भगवद्गीता गीतासार
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digital निर्माता
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भगवद्गीता — युद्धभूमि की वो यूनिवर्सल किताब जो धर्म, कर्तव्य और आत्म-ज्ञान को 18 अध्यायों और करीब 700 श्लोकों में समेटती है, और आज भी पाठक-मंच, कला और पब्लिक बहस का केंद्र बनी हुई है। हाल ही में इसकी चर्चा नालंदा यूनिवर्सिटी के पैनल और किताबों के मेलों में अंग्रेज़ी संस्करणों की बढ़ती मांग की वजह से देखने को मिली है, जो बताता है कि गीता अब भी नई पीढ़ियों तक पहुँच रही है। विकिमीडिया कॉमन्स पर कृष्ण-अर्जुन की क्लासिक पेंटिंग्स और प्राचीन पाण्डुलिपियाँ व्यापक रूप से उपलब्ध और शेयर हो रही हैं, जिससे विजुअल कल्चरल इंटरेस्ट भी बढ़ा है। साथ ही कुछ मॉडर्न व्याख्याओं पर विवाद और कानूनी बहसें भी उठती रही हैं (उदा. “Bhagavad Gita As It Is” से जुड़ा प्रकरण), जो दिखाता है कि गीता सिर्फ आध्यात्मिक ग्रंथ नहीं बल्कि सामाजिक-राजनीतिक विमर्श का भी हिस्सा बन सकती है। 🔥 हुक: “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” — काम पर ध्यान दो, फल की चिंता छोड़ो। 🤯 तर्क/साइंस का नजरिया: मनोविज्ञान और न्यूरोबायोलॉजी के आधार पर गीता का ‘कर्मयोग’ प्रक्रिया-केंद्रित फोकस और भावनात्मक नियंत्रण सिखाता है — यह स्ट्रेस को कम कर निर्णय क्षमता सुधारने जैसा व्यावहारिक लाभ दे सकता है, इसलिए गीता को आध्यात्मिक + प्रैक्टिकल दोनों तरह से पढ़ना उपयोगी है। 📚🙏 🔱 #भगवद्गीता #Gita #कर्मयोग #ज्ञान #Krishna #Arjuna 📖 — आप अगली post किस पर बनी देखना चाहते हैं comment करें. #भगवद्गीता #श्रीमद भगवद्गीता #भगवद्गीता गीतासार #श्री भगवद्गीता #भगवद्गीता अध्याय पहिला
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*📖 कहानी: "अंधेरे के बाद प्रकाश"* (श्रीमद्भगवद्गीता से प्रेरित एक जीवन बदल देने वाली कहानी) रवि एक मध्यमवर्गीय परिवार का इकलौता बेटा था। उसके पिता एक सरकारी स्कूल में अध्यापक थे, और माँ एक घरेलू महिला। जब रवि दस साल का था, उसके पिता की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई। उस दिन से उसके जीवन में अंधेरा उतर आया था। माँ ने सिलाई का काम शुरू किया, और रवि को पढ़ाई में जोड़ें रखा। रवि समझ गया था कि अब उसके कंधों पर न केवल अपनी ज़िंदगी, बल्कि माँ की उम्मीदों का भी भार है। वह बचपन से ही पढ़ाई में होशियार था। उसने ठान लिया था कि वह बड़ा होकर एक दिन अफसर बनेगा—एक ऐसा बेटा जो माँ के सारे दुःख मिटा सके। स्कूल खत्म हुआ, कॉलेज भी किसी तरह पूरा किया गया, और फिर उसने सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी। रवि सुबह चार बजे उठता, मंदिर में जाकर दीप जलाता और फिर किताबों में डूब जाता। उसे केवल एक चीज़ दिखाई देती थी—सफलता। पर पहली बार में असफल हुआ। माँ ने कहा, “कोई बात नहीं बेटा, भगवान पर भरोसा रखो।” वह फिर जुट गया। पर दूसरी बार भी नतीजा वही निकला। अब रिश्तेदारों ने ताने मारना शुरू कर दिए। कोई कहता—“इससे नहीं होगा”, कोई हँसते हुए कहता—“इसे नौकरी नहीं, नींद चाहिए।” रवि अब खुद से भी नज़रें नहीं मिला पाता था। माँ हर रोज़ उसके लिए चुपचाप चाय बनाती, सिर पर हाथ फेरती, लेकिन वो स्नेह अब रवि के लिए बोझ लगने लगा था। तीसरी बार जब उसका चयन फिर नहीं हुआ, तो रवि पूरी तरह टूट गया। उसने कमरे में खुद को बंद कर लिया। फोन बंद कर दिया। दोस्तों से बात बंद कर दी। खाना पीना छोड़ दिया। एक रात वह छत पर गया और रेलिंग के किनारे खड़ा होकर खुद से बोला—"अब और नहीं होता। बस, अब खत्म कर दूँ सबकुछ।" तभी पीछे से माँ की धीमी लेकिन सधी हुई आवाज़ आई—“रुक जा बेटा…” रवि पलटा, उसकी आँखें आँसुओं से भरी थीं। माँ ने चुपचाप एक पुरानी किताब उसके हाथ में रखी और बोली—“ये तेरे पापा की गीता है। आज इसे एक बार पढ़ ले, फिर जो मन करे कर लेना।” रवि ने अनमने भाव से गीता के पन्ने पलटे। पहले पन्ने पर लिखा था— > "जब मनुष्य मोह में फँस जाता है, तब वह अपने कर्तव्यों को भूल जाता है।" फिर उसकी नज़र इस पंक्ति पर गई— > "हे अर्जुन, तू अपने कर्म को कर, फल की चिंता मत कर।" वो ठिठक गया। पहली बार उसे लगा जैसे ये शब्द किसी किताब के नहीं, उसके अपने जीवन के लिए लिखे गए हों। उसने पन्ने पलटे—हर पंक्ति जैसे उसके घावों पर मरहम बनकर उतर रही थी। > “आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है। जो कुछ तू खो चुका है, शायद वो कभी तेरा था ही नहीं। और जो कुछ तेरा है, वो कभी तुझसे छिनेगा नहीं।” रवि पूरी रात गीता पढ़ता रहा। उस रात पहली बार उसने अपने भीतर एक शांति महसूस की। उसे समझ आया कि वह अब तक केवल सफलता के पीछे भाग रहा था, लेकिन जीवन तो “कर्तव्य” निभाने का नाम है। परिणाम तो बस ईश्वर की इच्छा है। अगली सुबह रवि उठा। उसने माँ के चरण छुए और मुस्कराकर बोला—"अब मैं फिर से लड़ूंगा, लेकिन इस बार हारने से नहीं डरूंगा। क्योंकि अब मुझे खुद पर नहीं, भगवान के न्याय पर भरोसा है।” वह फिर से पढ़ने बैठ गया—लेकिन इस बार उसकी आँखों में केवल लक्ष्य नहीं, धैर्य था। मन में केवल जिद नहीं, समर्पण था। और दिल में केवल डर नहीं, गीता का ज्ञान था। छह महीने बाद रिजल्ट आया। इस बार वह सफल हुआ था। माँ की आँखों से आँसू बह रहे थे, लेकिन वो आँसू दुःख के नहीं, ईश्वर के प्रति आभार के थे। रवि ने गीता को माथे से लगाया और खुद से कहा— "अगर माँ ने उस रात मुझे गीता न दी होती, तो शायद मैं आज इस धरती पर नहीं होता। लेकिन गीता ने न केवल मेरी जान बचाई, बल्कि मेरी सोच बदल दी। अब मैं हर काम करता हूँ, लेकिन फल की चिंता ईश्वर पर छोड़ देता हूँ।" *📚 सारांश (Summary):* यह कहानी एक ऐसे युवक की है जो बार-बार की असफलताओं से टूट चुका था। जीवन में निराशा और आत्महत्या जैसे ख्याल उसे घेर चुके थे। लेकिन श्रीमद्भगवद्गीता के ज्ञान ने न केवल उसे बचाया, बल्कि उसकी सोच, आत्मा और कर्म का मार्ग भी बदल दिया। *यह कहानी हमें सिखाती है कि जब हम जीवन की लड़ाई में हारने लगते हैं, तब गीता हमें फिर से खड़ा कर देती है।* > "गीता केवल एक पुस्तक नहीं है, यह आत्मा का भोजन है—जो मरते हुए मन को फिर से जीवन देती है।" *अगर आपको पसंद आई हो तो 1 Like जरूर दें।* #🙏🏻आध्यात्मिकता😇 #life #आचार्य प्रशांत #श्रीमद भगवद्गीता #भगवद्गीता गीतासार
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