# ‼️ गजानना श्री गणराया ‼️
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Kiran Gosavi
798 views 22 days ago
## ‼️ गजानना श्री गणराया ‼️ #ओम शिवगोरक्ष #ओम श्री नवनाथाय नमः #!! ओम चैतन्य मच्छिन्द्रनाथाय नमः !! #ओम चैतन्य कानिफनाथाय नमः ༺꧁#ॐ_शिवगौरक्ष꧂༻ नमस्ते गजकंथडरूपाय नाथ रूपाय ते नमः भक्त प्रियाए देवाय नमस्तुभ्यं विनायक__ऐसे #नवनाथो मे नाथ सिद्धयोगी गणेशस्वरूप #गजबेली_गजकँथडनाथजी महाराज को हमारा बारंबार प्रणाम... एक बार कैलाश लोक में माता पार्वती जी की स्नान करते समय इच्छा हुई कि मेरी रक्षा करने वाला कोई हो जो मेरे पुत्र रूप में हो तब उन्होंने चंदन ऊटी मली का गोला बनाकर उससे सुंदर बालक रूप पुतला बनाया प्राण संजीवन मंत्र से चेतन किया...सुंदर पुत्र देख पार्वती अत्यंत हर्षित होकर कही कि हे पुत्र देखो मेरे स्नान करने तक मेरे मेरे स्नान कक्ष में कोई ना आ पाए और बालक के हाथ में अंकुश देकर स्नान कक्ष में चली गई... मातृआज्ञा से बालक वही द्वार पर खड़ा होकर रक्षा कर रहा था...इतने में स्वयं शिवजी बनखंडी से आए तब बालक ने उन्हें रोका उनका बहुत वाद हुआ फिर युद्ध हुआ...अंत में त्रिपुरारी ने अपने त्रिशूल से बालक का शीश काट दिया... यह देखकर माता पार्वती दुखी हुई शिवजी को पता चला कि यह मेरा ही पुत्र है उन्होंने गणों को आदेश दिया वन में जाओ... और प्रथम दर्शन मे जो भी प्राणी मिलेगा उसका शीश ले आओ गणों ने हाथी का शीश लाकर दे दिया... भगवान शिव ने वह शीश बालक को लगाया और उसे जीवित किया...आनंदित शिव पार्वती ने उसका नाम श्री गणेश गणपति गजानन आदि रखा और तब देवी- देवता गण नारद इंद्र ब्रह्मा तथा विष्णु आदि सभी ने श्री गणेश जी का दर्शन किया अनेक वरदान और आशीर्वाद दिया... अतः गणेश जी महाराज भगवान आदिनाथजी के तपस्वी तेजस्वी नाथस्वरूप देखकर विनती करते हुए बोले कि हे परमपिताश्री मेरा प्रणाम स्वीकार करो... मुझे माताजी ने यह रूप दिया अब आप भी मुझे आपका नाथस्वरूप वरण कीजिए...आपको देखकर मुझे सहज वैराग्य उत्पन्न हुआ है...आप गुरु महाराज के रूप में मुझे उपदेश दीजिए... तब सोचकर आदिनाथजी ने कहा - हे बुद्धिवंत गणेश मेरा यह नाथस्वरूप तुम्हें अवश्य प्राप्त होगा... आगे मृत्युलोक में #गजबेली_गजकंथडनाथ नाम से लोग तुम्हारी प्रथम पूजा करेंगे... आप योग महाज्ञान तपस्या रिद्धि-सिद्धि ज्ञान वैराग्य को प्राप्त करके नाथयोग ज्ञान का प्रचार प्रसार करोगे... मुक्ति मोक्ष का मार्ग दर्शन करोगे आप ज्ञान विद्या बुद्धि के देवता माने जाओगे... आप रिद्धि सिद्धि से भंडार भरोगे... सृष्टि में सभी शुभ कार्य के प्रारंभ में प्रथम आपको ही पूजनीय मान मिलेगा... तदुपरांत गणेश जी ने अनेक लीलाएं की उन्होंने