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★संदीप मौर्या★
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★संदीप मौर्या★
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22 घंटे पहले
#🚩प्रेमानंद जी महाराज🙏 #📿रोहिणी व्रत 🏵 #🪔पौष माह🌺 #🙏प्रातः वंदन #जय श्री कृष्णा 🌸गायत्री साधना सफलता का राजमार्ग🌸 गायत्री मंत्र हमारे साथ साथ: ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। 🔵कुबुद्धि का साम्राज्य छाया रहता है, आपस में द्वेष, असहयोग, मनमुटाव, कलह, दुराव एवं दुर्भाव रहता है। आये दिन झगड़े रहते हैं। आपाधापी और स्वार्थपरता में प्रवृत्ति रहती है। गृहव्यवस्था को ठीक रखने, समय का सदुपयोग करने, योग्यताएं बढ़ाने, अनुशासन मानने, कुसंग से बचने, श्रमपूर्वक आजीविका कमाने, मन लगाकर विद्याध्ययन करने में प्रवृत्ति न होना आदि दुर्गुण कुबुद्धि के प्रतीक हैं। जहां यह बुराइयां भरी रहती है वे परिवार कभी भी उन्नति नहीं कर सकते, अपनी प्रतिष्ठा को कायम नहीं रख सकते, इसके विपरीत उनका पतन आरम्भ हो जाता है। बिखरी हुई बुहारी की सींकों की तरह छिन्न भिन्न होने पर वर्तमान स्थिति भी स्थिर नहीं रहती। दरिद्रता, हानि, घाटा, शत्रुओं का प्रकोप, मानसिक अशान्ति की अभिवृद्धि आदि बातें दिन-दिन बढ़ती हैं और वे घर कुछ ही समय में अपना सब कुछ खो बैठते हैं। कुबुद्धि ऐसी अग्नि है कि वह जहां भी रहती है वहीं की वस्तुओं को जलाने और नष्ट करने का कार्य निरन्तर करती रहती है। 🟢जहां उपरोक्त प्रकार की स्थिति हो वहां गायत्री उपासना का आरम्भ होना एक अमोघ अस्त्र है। अंगीठी जलाकर रख देने से जिस प्रकार कमरे की सारी हवा गरम हो जाती है और उसमें बैठे हुए सभी मनुष्य सर्दी से छूट जाते हैं इसी प्रकार घर के थोड़े से व्यक्ति भी यदि सच्चे मन से माता की शरण लेते हैं तो उन्हें स्वयं तो शांति मिलती ही है, साथ ही उनकी साधना का सूक्ष्म प्रभाव घर भर पर पड़ता है और चिन्ता जनक मनोविकारों का शमन होने तथा सुमति, एकता, प्रेम, अनुशासन तथा सद्भाव की परिवार में बढ़ोतरी होती हुई स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है। साधना निर्बल हो तो प्रगति धीरे-धीरे होती है पर होती अवश्य है। 🟣परिवार ही नहीं, पड़ौसियों, सम्बन्धियों तथा सहकर्मियों तक पर इसका प्रभाव पड़ता है। सुगन्धित इत्र कपड़ों से लगा हो तो जो कोई भी अपने समीप आवेगा उसे भी सुगन्धि मिलेगी गायत्री तपस्या की दिव्य सुगन्ध साधक की आत्मा में से सदैव उड़ती रहती है वह जहां भी जाता है, जहां भी बैठता है वहीं वह सद्बुद्धि की शक्ति तरंगें छोड़ता है और वहां की अशान्ति मिट कर शान्ति स्थापित होती है। (1) अपनी मनोभूमि में छाये हुए अज्ञान का निवारण होकर परमश्रेयष्कर आत्मिक उन्नति का होना, (2) अनेक दोषों, पापों और बुरी आदतों से छुटकारा मिलना, (3) मानसिक उलझनों का नष्ट होना, (4) पिछले पापों का प्रायश्चित होकर कर्मबन्धन मिटना, (5) बुद्धि की तीव्रता मनोबल का विकास, (6) सद्भावना और सुमति का बढ़ना आदि गायत्री के बौद्धिक लाभ हैं। मनुष्य जीवन में इनका महत्व कम नहीं है। इन वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए यदि उपासना में मनुष्य को कुछ समय लगाना पड़ता है तो वह लगाया जाना ही उचित है। 🔴यों गायत्री की ब्रह्म शक्ति के अनेक लाभ हैं। उनमें आध्यात्मिक लाभ मुख्य एवं सांसारिक गौण है। किन्तु सद्बुद्धि का प्राप्त होना तो सुनिश्चित है। क्योंकि गायत्री प्रधान तथा सद्बुद्धि का मन्त्र है। इसे जो लोग श्रद्धापूर्वक अपनाते हैं उनकी अनेकों बुरी आदतें अपने आप दूर होने लगती हैं। कई व्यक्ति सोचते हैं कि जब तक हमारी आत्मा पूर्ण पवित्र न हों तब तक जाप करना व्यर्थ होगा। हमारा कहना है वह अग्नि क्या, जो कूड़े को जला न दे। वह गंगा क्या, जो मलों को शुद्ध न करदे। गायत्री उपासना मनुष्य की सभी बुराइयों को दिन-दिन घटाती है और उसे धीरे-धीरे शुद्ध बुद्धि पवित्र आत्मा बनाती चलती है। कुकर्मी चोर, व्यभिचारी, अभक्ष भोजी, व्यसनी और पापी व्यक्ति भी जब गायत्री उपासना आरम्भ करते हैं, तो उनकी अन्तरात्मा स्वयं इतनी बलवती होने लगती है कि शरीर और मन में बुराइयों का ठहरना ही सम्भव नहीं रहता। 🟠आप गायत्री उपासना करते हैं तो उसे बढ़ाइए, नहीं करते तो आरम्भ कीजिए। उसका परिणाम शुभ ही होगा। शास्त्रोक्त विधि विधान पूर्वक की हुई गायत्री उपासना कभी भी निष्फल नहीं जाती। उससे मानसिक शान्ति का निश्चित रूप से सत परिणाम प्राप्त होते हैं। 🟤संसार में जितनी भी सुख सम्पत्तियां हैं, उस सर्व शक्तिमान सत्ता के हाथ में है। वही उसकी स्वामिनी है। जब उस परब्रह्म से मनुष्य अपना सम्बन्ध स्थापित कर लेता है और उसकी कृपा का अधिकारी बन जाता है तो उसे अपने इष्टदेव के अधिकार की कोई सी वस्तु प्राप्त कर लेना कठिन नहीं रहता। जो राजा का कृपापात्र है उसे उस राज्य की कोई भी वस्तु मिल सकती है। जिन असुविधाओं को राजा दूर कर सकता है उनसे भी वह राज-कृपापात्र, छुटकारा पा सकता है। इसी प्रकार उस परब्रह्म की कृपा को जो लोग प्राप्त कर लेते हैं उनके लिये इस विश्व का प्रत्येक पदार्थ, प्रत्येक सुख, करतल गत हो जाता है। उनके लिए कोई अभाव एवं त्रास शेष नहीं रहता। ☀️गायत्री महामन्त्र ईश्वरीय कृपापात्र बनने का सर्वोत्तम साधन है। इस मन्त्र में बताई हुई शिक्षाओं को अपने जीवन में ढाल देने वाला गायत्री के 24 अक्षरों में बताये हुए सिद्धान्तों, आदर्शों, दृष्टिकोणों एवं कर्त्तव्यों को हृदयंगम करने वाला मनुष्य प्रभु को अत्यन्त प्रिय होता है। जो भक्ति का परिचय दे वही भक्त है। भक्ति का एक मात्र लक्षण ईश्वर की आज्ञाओं को पालन करना, उसके बताए हुए मार्ग पर चलना है। जो लोग हर घड़ी ईश्वर की आज्ञाओं का उल्लंघन करते हैं, जिनके विचार ईश्वरीय विचारधारा से विपरीत दिशा में चलते रहते हैं, जो अपने धर्म कर्त्तव्यों की उपेक्षा करते रहते हैं, ऐसे लोग केवल पूजा पाठ से ईश्वर के भक्त नहीं बन सकते और न प्रभु का अनुग्रह प्राप्त कर सकते हैं, जिन्हें अनेकों उलझनों कठिनाइयों भयों अभावों तथा अनिष्टों से छुटकारा पाना है वे गायत्री माता के बताये मार्ग पर चलें, अपने विचारों को धर्मानुकूल एवं सात्विक बनावें। सच्चे गायत्री उपासकों की मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण ही होती है। 📕 गायत्री से संकट निवारण ✍️ युग ऋषि श्रीराम शर्मा आचार्य
★संदीप मौर्या★
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22 घंटे पहले
#🌸शुभ शुक्रवार🙏 #🙏 देवी दर्शन🌸 #📿रोहिणी व्रत 🏵 #🪔पौष माह🌺 #🙏 माँ वैष्णो देवी 🌸गायत्री साधना सफलता का राजमार्ग🌸 गायत्री मंत्र हमारे साथ साथ: ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। 🔵कुबुद्धि का साम्राज्य छाया रहता है, आपस में द्वेष, असहयोग, मनमुटाव, कलह, दुराव एवं दुर्भाव रहता है। आये दिन झगड़े रहते हैं। आपाधापी और स्वार्थपरता में प्रवृत्ति रहती है। गृहव्यवस्था को ठीक रखने, समय का सदुपयोग करने, योग्यताएं बढ़ाने, अनुशासन मानने, कुसंग से बचने, श्रमपूर्वक आजीविका कमाने, मन लगाकर विद्याध्ययन करने में प्रवृत्ति न होना आदि दुर्गुण कुबुद्धि के प्रतीक हैं। जहां यह बुराइयां भरी रहती है वे परिवार कभी भी उन्नति नहीं कर सकते, अपनी प्रतिष्ठा को कायम नहीं रख सकते, इसके विपरीत उनका पतन आरम्भ हो जाता है। बिखरी हुई बुहारी की सींकों की तरह छिन्न भिन्न होने पर वर्तमान स्थिति भी स्थिर नहीं रहती। दरिद्रता, हानि, घाटा, शत्रुओं का प्रकोप, मानसिक अशान्ति की अभिवृद्धि आदि बातें दिन-दिन बढ़ती हैं और वे घर कुछ ही समय में अपना सब कुछ खो बैठते हैं। कुबुद्धि ऐसी अग्नि है कि वह जहां भी रहती है वहीं की वस्तुओं को जलाने और नष्ट करने का कार्य निरन्तर करती रहती है। 