#ज्योतिष
जो ज्योतिष से भ्रमित है, ये लेख उनके लिए .....
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ज्योतिष एक वैदिक विषय है । इस विषय को कितनी भी सरल भाषा में लिखने का प्रयास किया जाए , उसे साधारण लोग नहीं समझ पाते । अतः बड़े ही सरल सूत्र सरल ही भाषा में लिख रहा हूँ। जिनसे आपका ज्योतिष सम्बन्धी ज्ञान भी बढ़ेगा। और ज्योतिष के नाम पर भ्रमित होने से बच भी जाओगे। क्योंकि ये साधारण सी बातें भी जान लेने पर , आपको ज्ञान हो जाएगा ।
सबसे पहले तो ये जानें कि आपकीं जन्म कुंडली में चंद्रमा जिस राशि मे बैठा हो , वही आपकीं जन्म राशि होती है ।
गोचर के ग्रह आपकीं जन्म राशि से ही आप पर प्रभाव डालते हैं न कि उस राशि से जो आपका बोलते नाम की होती है।
जन्म कुंडली के ग्रहों की दशा अंतर्दशा या उनकी जन्म कुंडली मे स्थित ग्रहों के आधार पर , अथवा गोचर ( वर्तमान ) में ग्रहों की स्थिति के आधार पर ही रत्न धारण करने का सुझाव दिया जाता है।
जो ज्योतिषी केवल नाम राशि , चाहे वो जन्म की हो या आपके प्रसिद्ध नाम की , इस आधार पर ही रत्न धारण करने का सुझाव दे उसे न मानें और जान भी लें कि उसे आता जाता कुछ नहीं।
मांगलिक दोष विचार, सबसे भयानक इसे बताने वाले कितने ही ज्योतिषी मैंने देखे हैं जिन्हें खुद नही पता होता कि माँगलिक योग होता क्या है। यूँ तो यह एक बड़ा विषय है और अनेकों अन्य ग्रह स्थिति से अक्सर ही यह योग खत्म भी हो जाता है। वो लिखूंगा तो आप नहीं समझ पाएँगे ।
पर एक सरल से सूत्र अवश्य समझ लें कुंडली में लग्न अर्थात प्रथम भाव , चौथा ,सातवें , आठवें या बारहवें भाव मे मङ्गल हो तो माँगलिक जाने। किंतु इन ही भावों में कही शनि भी उपस्थित हो तो माँगलिक योग खत्म हुआ जानें। और हाँ एक बात और बता दूँ , कुछ ज्योतिषी आपने ये कहते भी सुने होंगे कि आँशिक मंगली दोष है , असत्य है ये बात। थोड़ा ज़्यादा कुछ नहीं, या मंगली होता है या नहीं ही होता ।
कथित महाभयानक बदनाम कालसर्प दोष
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मित्रो जब राहु और केतु के मध्य कोई ग्रह कुंडली में न बैठा हो तो कालसर्प दोष जानें
अब इस विषय पर मेरा अनुभव भी जानें । सर्वप्रथम तो ये बता दूँ की ज्योतिष के प्राचीन ग्रन्थों में जिसे " कालसर्प योग" कहा गया है इसे अब " कालसर्प दोष" बना कर प्रचारित किया जा रहा है।
वास्तव में 12 प्रकार से कालसर्प योग बनता है और जिसकी कुंडली मे ये योग हो वो गौर से कुंडली को देखें। राहु , केतु मध्य जो खाने होते हैं , एक इधर एक उधर , तो आकृति सर्पाकार सी दिखती है तो सर्प + काल अर्थात उस समय काल (ग्रह स्थिति ) ऐसी थी तो कालसर्प नाम दिया गया। आजकल ऐसे एक भय बना कर पेश किया जा रहा है। कालसर्प योग 12 प्रकार का होता है। जो ज्योतिषी कालसर्प योग का भय दिखाये उसे पूछना 12 में से कौन सा है। 99% तो नाम भी नहीं गिना पाएँगे। और न ही उनके अलग अलग प्रभाव।
इस विषय मे मेरा अनुभव अवश्य बताऊंगा। खुद मेरी कुंडली मे भी यह योग है।
सुनें इस योग वाले सुंदर होते हैं। अच्छा खाने पीने के शौकीन। बढ़िया कपड़ों के शौकीन। मस्तमौला। लापरवाह । घूमने फिरने के शौकीन। भावुक , खर्चीले और दिलेर इतने की इनकी जेब में पैसे होने चाहिए तो आपको नहीं खर्चने देंगे , खुद उड़ाएंगे। दिल के साफ इत्यादि।
जिनकी कुंडली मे ये योग हो वो स्वयम जाँच लें। अब इसे दोष कहें या योग। इसका निर्णय आप खुद कर लें। हाँ यह भी अवश्य कहूँगा की गुणों / अवगुणों की अधिकता भी उचित नहीं। तो छोटा सा उपाय तो कर ही लेना चाहिए। वो है एक नाग का जोड़ा शिवलिंग पर चढ़ा अर्पण कर एक अभिषेक और राहु केतु के वैदिक जप निर्दिष्ट संख्या 18 और 17 हजार कर लेना। बड़े झमेले में फँसने की आवश्यकता नहीं। अपने लिए भी हमने यही किया है।
अपने अनुभव के आधार पर.....
साभार~ पं देव शर्मा💐
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