योग शक्ति से अष्टविनायक रूप में #अष्टअसुरों का वध किया पृथ्वी परिक्रमा रिद्धि सिद्धि से विवाह रावण से आत्मलिंग छीनना वेदव्यास जी सन्मुख गीता रचना करना ऐसी अनेक लीलाएं और कार्य किऐ... एक बार #गुरु_गौरक्षनाथजी_महाराज भ्रमण करते हुए गणराज्य गणेश लोक में पधारे और श्री गणेशनाथजी के संग एकांत में उन्होंने सत्संग किया___उसी काल में उन्हें नाथस्वरूप को धारण करने का स्मरण #गुरु_गौरक्षनाथजी ने कराया...अत: ॐ कार आदिनाथ जी के वरदान प्राप्त गणेशजी कच्छ भुज प्रदेश में #कँथडकोट स्थान में प्रकट हुए...वहां सागर किनारे 21000 वर्ष तक तपस्या की वह प्रत्यक्ष शिव शिवा के पुत्र एवं प्रिय शिष्य थे___ उन्होंने योग साधना प्राणायाम चक्र जाग्रति कुंडलिनी योग नाद योग लय योग आदि योगिक क्रिया करके अनेकों चमत्कार किए...अनेकों साक्षात्कार कर के योग महाज्ञान का प्रचार प्रसार किया... एक बार कछ प्रदेश के राजा ने उन्हें तप साधना का आसन (स्थान ) हटाने को कहा' क्योंकि वहां उन्हें एक किला बनाना था और वहां कोट बनाने लगे... #गजकंथडनाथजी ने अपने चमत्कार से उसे गिरा दिया...वह दिन में बनाते थे रात्रि में वह कोट (दीवार ) टूट कर गिर जाता था...ऐसा 7 बार हुआ अंत में राजा शरण में आ गया और उपदेश लेकर शिष्य बन गया... उसी समय एक बार एक किसान ने नाथजी को कहा - मेरे बावड़ी के कुएं में जल नहीं है खेती कैसे करें ? दया के सागर नाथ जी ने योग चमत्कार से गंगा जमुना सरस्वती को आमंत्रण देकर बुलाया और कुंवें में जल भर गया... इसी किसान का वसु नाम का पुत्र था वह #गजकंथडनाथजी का शिष्य बन गया और गुरु आदेश अनुरूप उसी कुएं के जल में खड़ा होकर घोर तपस्या की वह सिद्ध आत्मदर्शी शिष्य जगत विख्यात हुआ... कंथडनाथ जी ने अनेक दीन दुखियों को सुख दिया रिद्धि सिद्धि से भंडार भरे... अपने आत्म अनुभव योग को जन जन को सिखाया इसलिए प्रकार उस क्षेत्र के राम और पवन नामक युवक अनाथ थे उन्हें दीक्षा देकर शिष्य बनाएं गुरुकृपा से रामनाथ ने हिमालय पर्वत में तपस्या की तो पवननाथ ने पवनाहारी (वायु का आहार ) बन के जंगल में एकांत योग तपस्या की... एक बार वहां के क्षत्रिय राजा का कुंवर नाम का एक राजपुत्र था जरा (रोग ) और व्याधि के कारण राजा ने उन्हें #गजकंथडनाथ जी के पास छोड़ दिया इलाज होने पर स्वस्थ होकर उसने भी शिष्य बनकर योग साधना की उसे कंथडनाथजी महाराज ने अपनी कृपा से अमर कर दिया... उन्होंने अपने शिष्य भक्तों पर कृपा कर रिद्धि सिद्धि नव निधि को प्राप्त कराया...उन्होंने संपूर्ण #चौदह_भुवनेश का भ्रमण किया ...अंतरिक्ष ज्ञान...विज्ञान शास्त्र जड़ी-बूटी आदि सर्वगुण ज्ञान संपन्न नाथजी ने नाथयोग ज्ञान का अनोखा प्रचार किया... नाथ सिद्धों के योग प्रणाली में गजबेली गजकंथड नाथजी का मूलाधार चक्र में स्थान है...