🟢जहां उपरोक्त प्रकार की स्थिति हो वहां गायत्री उपासना का आरम्भ होना एक अमोघ अस्त्र है। अंगीठी जलाकर रख देने से जिस प्रकार कमरे की सारी हवा गरम हो जाती है और उसमें बैठे हुए सभी मनुष्य सर्दी से छूट जाते हैं इसी प्रकार घर के थोड़े से व्यक्ति भी यदि सच्चे मन से माता की शरण लेते हैं तो उन्हें स्वयं तो शांति मिलती ही है, साथ ही उनकी साधना का सूक्ष्म प्रभाव घर भर पर पड़ता है और चिन्ता जनक मनोविकारों का शमन होने तथा सुमति, एकता, प्रेम, अनुशासन तथा सद्भाव की परिवार में बढ़ोतरी होती हुई स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है। साधना निर्बल हो तो प्रगति धीरे-धीरे होती है पर होती अवश्य है। 🟣परिवार ही नहीं, पड़ौसियों, सम्बन्धियों तथा सहकर्मियों तक पर इसका प्रभाव पड़ता है। सुगन्धित इत्र कपड़ों से लगा हो तो जो कोई भी अपने समीप आवेगा उसे भी सुगन्धि मिलेगी गायत्री तपस्या की दिव्य सुगन्ध साधक की आत्मा में से सदैव उड़ती रहती है वह जहां भी जाता है, जहां भी बैठता है वहीं वह सद्बुद्धि की शक्ति तरंगें छोड़ता है और वहां की अशान्ति मिट कर शान्ति स्थापित होती है। (1) अपनी मनोभूमि में छाये हुए अज्ञान का निवारण होकर परमश्रेयष्कर आत्मिक उन्नति का होना, (2) अनेक दोषों, पापों और बुरी आदतों से छुटकारा मिलना, (3) मानसिक उलझनों का नष्ट होना, (4) पिछले पापों का प्रायश्चित होकर कर्मबन्धन मिटना, (5) बुद्धि की तीव्रता मनोबल का विकास, (6) सद्भावना और सुमति का बढ़ना आदि गायत्री के बौद्धिक लाभ हैं। मनुष्य जीवन में इनका महत्व कम नहीं है। इन वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए यदि उपासना में मनुष्य को कुछ समय लगाना पड़ता है तो वह लगाया जाना ही उचित है। 🔴यों गायत्री की ब्रह्म शक्ति के अनेक लाभ हैं। उनमें आध्यात्मिक लाभ मुख्य एवं सांसारिक गौण है। किन्तु सद्बुद्धि का प्राप्त होना तो सुनिश्चित है। क्योंकि गायत्री प्रधान तथा सद्बुद्धि का मन्त्र है। इसे जो लोग श्रद्धापूर्वक अपनाते हैं उनकी अनेकों बुरी आदतें अपने आप दूर होने लगती हैं। कई व्यक्ति सोचते हैं कि जब तक हमारी आत्मा पूर्ण पवित्र न हों तब तक जाप करना व्यर्थ होगा। हमारा कहना है वह अग्नि क्या, जो कूड़े को जला न दे। वह गंगा क्या, जो मलों को शुद्ध न करदे। गायत्री उपासना मनुष्य की सभी बुराइयों को दिन-दिन घटाती है और उसे धीरे-धीरे शुद्ध बुद्धि पवित्र आत्मा बनाती चलती है। कुकर्मी चोर, व्यभिचारी, अभक्ष भोजी, व्यसनी और पापी व्यक्ति भी जब गायत्री उपासना आरम्भ करते हैं, तो उनकी अन्तरात्मा स्वयं इतनी बलवती होने लगती है कि शरीर और मन में बुराइयों का ठहरना ही सम्भव नहीं रहता। 🟠आप गायत्री उपासना करते हैं तो उसे बढ़ाइए, नहीं करते तो आरम्भ कीजिए। उसका परिणाम शुभ ही होगा। शास्त्रोक्त विधि विधान पूर्वक की हुई गायत्री उपासना कभी भी निष्फल नहीं जाती। उससे मानसिक शान्ति का निश्चित रूप से सत परिणाम प्राप्त होते हैं। 