अयोध्या में स्थापित गिलहरी की मूर्ति हमें एक गहरा संदेश देती है, कि आपका छोटा सा योगदान भी ईश्वर की नज़रों से कभी ओझल नहीं होता।
श्रीराम की मर्यादा और करुणा का यह अनुपम उदाहरण रामचरितमानस में मिलता है, जब सेतु निर्माण के दौरान एक छोटी-सी गिलहरी ने अपनी क्षमता भर रेत डालकर अपना योगदान दिया।
भगवान श्रीराम ने न केवल उस प्रयास को स्वीकार किया, बल्कि उसके शरीर पर स्नेह से हाथ फेरकर उसे गौरव भी दिया। यही कारण है कि आज भी हम कहते हैं— "ईश्वर सबके प्रयास को याद रखते हैं — चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो।"
यह कथा हमें सिखाती है कि भक्ति, निष्ठा और समर्पण कभी व्यर्थ नहीं जाते। ईश्वर केवल शक्ति नहीं देखते, भाव देखते हैं। वहीं करुणामय राम—देव, दानव, ऋषि ही नहीं बल्कि एक छोटी-सी गिलहरी की सेवा को भी आदर देते हैं।
यह विश्वास हमारे हृदय में आशा जगाता है कि हमारे छोटे-छोटे कर्म भी किसी बड़े उद्देश्य में अनमोल योगदान बन सकते हैं।
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