#😇सोमवार भक्ति स्पेशल🌟
*॥ श्रीहरि: ॥*
दिनांक 8.12.25.
वि. सं. 2082, 'कालयुक्त' संवत्सर, पौष मास, कृष्ण पक्ष, चतुर्थी, सोमवार। (गीता दैनन्दिनी अनुसार)
1- परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजका प्रवचन—
दिनांक— 21.10.1993, प्रातः 5.18 बजे।
स्थान— वृन्दावन।
*⚜️ काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य— ये छः दोष मनुष्योंके रिपु (शत्रु) बताये गये हैं, इनमें काम, क्रोध, लोभ मुख्य है, इन तीनोंमें भी काम (कामना) मुख्य है। कामना पूर्तिमें बाधा पड़ने पर क्रोध पैदा होता है और कामना सिद्धि होने पर लोभ पैदा होता है। ऐसा होना चाहिए और ऐसा नहीं होना चाहिए— यह भी कामनाका ही रूप है। कामना उत्पन्न और नष्ट होने वाली है, ऐसा समझमें तो आता है, लेकिन आप इनसे अलग नहीं होते हैं।*
*⚜️ जैसे आप सब पांडालमें इस प्रकाशमें आते-जाते हैं, परन्तु प्रकाश किसीसे भी लिप्त नहीं होता है, आप आवें, न आवें, आकर चले जाएं— प्रकाश है जैसा ही रहता है, प्रकाशमें कभी कुछ फर्क नहीं पड़ता है। ऐसे ही वृत्तियोंके आप दृष्टा बनकर रहें, वृत्तियोंके आने, न आने, आकर मिट जानेसे स्वरूपमें कुछ भी फर्क नहीं पड़ता है; स्वरूप है जैसा ही रहता है। आप आने-जाने वाली इन वृत्तियोंमें तटस्थ रहें तो जीवन मुक्त हो जाएंगे, भगवत्प्रेमकी प्राप्ति हो जाएगी।*
*⚜️ 'इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ। तयोर्न वशमागच्छेत्तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ॥' (गीता-3/34)। प्रत्येक इन्द्रियके विषयमें मनुष्यके राग-द्वेष अवस्थित हैं, मनुष्यको इनके वशीभूत नहीं होना चाहिये; क्योंकि ये मनुष्योंके पारमार्थिक मार्गमें विघ्न डालनेवाले शत्रु हैं।*
*⚜️ काम-क्रोधादिक वृत्तियोंके आने पर इनसे दुःखी होकर भगवान् को पुकारनेसे भगवान् अवश्य सुनते हैं। जिनके काम-क्रोधादिक विकार मिट गये हैं, अथवा मिट रहे हैं, उनके सानिध्यमें रहनेसे लाभ होता है। महापुरुषोंके सानिध्यमें रहनेसे ये विकार पैदा ही नहीं होते हैं, स्वाभाविक ही इन वृत्तियों पर विजय हो जाती है, पशु-पक्षियों पर भी ऐसे महापुरूषोंका असर पड़ता है।*
*⚜️ एकान्तमें बैठकर भक्तोंके चरित्र पढ़नेसे भी लाभ होता है। भक्तोंके चरित्र पढ़ते-पढ़ते हृदय गद-गद हो जाय, अश्रुपात होने लगे तो पुस्तक बन्द कर दें और भगवन्नामका जप-कीर्तन आदि करने लगें, गद-गद हृदयसे भगवान् से प्रार्थना करें। ऐसा करते-करते मन वापस चंचल हो जाय तो वैसे ही भक्तोंके चरित्र पढ़ना शुरू कर दें। इस विधिसे भक्तोंके चरित्र पढ़नेसे और भगवन्नाम जप, कीर्तन, प्रार्थना आदिसे स्वाभाविक ही वृत्तियां शान्त हो जाती है। वृत्तियां अशुद्ध मनमें ही पैदा होती है और प्रबल रहती है। भक्तोंकी लिखी हुई पुस्तकें (विनय पत्रिका आदि) पढ़नेसे, सत्संगसे भी हदय शुद्ध होता है। हमें मन लगानेके लिए पढ़ना है, ग्रन्थ पूरा करनेके लिए नहीं। ऐसा करते-करते काम-क्रोधादिक वृत्तियोंको हटानेकी सामर्थ्य आ जाती है।*
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#🌷शुभ सोमवार #🕉 ओम नमः शिवाय 🔱 #🙏जय महाकाल📿 #🌅 सूर्योदय शुभकामनाएं