🟤संसार में जितनी भी सुख सम्पत्तियां हैं, उस सर्व शक्तिमान सत्ता के हाथ में है। वही उसकी स्वामिनी है। जब उस परब्रह्म से मनुष्य अपना सम्बन्ध स्थापित कर लेता है और उसकी कृपा का अधिकारी बन जाता है तो उसे अपने इष्टदेव के अधिकार की कोई सी वस्तु प्राप्त कर लेना कठिन नहीं रहता। जो राजा का कृपापात्र है उसे उस राज्य की कोई भी वस्तु मिल सकती है। जिन असुविधाओं को राजा दूर कर सकता है उनसे भी वह राज-कृपापात्र, छुटकारा पा सकता है। इसी प्रकार उस परब्रह्म की कृपा को जो लोग प्राप्त कर लेते हैं उनके लिये इस विश्व का प्रत्येक पदार्थ, प्रत्येक सुख, करतल गत हो जाता है। उनके लिए कोई अभाव एवं त्रास शेष नहीं रहता। ☀️गायत्री महामन्त्र ईश्वरीय कृपापात्र बनने का सर्वोत्तम साधन है। इस मन्त्र में बताई हुई शिक्षाओं को अपने जीवन में ढाल देने वाला गायत्री के 24 अक्षरों में बताये हुए सिद्धान्तों, आदर्शों, दृष्टिकोणों एवं कर्त्तव्यों को हृदयंगम करने वाला मनुष्य प्रभु को अत्यन्त प्रिय होता है। जो भक्ति का परिचय दे वही भक्त है। भक्ति का एक मात्र लक्षण ईश्वर की आज्ञाओं को पालन करना, उसके बताए हुए मार्ग पर चलना है। जो लोग हर घड़ी ईश्वर की आज्ञाओं का उल्लंघन करते हैं, जिनके विचार ईश्वरीय विचारधारा से विपरीत दिशा में चलते रहते हैं, जो अपने धर्म कर्त्तव्यों की उपेक्षा करते रहते हैं, ऐसे लोग केवल पूजा पाठ से ईश्वर के भक्त नहीं बन सकते और न प्रभु का अनुग्रह प्राप्त कर सकते हैं, जिन्हें अनेकों उलझनों कठिनाइयों भयों अभावों तथा अनिष्टों से छुटकारा पाना है वे गायत्री माता के बताये मार्ग पर चलें, अपने विचारों को धर्मानुकूल एवं सात्विक बनावें। सच्चे गायत्री उपासकों की मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण ही होती है। 📕 गायत्री से संकट निवारण ✍️ युग ऋषि श्रीराम शर्मा आचार्य
★संदीप मौर्या★
637 ने देखा
2 दिन पहले
#🌺 श्री गणेश #शुभ बुधवार #जय श्री कृष्णा #💐डॉ. राजेंद्र प्रसाद जयंती 💐 #🙏प्रातः वंदन 🙏श्री गणेश जी का ध्यान 🙏 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺 शिव तनय वृद्धं सर्व कल्याण मूर्ति, परशु कमल हस्तं शोभितं मोदकेनः॥ अरुण कुसुममाला व्याल लम्बोदरश्च, मम हृदय निवासं श्री गणेशं नमामि॥ मैं भगवान शिव के ज्येष्ठ पुत्र, सभी शुभताओं के अवतार, भगवान गणेश को नमन करता हूं। उनके हाथों में परशु और कमल है, और उनकी कृपा मोदक से सुशोभित है। वह लाल फूलों की माला और एक सर्प पहनता है, उसका बड़ा पेट चमक रहा है। भगवान गणेश मेरे हृदय में सदैव निवास करें। 🌻🙏🌻 अभीप्सितार्थसिद्ध्यर्थं पूजितो यः सुरासुरैः। सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नमः॥ भगवान श्री गणेश को नमस्कार, जिनकी पूजा देवता और दानव दोनों अपनी इच्छाओं को पूरा करने और सभी बाधाओं को दूर करने के लिए करते हैं। ॥ ॐ गं गणपतये नमः॥ 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 #PostViral #viralchallenge #viral #shriganeshaynamh #shriganesh
★संदीप मौर्या★
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3 दिन पहले
#🙏🌺जय बजरंगबली🌺🙏 #🌸मत्स्य द्वादशी🐠 #🪔भौम प्रदोष व्रत💮 #शुभ मंगलवार 🚩 #🔱🚩🕉हनु हनु मते नमः🕉🚩🔱# मंगल भवन अमंगल हारी : विभीषण शरणागति और प्रभु कृपा की पावन कथा सीताराम सीताराम सीताराम दोहे का भावार्थ: हे कल्याण के धाम और अमंगल का हरण करने वाले प्रभु श्रीराम, आप मुझ पर अपनी कृपा की वर्षा करें। आप ही समस्त सुखों के सागर हैं और आप ही भक्तों के सारे कष्टों, पापों और दुखों को नष्ट करने वाले हैं। राजा दशरथ के आंगन में बाल लीला करने वाले हे परमब्रह्म परमात्मा, आप मेरे हृदय रूपी आंगन में भी सदा विहार करें और मेरे जीवन को मंगलमय बनाएं। * लंका में जहां चारों ओर अधर्म और अमंगल का साम्राज्य था, वहां भी प्रभु श्रीराम के परम भक्त विभीषण जी का मन निरंतर "मंगल भवन अमंगल हारी" प्रभु के चरणों में लगा रहता था। वे जानते थे कि केवल रघुकुल शिरोमणि श्रीराम ही ऐसे देवता हैं जो अपने भक्तों के सारे अमंगल को पल भर में हर लेते हैं और