कुंडलिनी योग जागृति में प्रथम मूलाधार चक्र जाग्रति कर के प्रथम मान दिया जाता है...जिससे ज्ञान वैराग्य और रिद्धि सिद्धि की योगियों को प्राप्ति होती है...त्रयंबकेश्वर कुंभ मेले में उन्होंने मूलाधार चक्र जाग्रति के अनुपम उपाय ज्ञान विज्ञान विश्लेषण कुंडलिनी अनुभूति इंद्रिय दमन सम्प्रतभाव समाधि आदि विषय पर अनंतकोटी योगियों को उपदेश दिया एवं उनका मार्गदर्शन किया...वे नाथ सम्प्रदाय मे महान योगसिद्ध नवनाथ योगेश्वर हैं... #गायत्री_मंत्र ॐ ह्री° श्री° गं गं गजबेली गजकँथडाय विद्महे गणेश रूपाय धीमहि तन्नो निरंजन: प्रचोदयात् उपरोक्त में से किसी एक मंत्र का पूर्ण विधि स्वागत 108 बार नित्य जप करना चाहिए... ऐसे सिद्ध योगी गणेशस्वरूप गजबेली गजकँथडनाथजी जी को हमारा बारंबार प्रणाम... ॐ अलख निरंजन ॐ नमो पारवती पतये नम: हे व्योमकेश आपको नमन हरो सकल उर पीर नीलकंठ त्रिपुरारि प्रभु सतत भरो उर धीर हे नाथ आप ही का सदा आसरा ༺꧁#हर_हर_महादेव꧂༻ आदेश।। आदेश।। जय श्रीमहाकाल।। ॐशिवगौरक्ष।। #गुरुदेव_विलासनाथजी_महाराज गालनापीठ त्रयम्बकेश्वर नासिक
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Kiran Gosavi
1K views 28 days ago
## ‼️ गजानना श्री गणराया ‼️ चौसष्ट कला १. पानक रस तथा रागासव योजना - मदिरा व पेय तयार करणे. २. धातुवद- कच्ची धातू पक्की व मिश्रधातू वेगळी करणे. ३. दुर्वाच योग- कठीण शब्दांचा अर्थ लावणे. ४. आकर ज्ञान - खाणींविषयी अंतर्गत सखोल ज्ञान असणे. ५. वृक्षायुर्वेद योग- उपवन, कुंज, वाटिका, उद्यान बनविणे. ६. पट्टिका वेत्रवाणकल्प- नवार, सुंभ, वेत इत्यादींनी खाट विणणे. ७. वैनायिकी विद्याज्ञान- शिष्टाचार व विनय यांचे ज्ञान असणे. ८. व्यायामिकी विद्याज्ञान- व्यायामाचे शास्त्रोक्त ज्ञान असणे. ९. वैजापिकी विद्याज्ञान- दुसऱ्यावर विजय मिळविणे. १०. शुकसारिका प्रलापन- पक्ष्यांची बोली जाणणे. ११. अभिधान कोष छंदोज्ञान- शब्द व छंद यांचे ज्ञान असणे. १२. वास्तुविद्या- महाल, भवन, राजवाडे, सदन बांधणे. १३. बालक्रीडाकर्म- लहान मुलांचे मनोरंजन करणे. १४. चित्र शब्दापूपभक्षविपाक क्रिया- पाकक्रिया, स्वयंपाक करणे. १५. पुस्तकवाचन- काव्यगद्यादी पुस्तके व ग्रंथ वाचणे. १६. आकर्षण क्रीडा- दुसऱ्याला आकर्षित करणे. १७. कौचुमार योग- कुरुप व्यक्तीला लावण्यसंपन्न बनविणे. १८. हस्तलाघव- हस्तकौशल्य तथा हातांनी कलेची कामे करणे. १९. प्रहेलिका - कोटी, उखाणे वा काव्यातून प्रश्न विचारणे. २०. प्रतिमाला - अंत्याक्षराची योग्यता ठेवणे. २१. काव्यसमस्यापूर्ती - अर्धे काव्य पूर्ण करणे. २२. भाषाज्ञान - देशी-विदेशी बोलींचे ज्ञान