Jagdish Sharma
• 6 minutes ago
।।ॐ।।
श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शांतिमचिरेणाधिगच्छति॥
श्रद्धावान्, तत्पर तथा संयतेन्द्रिय पुरुष ही ज्ञान प्राप्त कर पाता है। भावपूर्वक जिज्ञासा नहीं है तो तत्त्वदर्शी की शरण जाने पर भी ज्ञान नहीं प्राप्त होता। केवल श्रद्धा ही पर्याप्त नहीं है, श्रद्धावान् शिथिल प्रयत्न भी हो सकता है। अतः महापुरुष द्वारा निर्दिष्ट पथ पर तत्परता से अग्रसर होने की लगन आवश्यक है। इसके साथ ही सम्पूर्ण इन्द्रियों का संयम अनिवार्य है। जो वासनाओं से विरत नहीं है, उसके लिये साक्षात्कार (ज्ञान की प्राप्ति) कठिन है। केवल श्रद्धावान्, आचरणरत संयतेन्द्रिय पुरुष ही ज्ञान प्राप्त करता है। ज्ञान को प्राप्त कर वह तत्क्षण परमशान्ति को प्राप्त हो जाता है, जिसके पश्चात् कुछ भी पाना शेष नहीं रहता। यही अन्तिम शान्ति है। फिर वह कभी अशान्त नहीं होता। और जहाँ श्रद्धा नहीं है- #❤️जीवन की सीख #🙏गीता ज्ञान🛕 #🙏🏻आध्यात्मिकता😇 #🧘सदगुरु जी🙏 #यथार्थ गीता