उन्हें परम शांति प्रदान करते हैं। . * एक बार जब विभीषण जी ने अपने बड़े भाई रावण को समझाने का प्रयास किया कि पराई स्त्री का हरण घोर पाप और अमंगल है, तो रावण ने क्रोध में आकर उन्हें लात मारी और अपमानित किया। यह घटना देखने में तो अमंगलकारी थी, परंतु प्रभु के भक्त के लिए यही वह क्षण बना जो उसे साक्षात् 'मंगल भवन' श्रीराम के चरणों तक ले जाने वाला था। . * अपमानित होकर विभीषण जी ने उसी क्षण निश्चय किया कि अब वे पाप की नगरी लंका में नहीं रहेंगे और सीधे उन करुणानिधान श्रीराम की शरण में जाएंगे जो दीन-दुखियों के रक्षक हैं। उन्होंने मन ही मन प्रभु की स्तुति की और सोचा कि आज मेरे सारे जन्मों के पुण्य उदय हुए हैं जो मुझे साक्षात् परब्रह्म के दर्शन प्राप्त होंगे। . * आकाश मार्ग से उड़ते हुए विभीषण जी समुद्र के उस पार प्रभु श्रीराम के शिविर की ओर चल दिए, जहां मंगल मूर्ति श्रीराम विराजमान थे। उनके मन में केवल एक ही आशा थी कि वे 'अमंगल हारी' प्रभु अवश्य ही मेरी विपत्तियों का नाश करेंगे और मुझे अपनी शरण में लेंगे, क्योंकि उनका तो स्वभाव ही प्रेम और करुणा है। . * जब विभीषण जी प्रभु के शिविर के पास पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि वहां वानर और भालू प्रभु की सेवा में मग्न हैं। प्रभु श्रीराम का दरबार ही ऐसा है जहां पहुंचते ही मन की सारी व्याकुलता शांत हो जाती है और एक अद्भुत आनंद का अनुभव होता है। विभीषण जी को लगा कि वे अंधकार से निकलकर प्रकाश के सागर में आ गए हैं। . * वानर राज सुग्रीव ने जब विभीषण को आते देखा तो उन्हें शत्रु का गुप्तचर समझकर संदेह किया, क्योंकि संसार की दृष्टि में शत्रु का भाई शत्रु ही होता है। परंतु वे यह नहीं जानते थे कि मेरे प्रभु श्रीराम की दृष्टि अलौकिक है, वे तो हृदय के भावों को देखते हैं और शरण में आए हुए शत्रु को भी गले लगा लेते हैं। . * सुग्रीव ने प्रभु श्रीराम से कहा कि यह रावण का भाई है और इसे बांध लेना चाहिए, कहीं यह हमारा कोई अमंगल न कर दे। इस पर सर्वज्ञानी और अंतर्यामी प्रभु श्रीराम ने अपनी मंद मुस्कान से सुग्रीव की ओर देखा और कहा कि मेरे मित्र, जो मेरी शरण में एक बार आ जाता है, उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता। . * प्रभु श्रीराम ने अपनी विशाल भुजाएं उठाकर घोषणा की कि यदि स्वयं रावण भी भयभीत होकर मेरी शरण में आ जाए, तो मैं उसे भी अभयदान दे दूंगा। यह प्रभु का 'मंगल भवन' स्वरूप है, जहां किसी के लिए भी बैर या द्वेष का कोई स्थान नहीं है, केवल क्षमा और प्रेम का ही वास है। . * भगवान श्रीराम ने कहा कि करोड़ों ब्राह्मणों की हत्या करने वाला पापी भी यदि मेरी शरण में आकर पश्चाताप करता है, तो मैं उसके सारे पापों को भस्म कर देता हूं। प्रभु की यह वाणी सुनकर वहां उपस्थित सभी भक्त गदगद हो गए और जय-जयकार करने लगे कि धन्य हैं हमारे प्रभु जो अमंगल का नाश करने वाले हैं। . * शरणागत वत्सल प्रभु ने हनुमान जी को आज्ञा दी कि विभीषण को आदर सहित मेरे पास ले आओ। प्रभु की आज्ञा पाते ही हनुमान जी और अंगद विभीषण जी को लेकर प्रभु के समीप आए। विभीषण जी ने दूर से ही प्रभु के उस मनमोहन रूप के दर्शन किए जो करोड़ों कामदेवों की सुंदरता को भी लज्जित करने वाला है। . * प्रभु श्रीराम का श्याम वर्ण, विशाल नेत्र, और मस्तक पर जटाओं का मुकुट देखकर विभीषण जी अपनी सुध-बुध खो बैठे। उन्हें लगा कि जिस 'अमंगल हारी' रूप का वे ध्यान करते थे, आज वह साक्षात् उनके सामने विराजमान है। उनके नेत्रों से प्रेम के अश्रु बहने लगे और वे वहीं धरती पर दंडवत लेट गए। . * हे दीनबंधु! विभीषण जी ने प्रभु के चरणों में गिरकर कहा कि हे नाथ, मैं रावण का भाई