली या महा-काली'। दक्षिणा काली जो साक्षात् आद्या शक्ति ही हैं, अजन्मा तथा सर्वप्रथम शक्ति हैं, जिनसे पूर्व में इस चराचर जगत की उत्पत्ति हुई थी, देवी ही चराचर जगत की स्वामिनी हैं। द्वितीय 'देवी दुर्गा या शिव पत्नी सती, पार्वती' से सम्बंधित हैं तथा देवी के भिन्न-भिन्न अवतारों में से एक हैं, यह वही हैं, जिनका प्रादुर्भाव मतंग मुनि के आश्रम में देवताओं द्वारा स्तुति करने पर अम्बिका के ललाट से हुआ था तथा जो तमोगुण की स्वामिनी हैं। परन्तु, वास्तविक रूप से देखा जाये तो दोनों शक्तियाँ एक ही हैं। दुर्गा सप्तशती (मार्कण्डये पुराण के अंतर्गत एक भाग, आद्या शक्ति के विभिन्न अवतारों की शौर्य गाथा से सम्बंधित पौराणिक पाठ्य पुस्तक), के अनुसार एक समय समस्त त्रि-भुवन (स्वर्ग, पाताल तथा पृथ्वी) शुम्भ और निशुम्भ नामक दो दैत्य भाइयों के अत्याचार से त्रस्त थे। दोनों समस्त देवताओं के अधिकारों को छीनकर, स्वयं ही भोग करते थे। देवता स्वर्गहीन होकर भटकने वाले हो गए थे। समस्या के समाधान हेतु, सभी देवता एकत्र हो हिमालय में गए और देवी आद्या-शक्ति, की स्तुति, वंदना करने लगे। परिणामस्वरूप, 'कौशिकी' नाम की एक दिव्य नारी शक्ति जो कि भगवान शिव की पत्नी 'गौरी या पार्वती' में समाई हुई थी, लुप्त थी, समस्त देवताओं के सन्मुख प्रकट हुई। शिव अर्धाग्ङिनी के देह से विभक्त हो, उदित होने वाली वह शक्ति घोर काले वर्ण की थी तथा काली नाम से विख्यात हुई। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी दुर्गा (जिन्होंने दुर्गमासुर दैत्य का वध किया था), ने शुम्भ और निशुम्भ नाम के दो महा राक्षसों को युद्ध में परास्त किया तथा तीनों लोकों को उन दोनों भाइयों के अत्याचार से मुक्त कराया। चण्ड और मुंड नामक दैत्यों ने जब देवी दुर्गा से युद्ध करने का आवाहन किया, देवी उन दोनों से युद्ध करने हेतु उद्धत हुई। आक्रमण करते हुए देवी, क्रोध के वशीभूत हो अत्यंत उग्र तथा भयंकर डरावनी हो गई, उस समय उनकी सहायता हेतु उन्हीं के मस्तक से एक काले वर्ण वाली शक्ति का प्राकट्य हुआ, जो देखने में अत्यंत ही भयानक, घनघोर तथा डरावनी थी। वह काले वर्ण वाली देवी, 'महा-काली' ही थी, जिन का प्राकट्य देवी दुर्गा की युद्ध भूमि में सहायता हेतु हुई थी। चण्ड और मुंड के संग हजारों संख्या में वीर दैत्य, देवी दुर्गा तथा उनके सहचरियों से युद्ध कर रहे थे, उन महा-वीर दैत्यों में 'रक्तबीज' नाम के एक राक्षस ने भी भाग लिया था। युद्ध भूमि पर देवी ने रक्तबीज दैत्य पर अपने समस्त अस्त्र-शस्त्रों से आक्रमण किया, जिससे कारण उस दैत्य रक्तबीज के शरीर से रक्त का स्राव होने लगा। परन्तु, दैत्य के रक्त की टपकते हुए प्रत्येक बूंद से, युद्ध स्थल में उसी के सामान पराक्रमी तथा वीर दैत्य उत्पन्न होने लगे तथा वह और भी अधिक पराक्रमी तथा शक्तिशाली होने लगा। देवी दुर्गा की सहायतार्थ, देवी काली ने दैत्य रक्तबीज के प्रत्येक टपकते हुए रक्त बूंद को, जिह्वा लम्बी कर अपने मुंह पर लेना शुरू किया। परिणामस्वरूप, युद्ध क्षेत्र में दैत्य रक्तबीज शक्तिहीन होने लगा, अब उसके सहायता हेतु और किसी दैत्य का प्राकट्य नहीं हो रहा था, अंततः रक्तबीज सहित चण्ड और मुंड का वध कर देवी काली तथा दुर्गा ने तीनों लोकों को भय मुक्त किया। देवी, क्रोध-वश, महा-विनाश करने लगी, इनके क्रोध को शांत करने हेतु, भगवान शिव युद्ध भूमि में लेट गए। देवी नग्नावस्था में थीं तथा इस अवस्था में नृत्य करते हुए, जब देवी का पैर शिव जी के ऊपर आ गया, उन्हें लगा की वे अपने पति के ऊपर खड़ी हैं तदनंतर, लज्जा वश देवी का क्रोध शांत हुआ तथा जिह्वा बाहर निकल पड़ी। जय माँ भद्रकाली 🔱 राणा जी खेड़ांवाली🚩 #🕉️सनातन धर्म🚩 #जय माता की