असणे. २३. चित्रयोग - चित्रे काढून रंगविणे. २४. कायाकल्प - वृद्ध व्यक्तीला तरुण करणे. २५. माल्यग्रंथ विकल्प - वस्त्रप्रावरणांची योग्य निवड करणे. २६. गंधयुक्ती - सुवासिक गंध वा लेप यांची निर्मिती करणे. २७. यंत्रमातृका - विविध यंत्रांची निर्मिती करणे. २८. अत्तर विकल्प - फुलांपासून अर्क वा अत्तर बनविणे. २९. संपाठय़ - दुसऱ्याचे बोलणे ऐकून जसेच्या तसे म्हणणे. ३०. धारण मातृका - स्मरणशक्ती वृद्धिंगत करणे. ३१. छलीक योग- चलाखी करून हातोहात फसविणे. ३२. वस्त्रगोपन- फाटकी वस्त्रे शिवणे. ३३. मणिभूमिका - भूमीवर मण्यांची रचना करणे. ३४. द्यूतक्रीडा - जुगार खेळणे. ३५. पुष्पशकटिका निमित्त ज्ञान - प्राकृतिक लक्षणाद्वारे भविष्य सांगणे. ३६. माल्यग्रथन - वेण्या, पुष्पमाला, हार, गजरे बनविणे. ३७. मणिरागज्ञान - रंगावरून रत्नांची पारख करणे वा ओळखणे. ३८. मेषकुक्कुटलावक - युद्धविधी- बोकड, कोंबडा इ.च्या झुंजी लावणे. ३९. विशेषकच्छेद ज्ञान - कपाळावर लावायच्या तिलकांचे साचे करणे. ४०. क्रिया विकल्प - वस्तूच्या क्रियेचा प्रभाव उलटविणे. ४१. मानसी काव्यक्रिया - शीघ्र कवित्व करणे. ४२. आभूषण भोजन - सोन्या-चांदी वा रत्नामोत्यांनी काया सजवणे. ४३. केशशेखर पीड ज्ञान - मुकुट बनविणे व केसात फुले माळणे. ४४. नृत्यज्ञान - नाचाविषयीचे शास्त्रोक्त सखोल ज्ञान असणे. ४५. गीतज्ञान - गायनाचे शास्त्रीय सखोल ज्ञान असणे. ४६. तंडुल कुसुमावली विकार - तांदूळ व फुलांची रांगोळी काढणे. ४७. केशमार्जन कौशल्य - मस्तकाला तेलाने मालीश करणे. ४८. उत्सादन क्रिया - अंगाला तेलाने मर्दन करणे. ४९. कर्णपत्र भंग - पानाफुलांपासून कर्णफुले बनविणे. ५०. नेपथ्य योग - ऋतुकालानुसार वस्त्रालंकाराची निवड करणे. ५१. उदकघात - जलविहार करणे. रंगीत पाण्याच्या पिचकारी करणे. ५२. उदकवाद्य - जलतरंग वाजविणे. ५३. शयनरचना - मंचक, शय्या व मंदिर सजविणे. ५४. चित्रकला - नक्षी वेलवुट्टी व चित्रे काढणे. ५५. पुष्पास्तरण - फुलांची कलात्मक शय्या करणे. ५६. नाटय़अख्यायिका दर्शन - नाटकांत अभिनय करणे. ५७. दशनवसनांगरात - दात, वस्त्रे, काया रंगविणे वा सजविणे. ५८. तुर्ककर्म - चरखा व टकळीने सूत काढणे. ५९. इंद्रजाल - गारुडविद्या व जादूटोणा यांचे ज्ञान असणे. ६०. तक्षणकर्म - लाकडावर कोरीव काम करणे. ६१. अक्षर मुष्टिका कथन - करपल्लवीद्वारे संभाषण करणे. ६२. सूत्र तथा सूचीकर्म - वस्त्राला रफू करणे. ६३. म्लेंछीतकला विकल्प - परकीय भाषा ठाऊक असणे. ६४. रत्नरौप्य परीक्षा - अमूल्य धातू व रत्ने यांची पारख करणे. गणेशाच्या या चौसष्ट कला आपण जाणून घेतल्या आदेश गुरूची कृपा सदैव राहो गणपती बप्पा मोरया मंगल मूर्ती मोरया 🙏
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