हूं और राक्षसी तामसी शरीर में मेरा जन्म हुआ है। मेरा जीवन पापों और अमंगल से घिरा हुआ था, परंतु आपके नाम की महिमा सुनकर मैं आपकी शरण में आया हूं, आप मेरी रक्षा करें। . * विभीषण जी ने गदगद वाणी में कहा कि हे त्रिलोकीनाथ, मैंने सुना है कि आप भवसागर के भय को हरने वाले और अपने भक्तों को सुख देने वाले हैं। मैं अनाथ हूं, मेरा कोई सहारा नहीं है, अब आप ही मेरे माता-पिता और आप ही मेरे स्वामी हैं। मुझे अपने चरणों की भक्ति प्रदान कीजिए। . * भक्त की ऐसी दीन दशा देखकर करुणा के सागर श्रीराम का हृदय पिघल गया। उन्होंने तुरंत उठकर विभीषण जी को अपनी भुजाओं में भर लिया और हृदय से लगा लिया। उस क्षण विभीषण जी का सारा अमंगल, सारा दुख और सारा भय कपूर की भांति उड़ गया और वे परम पावन हो गए। . * प्रभु श्रीराम के स्पर्श मात्र से विभीषण जी को जो शीतलता और शांति प्राप्त हुई, उसका वर्णन वेदों और पुराणों में भी संभव नहीं है। प्रभु ने अपने उन कोमल हाथों को, जो सदा धनुष-बाण धारण करते हैं, विभीषण के सिर पर फेरा और उन्हें अभय कर दिया। यह प्रभु की अकारण करुणा का ही प्रमाण है। . * भगवान श्रीराम ने विभीषण जी से कहा कि हे लंकेश! अब तुम मेरे परिवार के सदस्य हो, मेरे सखा हो। तुम्हारे मन में अब किसी भी प्रकार का भय नहीं रहना चाहिए। मैं स्वयं तुम्हारे सारे कष्टों का निवारण करूंगा और तुम्हें लंका का राजा बनाऊंगा। . * प्रभु की यह बात सुनकर वानर सेना चकित रह गई कि जो अभी-अभी शरण में आया है, जिसके पास न कोई सेना है और न कोई राज्य, उसे प्रभु ने बिना जीते ही लंका का राजा घोषित कर दिया। यह प्रभु श्रीराम की उदारता है कि वे देने में कभी संकोच नहीं करते, वे तो बिना मांगे ही सब कुछ दे देते हैं। . * प्रभु ने तुरंत लक्ष्मण जी को आदेश दिया कि समुद्र के जल से विभीषण का राजतिलक करो। जिस रावण के डर से देवता भी कांपते थे, उस रावण की नगरी का राजा प्रभु ने एक पल में विभीषण को बना दिया। सचमुच, प्रभु का दरबार ही 'मंगल भवन' है जहां रंक भी राजा बन जाता है। . * आकाश से देवताओं ने पुष्प वर्षा की और प्रभु श्रीराम की जय-जयकार की। उन्होंने कहा कि श्रीराम जैसा स्वामी तीनों लोकों में नहीं है, जो शरण में आए हुए विभीषण को अपनी छाती से लगा लेते हैं और उसे अपना निज जन मान लेते हैं। उनकी महिमा अनंत और अपार है। . * विभीषण जी ने हाथ जोड़कर कहा कि हे प्रभु, मुझे राज्य की कामना नहीं है, मुझे तो केवल आपके चरणों में प्रेम चाहिए। परंतु प्रभु ने कहा कि हे विभीषण, मेरा भक्त धर्म और अर्थ दोनों का उपभोग करते हुए अंत में मेरे परम धाम को प्राप्त होता है। मेरी कृपा से तुम्हारा कभी अमंगल नहीं होगा। . * इस प्रकार प्रभु श्रीराम ने विभीषण जी के माथे पर राजतिलक करके उनके जीवन के सारे कलंक और अंधकार को मिटा दिया। जो विभीषण कल तक अपमानित और तिरस्कृत थे, आज वे त्रिभुवन पति श्रीराम के परम मित्र और लंकाधिपति बन गए। यह केवल राम कृपा का ही फल है। . * प्रभु श्रीराम ने विभीषण जी को विश्वास दिलाया कि रावण चाहे कितना भी बलशाली क्यों न हो, उसका अंत निश्चित है क्योंकि जहां धर्म और सत्य है, वहीं विजय है। आप तो साक्षात् धर्म के विग्रह हैं, आपके पक्ष में रहकर विभीषण जी निर्भय हो गए। . * इसके पश्चात विभीषण जी ने प्रभु को रावण की मृत्यु के उपाय बताए, जिसे प्रभु ने ध्यानपूर्वक सुना। यद्यपि प्रभु सर्वशक्तिमान हैं और वे अपनी भृकुटी के इशारे से ही सृष्टि का संहार कर सकते हैं, फिर भी वे अपने भक्त को मान देने के लिए उसकी सलाह लेते हैं। यह उनकी भक्त-वत्सलता है। . * प्रभु श्रीराम का चरित्र ऐसा पावन है कि वे अपने सेवकों को सदैव ऊंचे आसन पर बैठाते हैं। उन्होंने