ShareChat QR Code
Download ShareChat App
Get it on Google Play Download on the App Store
14 likes
6 shares
Davinder Singh Rana
539 views 4 days ago
*दुर्गा सप्तशती पाठ - तेरहवाँ अध्याय हिन्दी में* *राजा सुरथ और वैश्य को देवी का वरदान* 🔱🔱🔱🔱🔱🔱🔱🔱🔱🔱🔱🔱 महर्षि मेधा ने कहा- हे राजन्! इस प्रकार देवी के उत्तम माहात्म्य का वर्णन मैने तुमको सुनाया। जगत को धारण करने वाली इस देवी का ऎसा ही प्रभाव है, वही देवी ज्ञान को देने वाली है और भगवान विष्णु की इस माया के प्रभाव से तुम और यह वैश्य तथा अन्य विवेकीजन मोहित होते हैं और भविष्य में मोहित होगें। हे राजन्! तुम इसी परमेश्वरी की शरण में जाओ। यही भगवती आराधना करने पर मनुष्य को भोग, स्वर्ग तथा मोक्ष प्रदान करती है। मार्कण्डेयजी ने कहा-महर्षि मेधा की यह बात सुनकर राजा सुरथ ने उन उग्र व्रत वाले ऋषि को प्रणाम किया और राज्य के छिन जाने के कारण उसके मन में अत्यन्त ग्लानि हुई और वह राजा तथा वैश्य तपस्या के लिये वन को चले गये और नदी के तट पर आसन लगाकर भगवती के दर्शनों के लिये तपस्या करने लगे। दोनों ने नदी के तट पर देवी की मूर्ति बनाई और पुष्प, धूप, दीप तथा हवन द्वारा उसका पूजन करने लगे। पहले उन्होंने आहार को कम कर दिया। फिर बिलकुल निराहार रहकर भगवती में मन लगाकर एकाग्रतापूर्वक उसकी आराधना करने लगे। वह दोनों अपने शरीर के रक्त से देवी को बलि देते हुए तीन वर्ष तक लगातार भगवती की आराधना करते रहे। तीन वर्ष के पश्चात जगत का पालन करने वाली चण्डिका ने उनको प्रत्यक्ष दर्शन देकर कहा, देवी बोली-हे राजन्! तथा अपने कुल को प्रसन्न करने वाले वैश्य! तुम जिस वर की इच्छा रखते हो वह मुझसे माँगो, वह वर मैं तुमको दूँगी क्योंकि मैं तुम पर अत्यन्त प्रसन्न हूँ। मार्कण्डेय जी कहते हैं- यह सुन राजा ने अगले जन्म में नष्ट न होने वाला अखण्ड राज्य और इस जन्म में बलपूर्वक अपने शत्रुओं को नष्ट करने के पश्चात अपना पुन: राज्य प्राप्त करने के लिये भगवती से वरदान माँगा और वैश्य ने भी जिसका चित्त संसार की ओर से विरक्त हो चुका था, भगवती से अपनी ममता तथा अहंकार रूप आसक्ति को नष्ट कर देने वाले ज्ञान को देने के लिए कहा। देवी ने कहा-हे राजन्! तुम शीघ्र ही अपने शत्रुओं को मारकर पुन: अपना राज्य प्राप्त कर लोगे, तुम्हारा राज्य स्थिर रहने वाला होगा फिर मृत्यु के पश्चात आप सूर्यदेव के अंश से जन्म लेकर सावर्णिक मनु के नाम से इस पृथ्वी पर ख्याति को प्राप्त होगें। हे वैश्य! कुल में श्रेष्ठ आपने जो मुझसे वर माँगा है वह आपको देती हूँ, आपको मोक्ष को देने वाले ज्ञान की प्राप्ति होगी। मार्कण्डेय जी कहते हैं-इस प्रकार उन दोनों को मनोवांछित वर प्रदान कर तथा उनसे अपनी स्तुति सुनकर भगवती अन्तर्धान हो गई और इस प्रकार क्षत्रियों में श्रेष्ठ वह राजा सुरथ भगवान सूर्यदेव से जन्म लेकर इस पृथ्वी पर सावर्णिक मनु के नाम से विख्यात हुए। !!श्रीसप्तशतीदेवीमाहात्म्यं सम्पूर्णं !! !!ॐ तत् सत् ॐ !! !! राणा जी खेड़ांवाली !! #🕉️सनातन धर्म🚩 #जय माता की
ShareChat QR Code
Download ShareChat App
Get it on Google Play Download on the App Store
14 likes
14 shares