सुग्रीव और विभीषण को अपने भाइयों जैसा स्नेह दिया। भरत जी के समान ही उन्होंने इन भक्तों को भी अपने हृदय में स्थान दिया, जिससे यह सिद्ध होता है कि प्रभु केवल भाव के भूखे हैं। . * युद्ध भूमि में भी जब रावण ने शक्ति बाण चलाकर विभीषण को मारना चाहा, तो प्रभु श्रीराम ने विभीषण को पीछे करके वह बाण अपनी छाती पर झेल लिया। भक्त की रक्षा के लिए भगवान का यह त्याग देखकर देवता और दानव सभी स्तब्ध रह गए। ऐसा रक्षक जिसके पास हो, उसका अमंगल कैसे हो सकता है? . * हे दयानिधान, आपने विभीषण को जो गति प्रदान की, वह बड़े-बड़े योगियों और तपस्वियों को भी दुर्लभ है। आपने उन्हें कल्प के अंत तक लंका का राज्य और अंत में अपना परम धाम देने का वचन दिया। आपकी वात्सल्य और ममता माता कौशल्या से भी अधिक है। . * प्रभु की कृपा से समुद्र पर सेतु का निर्माण हुआ, जो असंभव को संभव बनाने का प्रतीक है। आपके नाम के प्रभाव से पत्थर पानी पर तैरने लगे। यह दृश्य देखकर विभीषण जी का विश्वास और भी दृढ़ हो गया कि 'मंगल भवन' प्रभु के नाम में ही सारी शक्ति समाहित है। . * लंका युद्ध के दौरान भी प्रभु ने सदैव धर्म की मर्यादा का पालन किया और विभीषण जी को धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। रावण के वध के पश्चात जब विभीषण जी शोक में डूब गए, तब प्रभु ने उन्हें ज्ञान का उपदेश देकर उनके शोक रूपी अमंगल का हरण किया। . * प्रभु श्रीराम ने विभीषण जी को समझाया कि यह शरीर नश्वर है और आत्मा अमर है। अधर्म का नाश होना ही विधि का विधान है। प्रभु के मुख से ज्ञान की वर्षा सुनकर विभीषण जी का मोह भंग हो गया और वे पुनः प्रभु की भक्ति में लीन हो गए। . * रावण वध के बाद प्रभु ने विभीषण जी को विधिवत लंका के सिंहासन पर बैठाया। मंदोदरी और अन्य रानियों को सांत्वना दी और लंका में पुनः धर्म की स्थापना की। प्रभु जहां भी जाते हैं, वहां रामराज्य जैसी सुख-शांति अपने आप स्थापित हो जाती है। . * जब प्रभु अयोध्या लौटने लगे, तो विभीषण जी ने भी साथ चलने का आग्रह किया। प्रभु ने प्रेमपूर्वक उन्हें अपने पुष्पक विमान में बैठाया। अयोध्या पहुंचकर प्रभु ने भरत जी से विभीषण का परिचय अपने प्राणप्रिय सखा के रूप में कराया। भक्त को भगवान से मिलाने का यह क्षण अत्यंत मंगलकारी था। . * अयोध्या में प्रभु के राजतिलक के समय विभीषण जी ने प्रभु की सेवा में चंवर डुलाकर अपने आप को धन्य माना। जो लंका के राजा थे, वे अयोध्या में प्रभु के सेवक बनकर अधिक प्रसन्न थे। प्रभु के चरणों की सेवा ही सबसे बड़ा सुख और सबसे बड़ा मंगल है। . * हे राघवेंद्र, आपकी लीलाएं अनंत हैं। आपने विभीषण जैसे राक्षस कुल के व्यक्ति को भी संत बना दिया। आपकी पारस रूपी देह के स्पर्श से लोहा भी सोना बन जाता है। आप पतित पावन हैं और अधम से अधम जीव का भी उद्धार करने में सक्षम हैं। . * प्रभु, आपका नाम 'मंगल भवन' इसलिए है क्योंकि आपके नाम का स्मरण करते ही घर-घर में उत्सव होने लगते हैं। और आप 'अमंगल हारी' इसलिए हैं क्योंकि आप अपने भक्तों के जीवन से रोग, शोक, संताप और दरिद्रता को जड़ से उखाड़ फेंकते हैं। . * गोस्वामी तुलसीदास जी ने ठीक ही कहा है कि जिस पर प्रभु श्रीराम की कृपा होती है, उस पर सब कृपा करते हैं। विभीषण जी पर राम कृपा हुई तो हनुमान जी, सुग्रीव जी और यहां तक कि स्वयं माता जानकी ने भी उन्हें आशीष दिया। . * प्रभु, आपकी शरण में आने के बाद जीव को किसी अन्य सहारे की आवश्यकता नहीं रहती। जैसे विभीषण जी ने रावण का त्याग करके केवल आपके चरणों को पकड़ा, वैसे ही हमें भी संसार के मोह-माया को छोड़कर केवल आपके नाम का सहारा लेना चाहिए। . * हे राजीव लोचन, हम भी विभीषण जी की भांति आपकी शरण में हैं। हमारे मन में अनेक प्रकार के विकार और अमंगल भरे हुए हैं। आप अपनी करुणा की दृष्टि हम पर डालें और हमारे हृदय को अपना भवन बना लें, ताकि हमारा जीवन भी मंगलमय हो जाए। . * प्रभु, जब तक आप हमारे हृदय में नहीं बसेंगे, तब तक अमंगल का नाश नहीं हो सकता। जैसे सूर्य के उदय होते ही रात्रि का अंधकार मिट जाता है, वैसे ही आपके आगमन से हमारे जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। आप ही हमारे एकमात्र उद्धारक हैं। . * अंत में, विभीषण जी की कथा हमें यही शिक्षा देती है कि परिस्थितियां चाहे कितनी भी विपरीत क्यों न हों, यदि हम धर्म और प्रभु श्रीराम का साथ नहीं छोड़ते, तो हमारा कल्याण निश्चित है। प्रभु श्रीराम ही सत्य हैं, वे ही शाश्वत हैं और वे ही परम आनंद हैं। . * हे अवधेश, हम बार-बार आपके चरणों में नमन करते हैं। आप हमारे योग-क्षेम का वहन करें और हमें अपनी अविचल भक्ति प्रदान करें। मंगल भवन अमंगल हारी प्रभु श्रीराम सदा हमारे सहायक रहें और हमें सन्मार्ग पर चलाएं, यही हमारी प्रार्थना है। सीताराम सीताराम सीताराम
★संदीप मौर्या★
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7 दिन पहले
#🌸शुभ शुक्रवार🙏 #🙏 माँ वैष्णो देवी #🙏 देवी दर्शन🌸 #🙏 जय माँ दुर्गा 🙏 #🪔मासिक दुर्गाष्टमी🪔 कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने वाले धर्मशाला के पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा जी का दिल जीतने वाला बयान !!!!🙏🙏 कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आये एक कांग्रेसी नेता से पत्रकार ने पूछा कि "आप कांग्रेस छोड़कर भाजपा में क्यूँ आये?" तो उसका बहुत ही तार्किक और मार्मिक उत्तर ...... कांग्रेस में रहकर मुझे और मेरे परिवार को यह लगने लगा था कि मैं हिन्दू हूँ कि नही हूँ ? हम अपने त्यौहार उस उमंग और उत्साह से नही मना पा रहे थे जैसे कालोनी के दूसरे लोग मना रहे थे । जिस दिन कोर्ट से राम मंदिर के पक्ष में फैसला आया उस दिन पूरी कालोनी के लोग उत्साह से जश्न मना रहे थे तो मेरा परिवार दरवाजा बंद कर घर के अंदर बैठे थे। राम नवमी पर ज़ब पूरा देश उमंग में रहता हे तो हम मायूस घर पर बैठे रहते थे। करोना काल में ज़ब पूरी कालोनी दिए जलाकर और बर्तन बजा कर करोना से मुक्ति की प्रार्थना कर रहे थे तब भी मेरा परिवार खिड़कियों से उन्हें निहार रहा था। पाकिस्तान पर भारत की एयर स्ट्राइक पर ज़ब पूरा भारत गौरवान्वित महसूस कर रहा था तब भी हम घुटघुट कर कमरों में बंद थे। धारा 370 हटने पर पूरी कालोनी जश्न मना रही थी तो में और मेरे बच्चे ड्राइंग रूम में बंद थे। और सबसे ज्यादा आहत करने वाली बात तो पिछली 22 तारीख को ज़ब पूरा भारत तो छोड़ पूरी दुनिया राम मय होकर राम मंदिर के उद्धघाटन समारोह में शिरकत कर रही थी तो में और मेरा परिवार अत्यंत मायूसी में उन्हें निहार रहे थे। पर कांग्रेसी होने के नाते उनके साथ शिरकत नही कर सकते थे। जिस अभिषेक मनु सिंघवी ने राम मंदिर के विरोध में केस लड़ा उसे राज्यसभा का उम्मीदवार बना दिया। ऐसे पिछले दस साल में अनगिनत मोके आये ज़ब हमें अपने आप से पूछना पड़ता था कि हम हिन्दू हे क़ी नही हे? कांग्रेसी विचारधारा हमें धीरे धीरे धर्म विरोधी तो बना ही रही थी, कहीं ना कहीं हम देश विरोधी भी बनते जा रहे थे। क्योंकि हमें हर उस अच्छे कार्य का विरोध करना था जो मोदी सरकार कर रही थी। बस मेरे कांग्रेस छोड़ने का सिर्फ यही कारण हे। अब लगता है,हम फिर से हिन्दू हो गए हे । अब मैं भी अपने कालोनी वासियों के साथ अपने हर त्यौहार को पूरे हर्ष उल्हास के साथ मनाऊँगा ! 🇮🇳🚩 जय श्रीराम 🚩🇮🇳
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